सरगुजा में चढ़ने लगा है सियासी पारा, मुद्दों या चेहरा नहीं राजपरिवार और समाज का है दखल

सरगुजा में चढ़ने लगा है सियासी पारा, मुद्दों या चेहरा नहीं राजपरिवार और समाज का है दखल

सरगुजा में चढ़ने लगा है सियासी पारा, मुद्दों या चेहरा नहीं राजपरिवार और समाज का है दखल
Modified Date: November 29, 2022 / 08:47 pm IST
Published Date: November 7, 2018 8:18 am IST

रायपुर। छत्तीसगढ़ के सरगुजा में सियासी पारा चढ़ने लगा है। प्रत्याशी प्रचार के लिए घर-घर दस्तक दे रहे हैं। दरअसल, सूबे के इस उत्तरी भाग में सत्ता का समीकरण छिपा हुआ है। कहा जा रहा है कि इस बार अम्बिकापुर, सूरजपुर, बलरामपुर, कोरिया और जशपुर जिले की 14 सीटों से ही सत्ता की राह निकलेगी। यहां की 9 सीटें आदिवासियों के लिये आरक्षित हैं। गौर करने लायक बात यह है कि गैर आदिवासी सीटों पर भी एसटी वोटर निर्णायक भूमिका में है। इसके अलावा सामरी, रामानुजगंज, भरतपुर-सोनहत, लुंड्रा, सीतापुर जैसी कुछ सीटें ऐसी हैं जहां पर विधायक पहचान नहीं है। यहां पर रमन सिंह या टीएस बाबा चेहरा हैं। 
 
 
सरगुजा की अधिकांश सीटों पर सीधा मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच में हैं। लेकिन कुछ इलाकों में हाथी और हल की जुगलबंदी नजर आती हैं। राज्य के उतरी इलाके वाले सरगुजा सहित सूरजपुर और बलरामपुर जिले की आठ विधानसभा सीटें छत्तीसगढ़ की राजनीति में हमेशा निर्णायक रही है। यहां की आठ में से सात सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है। साल 2003 के पहले चुनाव में यह स्थिति भाजपा के साथ थी। तब आठ में से सात सीटों पर भाजपा काबिज थी। कांग्रेस को उम्मीद है कि वह अपनी सीटें बचा लेगी, जबकि भाजपा को उलटफेर का भरोसा है। 
 
 
सरगुजा की सीटों के सियासी समीकरण में समाज और राजपरिवार का खासा दखल देखने को मिलता है। जशपुर में उरांव समाज के एक लाख से ज्यादा वोटर हैं। जूदेव परिवार की छाया में ही इस बार भी चुनाव होंगे। भाजपा ने कहने के लिए यहां से चेहरा तो बदला है, लेकिन इसका कितना प्रभाव पड़ेगा, यह कहना मुश्किल है। बीजेपी ने यहां से गोविंदराम भगत को उतारा है, जबकि कांग्रेस से विनय कुमार भगत मैदान में हैं। 
प्रतापपुर विधानसभा सीट गोंड़ और कंवर बहुल इलाका है। यहां कंबल वाले बाबा की राजनीति रंग देखने को मिल सकता है। यह गृहमंत्री रामसेवक पैकरा की सीट है। कंबल वाले बाबा से गृहमंत्री के गहरे संबंध हैं। इस बार उनका मुकाबला कांग्रेस के डॉ प्रेमसाय टेकाम से है। वे साल 2013 के चुनाव में करीब 8 हजार वोट से जीते थे। 
 
 
सीतापुर विधानसभा में उरांव समाज के लोग निर्णायक भूमिका में हैं। इलाके में सड़क प्रमुख मुद्दा है। यह सीट कांग्रेस के पास है। अमरजीत भगत यहां से विधायक हैं। कांग्रेस ने अमरजीत भगत पर फिर से भरेसा जताया है। वे पिछला चुनाव साढ़े 15 हजार से जीते हैं। इस बार बीजेपी ने उनके खिलाफ नए चेहरे गोपाल राय भगत को टिकट दी है। 
 
 
जशपुर जिले का कुनकुरी विधानसभा कंवर समाज के लोगों का इलाका है। दूसरे नंबर पर उरांव समाज के वोटर हैं।  इसमें भी मिशनरी और सरना एक-दूसरे के विरोधी हैं। चुनाव में यही सबसे बड़ा पहलू है। यहां बदलाव के नारे सुनाई दे रहे हैं। बीजेपी ने यहां से विधायक रोहित साय की टिकट काटकर भरत साय को टिकट दी है, जबकि वे पिछले चुनाव में 28 हजार से ज्यादा वोटों से जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। कांग्रेस ने भी यहां से नए उत्तमदीन कुंज को टिकट दी है। 
 
सोनहत-भरतपुर विधानभा सीट भी महत्वपूर्ण सीट है। यहां भी गोंड़ ही बहुसंख्यक और निर्णायक दोनों हैं। भाजपा के खिलाफ कांग्रेस ने इस बार भी गुलाब कमरो पर भरोसा जताया है। वे पिछला चुनाव चंपादेवी पावले से करीब 46 सौ वोटों से हार चुके हैं। बीजेपी ने यहां से चंपादेवी पावले को टिकट दी है। 
 
 
पत्थलगांव विधानसभा क्षेत्र में कंवर के अलावा गोंड़ और उरांव समाज के लोगों की संख्या अधिक है। विधायक की सक्रियता की चर्चा है। इस सीट से एक बार फिर बीजेपी के शिवशंकर पैकरा और कांग्रेस के रामपुकार सिंह के बीच टक्कर है। पिछली बार भी यही दोनों प्रतिद्वंदी आमने सामने थे। रामपुकार सिंह 4 हजार से कुछ कम वोट से चुनाव हार गए थे। 
 
मनेन्द्रगढ़ सीट में व्यापारी वर्ग की संख्या ज्यादा है। भाजपा विधायक श्याम बिहारी जायसवाल से कांग्रेस के डॉ. विनय जायसवाल के बीच मुकाबला है। यहां जोगी कांग्रेस के प्रभाव ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। 
 
सामरी सीट में उरांव-कंवर जनजाति का वर्चस्व है। सियासत पूर्व कद्दावर नेता लरंग साय के इर्द-गिर्द ही घूम रही है। जातीय समीकरण ही निर्णायक होगा। कांग्रेस ने लुंड्रा के विधायक चिंतामणि महराज को उतारा है। जबकि बीजेपी के सिद्धनाथ पैकरा मैदान होंगे। 
 
 
लुंड्रा सीट गोंड़, कंवर, उराँव समाज के प्रभाव वाली मानी जाती है। सामरी के बाद लुंड्रा में भी गहिरा गुरु का काफी प्रभाव है। राजनीति अब तक इन्हीं पक्षों के बीच से अपना रास्ता बनाती आई है। विकास के बड़े काम न होने से गुस्सा है। गुस्सा विधायक के खिलाफ है या सत्ता पक्ष के खिलाफ,यह कहना मुश्किल है। इस सीट पर कांग्रेस ने सामरी से चुनाव हारने वाले प्रीतम राम को प्रत्याशी बनाया है। बीजेपी की ओर से विजयनाथ सिंह मैदान में है। 
 
बैकुंठपुर विधानसभा सीट राजपरिवार के प्रभाव में रहने वाली सीट है, लेकन इस बार चौंकाने वाले नतीजों की उम्मीद की जा रही है। उल्लेखनीय है कि सरगुजा के ही राजपरिवार से जुड़े कोरिया रियासत के रामचंद्र सिंहदेव सत्ता की राजनीति से दूर सत्यजीत रे की संगत में फोटोग्राफी का काम कर रहे थे और दूसरे व्यवसाय संभाल रहे थे। 1967 में वे पहली बार चुनाव मैदान में उतरे और उन्हें 16 विभागों का मंत्री बनाया गया। अपनी सादगी के लिए दुनिया भर में चर्चित रामचंद्र सिंहदेव छह बार चुनाव जीत कर विधायक और मंत्री बनते रहे।  वे छत्तीसगढ़ के पहले वित्त मंत्री भी थे। इसी साल जुलाई में उनका निधन हो गया जिसके बाद अब उनकी भतीजी अंबिका सिंहदेव कांग्रेस पार्टी की टिकट से विधानसभा चुनाव लड़ रही हैं। जबकि बीजेपी ने भैय्यालाल राजवाड़े को दोहराया है। यहां राजवाड़े और पटेल समाज का राजनीति में दबदबा रहा है। राजा के निधन के बाद की राजनीति पर सबकी निगाहें हैं। 
 
 
पूरे जिले की सबसे हॉट सीट अंबिकापुर है, क्योंकि यहां से नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव चुनाव लड़ रहे हैं। यहां उनका अच्छा खासा प्रभाव है। छत्तीसगढ़ में नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव के पिता एमएस सिंहदेव अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव रहने के बाद योजना आयोग के उपाध्यक्ष भी रहे। इसी तरह देवेंद्र कुमारी सिंहदेव विधायक और सिंचाई मंत्री बनीं. बाद के सालों में अंबिकापुर की सीट आरक्षित हो गई तो राज परिवार चुनावी राजनीति से अलग हो गया। 
लेकिन 2008 में जब यह सीट फिर से सामान्य हुई तो टीएस सिंहदेव मैदान में उतरे। टीएस सिंहदेव ने भाजपा के अनुराग सिंहदेव को 980 वोटों से हराया और 2013 के चुनाव में फिर से उन्होंने अनुराग सिंहदेव को 19,558 वोटों से मात दी। सिंहदेव को इस जीत के बाद विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया गया। सिंहदेव को टक्कर देने के लिए एक बार फिर अनुराग सिंहदेव हैं। 
 
प्रेमनगर विधानसभा सीट अनारक्षित सीट है। दो लाख वोटरों वाली इस सीट पर 70 हजार एसटी वोटर हैं। गोंड़ समाज के 42 हजार से अधिक वोटर। यही निर्णायक। यहां कांग्रेस के खेलसाय सिंह फिर मैदान में हैं। उन्होंने रेणुका सिंह को हराया था। बीजेपी ने इस बार खेलसाय के खिलाफ विजयप्रताप सिंह को उतारा है। वे बीजपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष शिव प्रताप सिंह के बेटे हैं। 
 
 
रामानुजगंज सीट काफी महत्वपूर्ण सीट मानी जाती है। यहां से पिछली बार जिला बनाए जाने पर रामानुजगंज और बलरामपुर के विवाद ने चुनाव को प्रभावित किया था। रामविचार नेताम कांग्रेस के वृहस्पति सिंह से चुनाव हार गए थे। इसके बाद उनका संगठन में प्रभाव बढ़ा है। माना जा रहा था कि उनको एक बार उतारा जा सकता है, वे राज्य सभा के सदस्य भी हैं। बीजेपी ने यहां से रामकिशनु सिंह को टिकट दी है, और कांग्रेस से वृहस्पति सिंह मैदान में हैं। 
जिसे की भटगांव सामान्य सीट है। यहां से कांग्रेस विधायक पारस राजवाड़े को टिकट दी गई है, जबकि बीजेपी से रजनी त्रिपाठी मैदान में है।


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