कोलंबो, 27 अक्टूबर (भाषा) श्रीलंकाई वकीलों के प्रभावशाली संगठन ने बृहस्पतिवार को कहा कि देश के संविधान में पिछले सप्ताह किया गया 21 ए संशोधन राष्ट्रपति के कार्यपालिका संबंधी अधिकार को नियंत्रित व संतुलित करने के लिए पर्याप्त व्यवस्था नहीं करता।
बार एसोसिएशन ऑफ श्रीलंका (बीएएसएल) ने एक बयान में कहा कि महीनों लंबे प्रदर्शन के दबाव में संशोधन लाया गया है जिसकी वजह से जुलाई महीने में तत्कालीन राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को इस्तीफा देना पड़ा था।
बयान में कहा गया, ‘‘संविधान में संशोधन की जरूरत मौजूदा आर्थिक संकट के खिलाफ पूरे देश में पैदा हुए जन आंदोलन की वजह से पड़ी। यह महसूस किया गया कि इस संकट की वजहों में से एक वजह कार्यपालिका के प्रमुख के तौर पर राष्ट्रपति में निहित कार्यकारी शक्तियों को नियंत्रित और संतुलनित करने की प्रणाली का अभाव था।’’
श्रीलंका के सांसदों ने 21 अक्टूबर को लंबे समय से अपेक्षित 22 वें संविधान संशोधन को मंजूरी दी जिसमें कार्यपालिका प्रमुख के तौर पर राष्ट्रपति की शक्तियों के मुकाबले संसद को सशक्त किया गया है। 22वां संशोधन मूल रूप से 21 ए तौर पर पेश किया गया था जो 20ए के स्थान पर लाया गया था।
बीएएसएल ने कहा कि खेदजनक है कि ‘‘21ए पूरी तरह से 20ए से पूर्व की स्थिति को बहाल नहीं करता।’’
बयान में कहा गया कि यह जरूरी है कि संवैधानिक परिषद और स्वतंत्र आयोगों जिसे 21ए के तहत पुनर्गठित किया जाएगा ‘‘ स्वतंत्र और निष्पक्ष हों और ऐसी संस्था हों जो श्रीलंका और उसके संस्थाओं के प्रति विश्वास को बहाल कर सके।’’
भाषा धीरज नरेश
नरेश
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