नाबालिग बच्ची का हाथ पकड़ना, पैंट की जिप खोलना पोक्सो के तहत यौन हमले के दायरे में नहीं आता: उच्च न्यायालय

नाबालिग बच्ची का हाथ पकड़ना, पैंट की जिप खोलना पोक्सो के तहत यौन हमले के दायरे में नहीं आता: उच्च न्यायालय

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  • Publish Date - January 28, 2021 / 11:27 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:58 PM IST

नागपुर,28 जनवरी (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने अपने एक फैसले में कहा है कि किसी नाबालिग लड़की का हाथ पकड़ना और पैंट की जिप खोलना बाल यौन अपराध संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम के तहत ‘‘यौन हमले’’ अथवा ‘‘ गंभीर यौन हमले’’ के दायरे में नहीं आता।

न्यायमूर्ति पुष्पा गनेदीवाला की एकल पीठ ने यह बात 15 जनवरी को एक याचिका पर सुनवाई के बाद अपने फैसले में कही। याचिका 50 वर्षीय एक व्यक्ति ने दाखिल की थी और पांच साल की एक बच्ची के यौन शोषण करने के दोषी ठहराए जाने संबंधी सत्र अदालत के फैसले को चुनौती दी थी।

लिबनस कुजूर को अक्टूबर 2020 को आईपीसी की संबंधित धाराओं तथा पोक्सो अधिनियम के तहत दोषी ठहराते हुए पांच वर्ष के कारावास की सजा सुनाई गई थी।

न्यायमूर्ति गनेदीवाला ने अपने आदेश में कहा कि अभियोजन ने यह साबित किया है कि आरोपी ने पीड़िता के घर में प्रवेश उसका शीलभंग करने अथवा यौन शोषण करने की नीयत से किया था, लेकिन वह ‘यौन हमले’ अथवा ‘‘गंभीर यौन हमले’’ के आरोपों को साबित नहीं कर पाया है।

उच्च न्यायालय ने कहा कि पोक्सो अधिनियम के तहत ‘‘यौन हमले’’ की परिभाषा यह है कि ‘‘सेक्स की मंशा रखते हुए यौन संबंध बनाए बिना शारीरिक संपर्क’’ होना चाहिए।

न्यायमूर्ति ने कहा,‘‘ अभियोक्त्री (पीड़िता) का हाथ पकड़ने अथवा पैंट की खुली जिप जैसे कृत्य को कथित तौर पर अभियोजन की गवाह (पीड़िता की मां) ने देखा है और इस अदालत का विचार है कि यह ‘यौन हमले’ की परिभाषा के दायरे में नहीं आता।

उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि इस मामले के तथ्य आरोपी (कुजूर) के खिलाफ अपराधिक आरोप तय करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।

अभियोजन के अनुसार कुंजूर 12 फरवरी 2018 को बच्ची के घर उस वक्त गया था जब उसकी मां घर पर नहीं थी। जब मां घर लौटी तो उसने देखा की आरोपी उनकी बच्ची का हाथ पकड़े हैं और उसकी पैंट की जिप खुली है।

लड़की की मां ने निचली अदालत में अपनी गवाही में कहा था कि उनकी बच्ची ने उन्हें बताया था कि आरोपी ने बच्ची से सोने के लिए बिस्तर पर चलने को कहा था।

उच्च न्यायालय ने पोक्सो अधिनियम की धारा आठ और दस के तहत लगाए गए दोष को खारिज कर दिया था लेकिन अन्य धाराओ के तहत उसकी दोषसिद्धि बरकरार रखी थी।

भाषा शोभना उमा

उमा