– सौरभ तिवारी
Batangad : छत्तीसगढ़ में वोटों की फसल धान की सरकारी खरीदी से तय होती है। जो पार्टी धान के सरकारी खरीदी की जितनी ज्यादा बोली लगाती है, वोटों की फसल भी उसी अनुरूप लहलहाती है। पिछले चुनाव में कांग्रेस की सरकार गठन के पीछे धान की इसी सरकारी खरीदी ने अहम भूमिका निभाई थी। लिहाजा इस चुनाव में धान की कीमत को लेकर भाजपा और कांग्रेस के बीच जबरजस्त कंपटीशन चल रहा है। इस प्रतिस्पर्धा में फिलहाल भाजपा बाजी मारती दिख रही है। धान के बोनस और सरकारी खरीदी की कीमत के मुद्दे पर अपनी पिछली सरकार गंवाने वाली भाजपा ने पिछली हार से सीख लेते हुए तगड़ा दांव चल दिया है। भाजपा का संकल्प पत्र जारी करते हुए अमित शाह ने ऐलान किया कि सत्ता में वापसी होने पर पार्टी किसानों से 3100 रुपए प्रति क्विंटल की दर पर ना केवल धान की खरीदी करेगी, बल्कि इसका एकमुश्त भुगतान भी करेगी। साथ ही अपने पिछले अनुभव से सबक लेते हुए भाजपा ने बकाया बोनस का भी एकमुश्त भुगतान कर देने का वादा करके एक और मास्टर स्ट्रोक मार दिया है।
धान के मुद्दे पर गेमचेंजर मानी जाने वाली इस घोषणा ने कांग्रेस के सामने अब 3100 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़कर कीमत देने का वादा करने की चुनौती पेश कर दी है। कांग्रेस का अधिकृत वचन पत्र अभी जारी होना बाकी है। हालांकि कांग्रेस अपनी कुछ गारंटियां मौखिक रूप से चुनावी सभाओं में मतदाताओं को दे चुकी है। धान से जुड़ी ऐसी ही एक गारंटी के तहत उसने प्रति एकड़ 20 क्विंटल धान खरीदी करने का वादा किया है। भाजपा ने कांग्रेस के इस वादे के प्रभाव को कमजोर करने के लिए एक एकड़ आगे बढ़ते हुए प्रति एकड़ 21 क्विंटल धान खरीदी करने का संकल्प जाहिर किया है। दिलचस्प बात ये है कि जब कांग्रेस ने इस वर्ष धान खरीदी का रकबा बढ़ा कर 20 एकड़ करने का ऐलान किया था तो यही भाजपा छत्तीसगढ़ में धान की प्रति एकड़ इतनी पैदावार होने पर ही सवाल खड़े कर रही थी। भाजपा ने तब आरोप लगाया था कि जब छत्तीसगढ़ के खेतों में प्रति एकड़ 20 क्विंटल धान की पैदावार होना संभव ही नहीं है तो इसका सीधा मतलब है कि इसकी आड़ में धान की तस्करी की जाएगी। खैर इस तकनीकी बहस से छत्तीसगढ़ के किसानों को भला क्या लेना-देना? वोटों की फसल काटने के लिए भाजपा और कांग्रेस के बीच चल रही होड़ से फसल तो किसान की ही लहलहानी है। जिस तरह ग्राहकों को लुभाने के लिए दो प्रतिस्पर्धी कंपनियों के बीच रेट को लेकर होने वाले कंपटीशन से अंततः फायदा ग्राहकों का ही होता है, ठीक उसी तरह छत्तीसगढ़ में किसानों को लुभाने के लिए भाजपा और कांग्रेस के बीच चल रही ‘ऑफर’ की होड़ से फायदा यहां के किसानों का ही होना है।
Batangad : भाजपा के इस मास्टर स्ट्रोक के बावजूद कांग्रेस अभी जिस एक मुद्दे पर बढ़त बनाए हुए है, वो है उसकी कर्जमाफी की घोषणा। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल उनकी सरकार बनने पर किसानों के बकाया कर्ज को माफ करने का ऐलान कर चुके हैं। भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में कर्जमाफी जैसी किसी घोषणा को शामिल नहीं किया है। लेकिन उसने धान के बकाया बोनस का एकमुश्त भुगतान करने का वादा करके किसानों को कांग्रेस की कर्जमाफी योजना से कहीं ज्यादा फायदा पहुंचाने का संकेत दे दिया है। जानकार बताते हैं कि भाजपा अगर ये बात किसानों को समझाने में सफल हो गई कि उनको मिलने वाला बकाया बोनस उनके बकाया कर्ज से ज्यादा बैठेगा तो भाजपा धान के मुद्दे पर कांग्रेस से बढ़त बना सकती है। खास बात ये है कि बोनस का फायदा सभी किसानों को मिलेगा, जबकि कर्जमाफी का फायदा तो केवल उन्हीं किसानों को मिलना है जिन्होंने कर्ज ले रखा है और उसे पटाया भी नहीं है। साथ ही बोनस मिलने में कर्जमाफी पर लागू होने वाली कोई टर्म एंड कंडीशन जैसी बाध्यता भी नहीं होगी।
हालांकि प्रति एकड़ 21 क्विंटल धान खरीदी की घोषणा के अलावा बोनस के मुद्दे पर भी भाजपा का विरोधाभाषी चरित्र सामने आया है। छत्तीसगढ़ की मौजूदा सरकार जब धान का बकाया बोनस दिलाने के लिए केंद्र को पत्र लिखती थी तो यही भाजपा तकनीकी दिक्कतों का हवाला देकर बोनस देने के आग्रह को ठुकरा देती थी। यहां तक कि रमन सरकार के दौरान भी केंद्र सरकार ने इसी तकनीकी वजह से बोनस देने से इंकार कर दिया था, जो रमन सरकार की हार की एक तात्कालिक वजह भी माना जाता है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने तो भाजपा के बोनस देने के संकल्प पर सवाल उठाते हुए पूछ भी लिया है कि क्या अब भारत सरकार की धान खरीदी नीति में बदलाव आ गया है जो उसने बोनस देने का ऐलान कर दिया है।
Batangad : धान की खरीदी में प्रदेश सरकार के सामने सबसे बड़ी अड़चन बारदाने की किल्लत की पेश आती है। बारदाने की किल्लत के चलते किसानों को अपना धान बेचने में दिक्कत का सामना करना पड़ता है। इस समस्या के पीछे मुख्य कारण बारदाने की उपलब्धता के लिए प्रदेश सरकार का केंद्र पर मोहताज रहना है। इस आपदा को अवसर को बदलते हुए अमित शाह ने ये स्पष्ट कर दिया कि बारदाने का इंतजाम खरीदी से पहले ही कर लिया जाएगा। ये एक तरह से किसानों को अप्रत्यक्ष रूप से समझाने की कोशिश है कि केंद्र और राज्य दोनों में भाजपा की सरकार रहने पर उन्हें बारदाने की समस्या से नहीं जूझना पड़ेगा। यानी भाजपा अब किसानों को धान की बिक्री पर कांग्रेस से ज्यादा फायदा तो पहुंचाएगी ही, साथ ही वो किसानों को धान बेचने में पेश आने वाली दिक्कत भी नहीं आने देगी। केंद्र और राज्य दोनों में भाजपा की ही सरकार बनाने पर राज्यवासियों को मिलने वाली इसी सहूलियत को वो डबल इंजन की सरकार से मिलने वाले फायदों के तौर पर गिनाती है।
छत्तीसगढ़ की सियासत में किसानों की अहमियत को समझते हुए इस बार दोनों ही पार्टियों का अधिकतम जोर किसानों को लुभाने का है। इस कोशिश में भाजपा के पास अपने संकल्प पत्र से बनाई गई शुरुआती बढ़त के अलावा उसके पास खुद को ज्यादा किसान हितैषी बताने के लिए केंद्र की किसान सम्मान निधि भी बोनस के तौर पर मौजूद है। यानी कुल मिलाकर भाजपा ने संकल्प पत्र में धान के मुद्दे पर किसानलुभावन घोषणाएं करके कांग्रेस के सामने चुनौती तो पेश कर ही दी है। अब सबको इंतजार कांग्रेस के वचन पत्र जारी होने का है। देखना है कि किसानों को कांग्रेस का ‘वचन’ पसंद आता है या भाजपा का ‘संकल्प’।