आज 35 साल बाद भी यहां जख्म से कराहते हैं लोग, विश्व की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी का गवाह बना 26 अप्रैल

आज 35 साल बाद भी यहां जख्म से कराहते हैं लोग, विश्व की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी का गवाह बना 26 अप्रैल

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  • Publish Date - April 26, 2021 / 01:08 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:29 PM IST

26 अप्रैल का इतिहासः जब भी दुनिया में हुई औद्योगिक त्रासदियों की बात आती है तो चेर्नोबिल के न्यूक्लियर प्लांट में हुआ हादसा टॉप-5 में गिना जाता है। उस समय के सोवियत संघ और आज के यूक्रेन में स्थित चेर्नोबिल न्यूक्लियर प्लांट में टेस्टिंग होनी थी। पर क्या पता था कि वह टेस्ट कई लोगों के लिए अंतिम पल साबित होगा। 50 लाख लोग प्लांट में हुए हादसे से निकले रेडिएशन का शिकार बने। इससे कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों की वजह से 4,000 से भी अधिक लोगों की मौत हुई। बात 26 अप्रैल 1986 की है। यानी भोपाल में यूनियन कार्बाइड से रिसी जहरीली गैस के हादसे के सिर्फ दो साल बाद। यूक्रेन की राजधानी कीव से करीब 130 किमी उत्तर में प्रिपयेट शहर में चेर्नोबिल पॉवर प्लांट लगना था। उस समय यूक्रेन सोवियत संघ का हिस्सा था। चेर्नोबिल पॉवर स्टेशन में चार न्यूक्लियर रिएक्टर थे। एक दशक में इन्हें बनाया गया था। जब हादसा हुआ तब दो रिएक्टर्स पर काम चल रहा था।

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दरअसल, 26 अप्रैल को न्यूक्लियर प्लांट में टेस्ट होना था। इससे पता चलता कि बिजली जाने पर डीजल जनरेटर पम्प को कितनी देर चालू रख सकता है। टरबाइन कितनी देर तक घूम सकता है। टेस्ट की तैयारी 1-2 दिन पहले ही शुरू हो गई थी। 26 अप्रैल की रात टेस्ट शुरू हुआ। रात करीब 1ः30 बजे टरबाइन को कंट्रोल करने वाले वॉल्व को हटाया गया। रिएक्टर को आपात स्थिति में ठंडा रखने वाले सिस्टम और रिएक्टर के अंदर होने वाली न्यूक्लियर फ्यूजन को भी रोक दिया गया। अचानक रिएक्टर के अंदर न्यूक्लियर फ्यूजन की प्रक्रिया कंट्रोल से बाहर हो गई। रिएक्टर के सभी आठ कूलिंग पम्प कम पॉवर पर चलने लगे, जिससे रिएक्टर गर्म होने लगा और इससे न्यूक्लियर रिएक्शन और तेज हो गई। प्लांट में अफरा-तफरी का माहौल था। रिएक्टर को बंद करने की कोशिशें हो रही थीं कि रिएक्टर में जोरदार धमाका हुआ। धमाका इतना जबरदस्त था कि रिएक्टर की छत उड़ गई। वहां 32 लोगों की मौत हो गई। रेडियोएक्टिव रेडिएशन हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए परमाणु बम से कई गुना अधिक था। हवा के साथ ये रेडिएशन उत्तरी और पूर्वी यूरोप में फैल गया।

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विकिरण फैलने से रूस, यूक्रेन, बेलारूस के 50 लाख लोग चपेट में आए। इस विकिरण के फैलने से कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से 4 हजार लोग मारे गए। 2.5 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था। लाखों लोगों का स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित हुआ। 2000 में चेर्नोबिल में काम कर रहे आखिरी रिएक्टर को भी बंद कर दिया गया। सोवियत संघ ने इस घटना को दबाना चाहा। कई दिनों तक इस हादसे की जानकारी दुनिया को नहीं दी गई। रेडिएशन हवा में फैल चुका था, इसलिए उसको छिपाना मुश्किल था। रेडिएशन और राख स्वीडन के रेडिएशन मॉनिटरिंग स्टेशन तक पहुंची। वह चेर्नोबिल से करीब 1100 किलोमीटर की दूरी पर था। हवा में अचानक से रेडिएशन बढ़ने पर स्वीडन की अथॉरिटी चौकन्ना हो गई। वे पता लगाने में जुट गए कि यह रेडिएशन कहां से आया। जब स्वीडन ने मॉस्को सरकार से पूछा तब सोवियत संघ ने इस घटना को स्वीकारा।