रुश्दी ने अभिव्यक्ति, धर्म, प्रेस की स्वतंत्रता के सार्वभौमिक अधिकारों के लिए आवाज उठाई : ब्लिंकन

रुश्दी ने अभिव्यक्ति, धर्म, प्रेस की स्वतंत्रता के सार्वभौमिक अधिकारों के लिए आवाज उठाई : ब्लिंकन

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  • Publish Date - August 15, 2022 / 09:12 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:03 PM IST

(ललित के झा)

वाशिंगटन, 15 अगस्त (भाषा) अमेरिका के विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिेकन ने रविवार को कहा कि सलमान रुश्दी ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धर्म की स्वतंत्रता और प्रेस की स्वतंत्रता के सार्वभौमिक अधिकारों के लिए लगातार आवाज उठाई है।

उन्होंने दावा किया कि ईरान के सरकारी संस्थानों ने भारतीय मूल के लेखक के खिलाफ काफी समय तक हिंसा भड़काई और सरकारी मीडिया ने भी हाल ही में उन पर हुए हमले की निंदा नहीं की।

गौरतलब है कि रुशदी (75) पर शुक्रवार को न्यूयॉर्क में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान न्यूजर्सी के 24 वर्षीय युवक ने चाकू से हमला कर दिया था। अमेरिकी अधिकारियों ने इसे ‘लक्षित, बिना किसी उकसावे के और एक साजिश के तहत किया गया’ हमला बताया है।

ब्लिंकन ने एक बयान जारी कर कहा कि वे घातक हमले में घायल सलमान रुश्दी के जल्द स्वस्थ होने की कामना करते हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘एक साहित्यकार से कहीं अधिक सक्रिय भूमिका निभाते हुए रुश्दी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धर्म या आस्था की स्वतंत्रता और प्रेस की स्वतंत्रता के सार्वभौमिक अधिकारों के लिए लगातार आवाज उठाते रहे हैं। कानून प्रवर्तन अधिकारी मामले की जांच कर रहे हैं। हालांकि, मुझे उन खतरनाक ताकतों का ख्याल आ रहा है, जो इन अधिकारों को कमजोर करने की कोशिश करते रहे हैं, जिसमें नफरत भरे बयानों को बढ़ावा देना और हिंसा के लिए उकसाना शामिल है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘खासकर ईरान के सरकारी संस्थान कई पीढ़ियों से रुशदी के खिलाफ हिंसा भड़का रहे हैं।’’

ब्लिंकन ने कहा कि ईरान की सरकारी मीडिया ने भी रुशदी पर हुए हमले की निंदा नहीं की और न ही कोई अप्रसन्नता व्यक्त की।

उन्होंने कहा कि अमेरिका और उसके सहयोगी इससे निपटने के लिए हर तरीका अपनाएंगे और इन खतरों के आगे घुटने नहीं टेकेंगे।

ब्लिंकन ने कहा, ‘‘रुश्दी और दुनियाभर के वे सभी लोग, जिन्होंने इस तरह के खतरों का सामना किया है, हम उनके प्रति एकजुटता व्यक्त करते हैं। यही नहीं, हम एक अंतरराष्ट्रीय समुदाय के रूप में उन लोगों के खिलाफ एकजुट होने की अनिवार्यता को रेखांकित करते हैं, जो इन सार्वभौमिक अधिकारों के लिए खतरा हैं।’’

भाषा निहारिका पारुल

पारुल