नालंदा महाविहार के आसपास अतिक्रमण हटाने को लेकर एएसआई और बिहार सरकार के बीच विवाद जारी
नालंदा महाविहार के आसपास अतिक्रमण हटाने को लेकर एएसआई और बिहार सरकार के बीच विवाद जारी
पटना, 10 अगस्त (भाषा) विश्व धरोहर स्थल ‘नालंदा महाविहार’ के आसपास अतिक्रमण हटाने को लेकर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के पटना सर्कल और बिहार सरकार के बीच विवाद जारी है।
एएसआई के पटना सर्कल की अधीक्षण पुरातत्वविद गौतमी भट्टाचार्य ने जहां नालंदा महाविहार के आसपास अतिक्रमण हटाने में स्थानीय प्रशासन पर ‘उदासीनता’ का आरोप लगाया, वहीं नालंदा के जिलाधिकारी शशांक शुभंकर ने कहा कि यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल के आसपास के क्षेत्रों का लंबे समय तक उपयोग नहीं किया जाना खाली जगह पर फेरीवालों को आमंत्रित करता है।
नालंदा महाविहार के प्रवेश द्वार के दोनों किनारों पर सभी अनधिकृत दुकानों को हटाने के बाद जिला प्रशासन ने पिछले वर्ष 23 दिसंबर को भट्टाचार्य को लिखे एक पत्र में उनसे विश्व धरोहर स्थल से संबंधित कायाकल्प के कार्य को तुरंत शुरू करने का अनुरोध किया गया था।
शुभंकर ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ”अगर लंबे समय तक खाली जमीन (अतिक्रमण मुक्त) का उपयोग नहीं किया गया तो उस पर फिर से कब्जा होना शुरू हो सकता है।”
शुभंकर ने कहा, ‘‘जिला प्रशासन अतिक्रमण के प्रति ‘बिल्कुल बर्दास्त नहीं करने’ की नीति अपनाए हुए है। हम नियमित रूप से जिला शहर और नालंदा महाविहार के आसपास अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाते हैं और अतिक्रमण करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करते हैं। लेकिन एएसआई को भी सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए और विश्व धरोहर स्थल के चारों ओर कायाकल्प से जुड़े कार्य को शुरू करे। फिलहाल नालंदा महाविहार के आसपास अतिक्रमण हटाया जा रहा है। मुझे उम्मीद है कि एएसआई अब खाली जमीन का उपयोग करेगा।’’
उन्होंने उल्लेख किया कि धरोहर स्थल के आसपास से अतिक्रमण को तत्काल हटाने के संबंध में उन्हें हाल ही में बिहार के कला, संस्कृति एवं युवा विभाग के अतिरिक्त सचिव सह-निदेशक (पुरातत्व) दीपक आनंद से एक पत्र मिला है।
भट्टाचार्य ने 21 जुलाई को बिहार सरकार के कला, संस्कृति और युवा विभाग की अपर मुख्य सचिव (एसीएस) हरजोत कौर बम्हरा को संबोधित एक पत्र में नालंदा महाविहार के आसपास अतिक्रमण को साफ करने में हस्तक्षेप की मांग की थी।
अधीक्षण पुरातत्वविद् ने नालंदा महाविहार के आसपास जारी अतिक्रमण पर नाराजगी व्यक्त की थी और स्थानीय प्रशासन पर इसके प्रति ‘उदासीनता’ बरतने का आरोप लगाया था।
भट्टाचार्य द्वारा एसीएस को लिखे उक्त पत्र, जिसकी प्रति नालंदा के जिलाधिकारी को भी भेजी गयी थी, में कहा गया था, ‘नालंदा में नालंदा महाविहार और पुरातत्व संग्रहालय के आसपास बार-बार होने वाला अतिक्रमण विश्व धरोहर स्थल के उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य (ओयूवी) के साथ-साथ इसकी प्रामाणिकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए अच्छा संकेत नहीं है। इसका समाधान जल्द से जल्द किए जाने की आवश्यकता है ताकि इस स्थल की पवित्रता बरकरार रहे।’’
नालंदा के जिलाधकारी की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भट्टाचार्य ने बृहस्पतिवार को ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “एएसआई का क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार नालंदा महाविहार की चहारदीवारी से परे खर्च की अनुमति नहीं देता है। एएसआई उस जमीन पर कुछ भी नहीं कर सकता जो उसके क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र में नहीं है। जिला प्रशासन को अपना काम करना है। यदि वे (जिला प्रशासन) कुछ नहीं कर सकते हैं, तो वे हमें जमीन सौंप सकते हैं और उसके बाद ही एएसआई कुछ कर सकता है।”
उन्होंने कहा कि आगरा विकास प्राधिकरण (एडीए) ने ताजमहल के आसपास के क्षेत्र को ‘वाहन मुक्त’ और ‘रेहड़ी-पटरी मुक्त’ क्षेत्र घोषित कर दिया है और एडीए स्मारक से परे के क्षेत्र का रखरखाव करता है।
भट्टाचार्य ने कहा, ‘‘जिलाधिकारी (नालंदा) इस तरह का बयान देकर अपनी जिम्मेदारी से बचना चाहते हैं। एक बात मुझे अवश्य कहनी चाहिए कि नालंदा महाविहार का विश्व धरोहर का दर्जा केवल एएसआई की जिम्मेदारी नहीं है। चाहे वह नालंदा हो या राजगीर, स्थानीय प्रशासन को जिम्मेदारी उठानी चाहिए और अब तक वे विफल रहे हैं।’’
पटना से लगभग 95 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में स्थित नालंदा महाविहार को प्राचीन दुनिया के सबसे महान विश्वविद्यालयों में से एक माना जाता है और इसकी स्थापना महान गुप्त राजवंश के कुमारगुप्त प्रथम (413-455 ईस्वी) ने की थी।
भाषा अनवर मनीषा संतोष
संतोष

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