पहले चरण की 18 सीटों पर रोचक मुकाबला, हाईप्रोफाइल नांदगांव सीट के साथ इन पर खास नजर

पहले चरण की 18 सीटों पर रोचक मुकाबला, हाईप्रोफाइल नांदगांव सीट के साथ इन पर खास नजर

पहले चरण की 18 सीटों पर रोचक मुकाबला, हाईप्रोफाइल नांदगांव सीट के साथ इन पर खास नजर
Modified Date: November 29, 2022 / 08:14 pm IST
Published Date: November 1, 2018 9:41 am IST

रायपुर। छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के पहले चरण में नक्सल प्रभावित बस्तर और राजनांदगांव की 18 सीटों पर 12 नवंबर को वोट डाले जाएंगे। यहां पर चुनावी प्रचार की खुमारी चढ़ने लगी है और राजनीतिक दलों अपनी अपनी जीत के दावे कर रहे हैं, लेकिन बदलाव की साक्षी रही इन सीटों की जनता किसके भाग्य पर बटन दबाएगी इसका पता तो गिनती के बाद चलेगा। इन सीटों के महत्व की एक वजह यह भी है कि यहां की राजनांदगांव सीट से मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह भी चुनाव लड़ रहे हैं। 

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित दक्षिण क्षेत्र बस्तर के सात जिलों बस्तर, कोडागांव, कांकेर, नारायणपुर, दंतेवाड़ा, बीजापुर और सुकमा तथा राजनांदगांव जिले की कुल 18 विधानसभा सीटों पर हर बार अलग अलग नतीजे आएं हैं। यहां कभी बीजेपी को जीत मिली है तो कभी कांग्रेस को। बीजेपी कांग्रेस की कुछ परंपरागत सीटें भी हैं। जैसे डोंगरगढ़, नारायणपुर और जगदलपुर में भाजपा कभी नहीं हारी। इसी तरह कोंटा सीट से कांग्रेस कभी नहीं हारी है।

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राज्य के गठन के बाद यहां साल 2000 से साल 2003 तक तीन वर्ष के लिए यहां अजीत जोगी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार रही। 2003 में पहले विधानसभा चुनाव में भाजपा विजयी रही। इन नक्सल प्रभावित 18 सीटों में से 13 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी ने जीत हासिल की और कांग्रेस को पांच सीटों से ही संतोष करना पड़ा। एनसीपी नौ सीटों पर तीसरे स्थान पर रही और माना जा रहा है कि एनसीपी ने स्वाभाविक रूप से कांग्रेस के वोट काटे, जिसके कारण उसे सत्ता से बाहर रहना पड़ा। 

इसके बाद साल  2008 के विधानसभा चुनाव में 18 सीटों में से भारतीय जनता पार्टी को 15 सीटें मिलीं और कांग्रेस तीन सीटों पर सिमट गई। इस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराई और छह फीसदी से ज्यादा वोट हासिल किए। बसपा चार सीटों पर और भाकपा तीन सीटों पर तीसरे स्थान पर रही। भाकपा दंतेवाड़ा में दूसरे स्थान पर रही और भाजपा को तीसरे स्थान पर धकेल दिया।

इसके बाद साल 2013 में हुए चुनाव में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया। और 12 सीटों पर जीत दर्ज की। भाजपा छह सीटें ही जीत पाई। लेकिन भाजपा ने बस्तर और राजनांदगांव के मुकाबले मैदानी क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन किया और एक बार फिर सत्ता के गलियारों तक जा पहुंची। इस चुनाव में नोटा को तीन फीसदी से ज्यादा वोट मिलना चर्चा का विषय रहा। उपरोक्त 18 सीटों की बात करें तो इनमें आठ सीटों पर नोटा तीसरे स्थान पर रहा। भाकपा तीन सीटों पर तीसरे स्थान पर रही। 

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अब साल 2018 के चुनाव में इन 18 विधानसभा सीटों में से एक राजनांदगांव सीट से मुख्यमंत्री रमन सिंह चुनाव लड़ रहे हैं तथा उनके खिलाफ कांग्रेस से करूणा शुक्ला हैं। शुक्ला पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी हैं। इसके अलावा बीजापुर सीट से वन मंत्री महेश गागड़ा चुनाव मैदान में है तथा कांग्रेस की ओर से विक्रम शाह मंडावी चुनाव लड़ेंगे। जबकि गठनबंधन की ओर से चंद्रैया सकनी उम्मीदवार हैं।

खास बात है कि छत्तीसगढ़ में पिछले तीन विधान सभा चुनाव में सत्ताधारी दल और विपक्षी दलों के बीच मात्र पांच से सात सीट का ही अंतर रहा है।  ऐसे में दोनों ही पार्टियां आदिवासियों को लुभाने में जुटी हैं। 

बस्तर को लोकसभा की दृष्टि से देखा जाए, तो दक्षिण छत्तीसगढ़ में बस्तर और कांकेर दो लोकसभा की सीटें हैं। विधानसभा की आठ सीटें कांकेर लोकसभा में और आठ सीटें बस्तर लोकसभा में आती है। यहां दोनों प्रमुख पार्टियों के अलावा जोगी कांग्रेस और बसपा के गठबंधन की भी हलचल है। 

 

कांकेर जिले की तीन विधानसभा सीटों की तस्वीर 

  • 2013 शंकर ध्रुव, कांग्रेस, वोट 50586, संजय कोडोपी, बीजेपी, वोट 45961
  • 2008 सुमित्रा मार्कोले, बीजेपी, वोट 469793, प्रीति नेताम, कांग्रेस, वोट 29290
  • 2003 अघन सिंह, बीजेपी, वोट 50198, श्याम ध्रुव, कांग्रेस, मिले 24387 

कांकेर में कुल 51 फीसदी वोटर पुरुष और 49 फीसदी वोटर महिला हैं। 2013 के विधानसभा चुनाव को देखें तो कांग्रेस के शंकर ध्रुव ने भारतीय जनता पार्टी के संजय कोडोपी को करीब 5 हज़ार वोटों से मात दी थी। इस बार कांकेर से कांग्रेस के शिशुपाल शोरी और बीजेपी के हीरा मरकाम बीच मुकाबला है। कांकेर विधानसभा क्षेत्र में नक्सलवाद बड़ा मुद्दा है जो बस्तर की तमाम सीटों पर भी है। इसके अलावा कांकेर के कोयलीबेड़ा में मेटाबोदली माइंस और दुर्गकोंदल स्थित माइंस से निकलने वाले लाल पानी का मुद्दा लोकसभा में भी गूंजा था।  सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य के मुद्दे भी चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं। 

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अंतागढ़ विधानसभा सीट की तस्वीर 

  • 2014 उपचुनाव भोजराज नाग, बीजेपी, वोट 51530, रूपधर पुडो, एपीआई, वोट 12086
  • 2013 विक्रम उसेंडी,बीजेपी, वोट 53477, मंतुराम पंवार, कांग्रेस, 48306
  • 2008 विक्रम उसेंडी, बीजेपी, वोट 37255,  मंतुराम पंवार, कांग्रेस, कुल वोट 37146

 

अंतागढ़ इसलिए बहुत अहम सीट है क्योंकि इस सीट का नाम आते ही, मंतूराम पंवार का नाम याद आ जाता है। और मंतूराम पवार एपिसोड ने प्रदेश में पिछली बार जो सियासी बवाल मचाया था। इस एपिसोड ने कांग्रेस के बड़े नेताओं को पार्टी से ही बाहर करने के लिए बड़ा कारण और माहौल पैदा किया । बहरहाल,छत्तीसगढ़ के अंतागढ़ विधानसभा सीट भारतीय जनता पार्टी का गढ़ रही है। चुनाव हो या फिर उपचुनाव, बीजेपी ने हर बार यहां पर जीत दर्ज की है। 

2014 में ही यहां हुए उपचुनाव में भी बीजेपी के भोजराज ने जीत दर्ज की थी। अंतागढ़ सीट एसटी के लिए आरक्षित सीट है, यहां पर पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग के वोटरों की संख्या काफी अधिक है। इस बार जिस तरह से बसपा और अजीत जोगी की पार्टी का गठबंधन हुआ है उस लिहाज से भी देखना होगा कि इन चुनावों में इसका असर होगा। अंतागढ़ भी अब तक नक्सलियों के प्रभाव से मुक्त नहीं हो पाया है। इस बार एक फिर कांकेर के सांसद विक्रम उसेंडी बीजेपी के उम्मीदवार हैं और कांग्रेस ने अनूप नाग को टिकट दी है।  

यहां आए दिन नक्सलियों के उत्पात की खबरें आती रहती हैं। सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। इसके अलावा अस्पताल हैं पर डॉक्टर नहीं, स्कूल है, पर शिक्षक नहीं, सड़कें खस्ताहाल हैं। 

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भानुप्रतापपुर विधानसभा की तस्वीर 

  • 2013 मनोज मंडावी, कांग्रेस, वोट 64837,  सतीश लतिया, बीजेपी, कवोट मिले 49941
  • 2008 ब्रह्मानंद, बीजेपी, वोट 41384, मनोज मंडावी, निर्दलीय, वोट 25905
  • 2003: देवलाल दुग्गा, बीजेपी, वोट 40803 मनोज मंडावी, कांग्रेस, कुल वोट मिले 39424

 

छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में स्थित भानुप्रतापपुर विधानसभा सीट आदिवासी बहुल इलाका है।

यहां पर पिछले चुनाव में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी। भानुप्रतापुर महाराष्ट्र बॉर्डर के पास स्थित है। इस क्षेत्र में काफी अधिक संख्या में किसान भी मौजूद हैं, इसलिए हर वर्ग के वोटर यहां पर मौजूद हैं। पिछले तीन चुनाव का इतिहास देखें तो यहां पर दो बार भारतीय जनता पार्टी और एक बार कांग्रेस ने बाजी मारी है।

2003 और 2008 में बीजेपी जीती लेकिन 2013 में हैट्रिक बनाने से चूक गई।  2013 के चुनाव में शकुंतला नरेटी व रूकमणी उइके ने दावेदारी की थी। भाजपा से रूकमणी उइके, रामबाई गोटा के नाम उछाले जा रहे हैं, लेकिन तय कुछ भी नहीं है। इस बार यहां से मनोज मंडावी और देवलाल दुग्गा के बीच सीधी टक्कर है। जोगी कांग्रेस से भानुप्रतापपुर में मानक दरपट्टी को उम्मीदवार बनाया गया है। माइंस होने के बावजूद स्थानीय लोगों को रोजगार का मुद्दा हावी है। इसके अलावा नक्सलवाद यहां भी काफी है। आए दिन घटनाएं होती रहती हैं। कुछ ही दिनों में यहां का परिदृश्य साफ हो जाएगा।

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  केशकाल विधानसभा की तस्वीर

  • 2013 संतराम नेताम, कांग्रेस, कुल वोट मिले 53867, सेवकराम नेताम, बीजेपी, कुल वोट मिले 45178
  • 2008 उपचुनाव सेवकराम नेताम, बीजेपी, वोट 58362, मरकाम, कांग्रेस, वोट 36476
  • 2008 सेवकराम नेतम, बीजेपी, कुल वोट मिले, 46006, धन्नू मरकाम, कांग्रेस, वोट मिले 37392

 

कोंडागांव जिले की केशकाल विधानसभा सीट पर सभी की नज़रें हैं। ये विधानसभा सीट एसटी के लिए आरक्षित है। 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में यहां कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। इससे पहले ये क्षेत्र पूरी तरह से भारतीय जनता पार्टी के कब्जे में था। चुनाव-उपचुनाव दोनों में ही बीजेपी का परचम था। 2013 में कांग्रेस के संतराम नेताम ने करीब 8 हजार वोटों से बीजेपी के सेवकराम को हराया था। सेवक राम यहां से लगातार दो बार चुनाव जीत चुके हैं। यह वही सीट है, जहां ग्रामीणों की समस्याओं को जानने विधायक संतराम नेताम ने 33 गांवों में बाइक और पदयात्रा की थी। लेकिन इन यात्राओं के अतिरिक्त उनके पास बताने के लिए फिलहाल कुछ खास नहीं है।

उन्होंने जनसंपर्क के जरिए लोगों की समस्याओं को सुना और उसे जल्द से जल्द दूर करने का आश्वासन दिया, लेकिन विपक्ष का विधायक होने का आरोप लगाकर पूरा जिम्मा सरकार पर मढ़ा है। उन्होंने कई बार यह बात दोहराई कि विपक्ष में होने के कारण यहां विकास नहीं हो पाया। केशकाल घाटी से सभी परिचित होंगे ही, आज भी यह जाम के लिए भी जाना जाता है और बरसात के दिनों में बस्तर के कट जाने के लिए भी। हालांकि बायपास रोड पर काम चल रहा था, लेकिन पूरा नहीं हुआ है। इस बार केशकाल सीट से कांग्रेस के संतराम नेताम और बीजेपी के हरिशंकर नेताम मैदान में है। 

कुल मिलाकर सत्ता की चाबी के लिए दोनों तरफ से जमकर संघर्ष है। साल 2018 विधान सभा चुनाव में विकास का मुद्दा जमकर उछलेगा। इस मुद्दे को बीजेपी बढ़ा-चढ़ाकर पेश करेगी, जबकि कांग्रेस ने भ्रष्ट्राचार, नक्सल समस्या के मोर्चे पर सरकार की विफलता और आदिवासियों के कल्याण में कोई खास प्रगति नहीं होने का आरोप लगाकर बीजेपी के खिलाफ माहौल खड़ा करने की तैयारी की है।

वेब डेस्क, IBC24


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