कार्तिक पूर्णिमा पर दर्दर क्षेत्र में दो लाख श्रद्धालुओं ने किया स्‍नान

कार्तिक पूर्णिमा पर दर्दर क्षेत्र में दो लाख श्रद्धालुओं ने किया स्‍नान

कार्तिक पूर्णिमा पर दर्दर क्षेत्र में दो लाख श्रद्धालुओं ने किया स्‍नान
Modified Date: November 29, 2022 / 08:03 pm IST
Published Date: November 30, 2020 1:39 pm IST

बलिया (उप्र), 30 नवंबर (भाषा) बलिया जिले के दर्दर क्षेत्र में कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर सोमवार को तकरीबन दो लाख श्रद्धालुओं ने स्नान किया।

कोविड-19 के प्रोटोकॉल के चलते पहले प्रशासन ने इस आयोजन पर रोक लगा दी थी लेकिन भारी विरोध के बाद प्रशासन ने इसकी अनुमति दे दी।

अपर पुलिस अधीक्षक संजय यादव ने बताया कि कोविड-19 वैश्विक महामारी के कहर के बावजूद तकरीबन दो लाख श्रद्धालुओं ने स्नान किया। उन्होंने बताया कि स्नान के दौरान कोई अप्रिय घटना सामने नहीं आयी।

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कार्तिक पूर्णिमा पर पवित्र स्नान के साथ ही महर्षि भृगु ऋषि के शिष्य दर्दर मुनि के नाम पर लगने वाला प्रसिद्ध ददरी मेला सोमवार से शुरू हो गया।

कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर दर्दर क्षेत्र में रविवार दोपहर से ही श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला शुरू हो गया था।

कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण मेले के स्वरूप में अंतर जरूर दिखा। लगभग तीन किलोमीटर क्षेत्र में लगने वाला यह मेला इस साल कम दूरी में ही सिमट गया है। ददरी मेले में सुरक्षा को लेकर पुलिस कर्मी पूरी तरह मुस्तैद दिखे। संक्रमण से बचाव का प्रचार भी होता रहा। सभी लोगों को मास्क पहनने और सुरक्षित दूरी का पालन करने का निर्देश दिया जा रहा था।

उल्लेखनीय है कि कोविड-19 के कहर को देखते हुए जिला प्रशासन ने ददरी मेला का कार्यक्रम स्थगित कर दिया था, जिसका विभिन्न संगठनों व राजनीतिक दलों ने विरोध किया था।

प्रदेश के संसदीय कार्य राज्य मंत्री आनन्द स्वरूप शुक्ल के हस्‍तक्षेप के बाद जिला प्रशासन ने ददरी मेला की स्वीकृति दे दी।

क्षेत्र के बुजुर्गों का कहना है कि ददरी मेला गंगा की जल धारा को अविरल बनाये रखने के ऋषि-मुनियों के प्रयास का जीवंत प्रमाण है। किवदंतियों के अनुसार, गंगा के प्रवाह को बनाये रखने के लिये महर्षि भृगु ने सरयू नदी की जलधारा का अयोध्या से अपने शिष्य दर्दर मुनि के द्वारा बलिया में संगम कराया था। इसके उपलक्ष्य में संत समागम से शुरू हुई परंपरा लोक मेले के रूप में आज तक विद्यमान है।

ददरी मेला की परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है और वर्तमान समय में भी दूर-दूर से आए ऋषि-मुनि एवं गृहस्थ एक महीने तक यहां वास करते हैं।

ददरी मेले की ऐतिहासिकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चीनी यात्री फाह्यान ने इस मेले का अपनी पुस्तक में उल्लेख किया है।

ददरी मेले की एक और पहचान कवि सम्मेलन के रूप में है। भारतेंदु हरिश्‍चंद्र ने बलिया के इसी ददरी मेले के मंच से वर्ष 1884 में ‘भारत वर्ष की उन्‍नति कैसे हो’ विषय पर ऐतिहासिक भाषण दिया था। उसके बाद हर साल भारतेंदु हरिश्‍चंद्र कला मंच पर देश के नामी-गिरामी कवियों की महफिल सजती आ रही है। हालांकि, इस वर्ष वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण कवि सम्मेलन का आयोजन स्थगित कर दिया गया है।

भाषा सं आनन्‍द धीरज

धीरज


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