चंद्रमा की ऊपरी परत में ही इतनी ऑक्सीजन है कि 8 अरब लोगों को 100,000 वर्षों तक जीवित रख सके |

चंद्रमा की ऊपरी परत में ही इतनी ऑक्सीजन है कि 8 अरब लोगों को 100,000 वर्षों तक जीवित रख सके

चंद्रमा की ऊपरी परत में ही इतनी ऑक्सीजन है कि 8 अरब लोगों को 100,000 वर्षों तक जीवित रख सके

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:47 PM IST, Published Date : November 12, 2021/1:49 pm IST

जॉन ग्रांट, सदर्न क्रॉस विश्वविद्यालय

लिस्मोर (ऑस्ट्रेलिया), 11 नवंबर (द कन्वरसेशन) अंतरिक्ष अन्वेषण में प्रगति के साथ-साथ, हमने हाल ही में ऐसी प्रौद्योगिकियों पर बहुत अधिक समय और पैसा निवेश किया है जो अंतरिक्ष संसाधनों के प्रभावी उपयोग को संभव कर सकती हैं और इन तमाम प्रयासों में चंद्रमा पर ऑक्सीजन का उत्पादन करने का सबसे अच्छा तरीका खोजने पर विशेष ध्यान रहा है।

अक्टूबर में, ऑस्ट्रेलियाई अंतरिक्ष एजेंसी और नासा ने आर्टेमिस कार्यक्रम के तहत चंद्रमा पर एक ऑस्ट्रेलियाई निर्मित रोवर भेजने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसका लक्ष्य चंद्र चट्टानों को इकट्ठा करना था जो अंततः चंद्रमा पर सांस लेने योग्य ऑक्सीजन प्रदान कर सकते थे।

हालांकि चंद्रमा का अपना एक वातावरण है, यह बहुत पतला है और ज्यादातर हाइड्रोजन, नियॉन और आर्गन से बना है। यह उस तरह का गैसीय मिश्रण नहीं है जो मनुष्यों जैसे ऑक्सीजन पर निर्भर स्तनधारियों को बनाए रख सके।

इसके अनुसार वास्तव में चंद्रमा पर भरपूर ऑक्सीजन है। यह सिर्फ गैसीय रूप में नहीं है। इसके बजाय यह चंद्रमा को ढकने वाली चट्टान की परत और महीन धूल जिसे रेजोलिथ कहा जाता है, में फंस गई है। अगर हम इस परत से ऑक्सीजन निकाल सकें, तो क्या यह चंद्रमा पर मानव जीवन बनाए रखने करने के लिए पर्याप्त होगा?

ऑक्सीजन का स्रोत

ऑक्सीजन हमारे आसपास की जमीन में कई खनिजों में पाई जा सकती है। और चंद्रमा ज्यादातर उन्हीं चट्टानों से बना है जो आप पृथ्वी पर पाएंगे (हालाँकि थोड़ी अधिक मात्रा में सामग्री जो उल्काओं से आई है)।

सिलिका, एल्युमिनियम और आयरन और मैग्नीशियम ऑक्साइड जैसे खनिज चंद्रमा पर बहुलता में हैं। इन सभी खनिजों में ऑक्सीजन होता है, लेकिन इस रूप में नहीं कि हमारे फेफड़े तक पहुंच सकें।

चंद्रमा पर ये खनिज कुछ अलग रूपों में मौजूद हैं जिनमें कठोर चट्टान, धूल, बजरी और सतह को ढकने वाले पत्थर शामिल हैं। यह सामग्री अनगिनत सहस्राब्दियों से उल्कापिंडों के चंद्र सतह पर दुर्घटनाग्रस्त होने से वहां एकत्र हुई है।

कुछ लोग चंद्रमा की ऊपरी परत को ‘‘मिट्टी’’ कहते हैं, लेकिन एक मृदा वैज्ञानिक के रूप में मुझे इस शब्द का उपयोग करने में संकोच होता है। मिट्टी जैसा कि हम जानते हैं कि यह बहुत ही जादुई चीज है जो केवल पृथ्वी पर होती है। इसे मिट्टी की मूल सामग्री पर काम करने वाले जीवों की एक विशाल श्रृंखला द्वारा लाखों वर्षों में बनाया गया है। पृथ्वी की मिट्टी उल्लेखनीय भौतिक, रासायनिक और जैविक विशेषताओं से ओत-प्रोत है। इस बीच, चंद्रमा की सतह पर सामग्री मूल रूप से अपने मूल, अछूते रूप में रेजोलिथ है।

एक पदार्थ अंदर जाता है, दो बाहर आते हैं

चंद्रमा का रेजोलिथ लगभग 45% ऑक्सीजन से बना है। लेकिन वह ऑक्सीजन ऊपर बताए गए खनिजों में कसकर बंधी हुई है। उन मजबूत बंधनों को तोड़ने के लिए, हमें ऊर्जा लगाने की जरूरत है।

यदि आप इलेक्ट्रोलिसिस के बारे में जानते हैं तो आप इससे परिचित हो सकते हैं। पृथ्वी पर इस प्रक्रिया का उपयोग आमतौर पर विनिर्माण में किया जाता है, जैसे कि एल्यूमीनियम का उत्पादन करना। एल्यूमीनियम को ऑक्सीजन से अलग करने के लिए इलेक्ट्रोड के माध्यम से एक विद्युत प्रवाह एल्यूमीनियम ऑक्साइड (आमतौर पर एल्यूमिना कहा जाता है) के तरल रूप से प्रवाहित किया जाता है।

इस मामले में, ऑक्सीजन एक उपोत्पाद के रूप में उत्पन्न होता है। चंद्रमा पर, ऑक्सीजन मुख्य उत्पाद होगा और निकाला गया एल्यूमीनियम (या अन्य धातु) संभावित रूप से उपयोगी उपोत्पाद होगा।

यह एक बहुत ही सीधी प्रक्रिया है, लेकिन एक झोल है: यह बहुत ऊर्जा मांगती है। टिकाऊ होने के लिए, इसे सौर ऊर्जा या चंद्रमा पर उपलब्ध अन्य ऊर्जा स्रोतों की सहायता की जरूरत होगी।

रेजोलिथ से ऑक्सीजन निकालने के लिए भी पर्याप्त औद्योगिक उपकरणों की आवश्यकता होगी। हमें पहले ठोस धातु ऑक्साइड को तरल रूप में बदलना होगा, या तो गर्मी, या गर्मी को सॉल्वैंट्स या इलेक्ट्रोलाइट्स के साथ मिलाकर। हमारे पास पृथ्वी पर ऐसा करने की तकनीक है, लेकिन इस उपकरण को चंद्रमा पर ले जाना – और इसे चलाने के लिए पर्याप्त ऊर्जा पैदा करना – एक बड़ी चुनौती होगी।

इस साल की शुरुआत में, बेल्जियम स्थित स्टार्टअप स्पेस एप्लीकेशन सर्विसेज ने घोषणा की कि वह इलेक्ट्रोलिसिस के माध्यम से ऑक्सीजन बनाने की प्रक्रिया में सुधार के लिए तीन प्रयोगात्मक रिएक्टरों का निर्माण कर रहा है। वह यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के एक विशेष मिशन के हिस्से के रूप में 2025 तक चंद्रमा पर प्रौद्योगिकी भेजने की उम्मीद करते हैं।

चंद्रमा कितनी ऑक्सीजन प्रदान कर सकता है?

इसके अनुसार, जब हम इसे खींचने का प्रबंधन करते हैं, तो चंद्रमा वास्तव में कितनी ऑक्सीजन दे सकता है? खैर, अगर यह निकाली जा सकी तो बहुत ज्यादा।

यदि हम चंद्रमा की गहरी कठोर चट्टानों में फंसी ऑक्सीजन की उपेक्षा करें – और केवल रेजोलिथ पर विचार करें जो सतह पर आसानी से उपलब्ध है – तो हम कुछ अनुमानों के साथ आ सकते हैं।

चंद्र रेजोलिथ के प्रत्येक घन मीटर में औसतन 1.4 टन खनिज होते हैं, जिसमें लगभग 630 किलोग्राम ऑक्सीजन शामिल है। नासा का कहना है कि मनुष्य को जीवित रहने के लिए एक दिन में लगभग 800 ग्राम ऑक्सीजन सांस लेने की आवश्यकता होती है। तो 630 किलो ऑक्सीजन एक व्यक्ति को लगभग दो साल (या सिर्फ अधिक) तक जीवित रखेगी।

अब मान लेते हैं कि चंद्रमा पर रेजोलिथ की औसत गहराई लगभग दस मीटर है, और हम इससे सारी ऑक्सीजन निकाल सकते हैं। इसका मतलब है कि चंद्रमा की सतह के शीर्ष दस मीटर पृथ्वी पर सभी आठ अरब लोगों को लगभग 100,000 वर्षों तक सांस के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन प्रदान करेंगे।

यह इस बात पर भी निर्भर करेगा कि हम कितने प्रभावी ढंग से ऑक्सीजन निकालने और उपयोग करने में सफल रहेंगे। बहरहाल, यह आंकड़ा काफी अद्भुत है! ऐसे में हमें नीले ग्रह – और विशेष रूप से इसकी मिट्टी की रक्षा के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए – जो हमारे बिना प्रयास किए भी सभी स्थलीय जीवन को बने रहने में सहयोग देता है।

द कन्वरसेशन एकता एकता

एकता

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)