लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को लड़खड़ाते लोगों का सहारा

लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को लड़खड़ाते लोगों का सहारा

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  • Publish Date - May 5, 2020 / 01:45 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 07:11 AM IST

भारतीय लोकतंत्र कतार से ही संचालित होता है। ये कतार चाहे मतदान केंद्र के बाहर लगी हो या फिर शराब बिकी केंद्र के। सरकारें भले वोट से बनती हों, लेकिन चलती नोट से ही हैं। इसलिए लोकतंत्र के यज्ञ में केवल वोटों की आहुति देने से काम नहीं चलता, इसके लिए नोटों की आहुति भी देनी पड़ती है। और कोरोना संकट काल में मंद पड़ चुकी अर्थव्यवस्था के हवन कुंड की अग्नि में अपने नोटों की आहुति देने के लिए वो वर्ग सामने आया है, जिसे अब तक बेवड़ा, पियक्ककड़, दरुहा जैसी उपेक्षित उपमाओं से अलंकृत किया जाता रहा है। लानत हैं हम पर कि जिन्हें हम बेबड़े समझ कर तिरष्कृत करते रहे वो तो इकोनामी वॉरियर्स निकले। वाइन वॉरियर्स…।

कोरोना से चौपट हो चुकी देश-प्रदेश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने का जिम्मा अब इन वाइन वॉरियर्स पर आ गया है। लॉकडाउन में लंबे इंतजार के बाद खुलीं शराब दुकानों पर लगीं कतारों में तो जैसे पूरा हिंदुस्तान अपनी विशिष्टताओं के साथ सिमट आया है। जाति, धर्म, पंथ, वाद, ऊंच-नीच, अमीर-गरीब जैसी सोशल डिस्टेंसिंग को मदिराप्रेमियों ने अपने प्रेम से पाट दिया । जर्जर अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए चिलचिलाती धूप में लंबी-लंबी कतारों में खड़े योद्धाओं के प्रति आभार जताने के लिए वायुसेना को इन पर भी पुष्प वर्षा करनी चाहिए। एक पुष्प तो अपनी अभिलाषा जाहिर भी कर चुका है-
मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक
अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने, जिस पथ जाएं पियक्कड़ अनेक।

फिर भी कुछ ऐसे कुंठित लोग हैं जिन्हें इन वाइन वॉरियर्स की कद्र ही नहीं है। खुद तो लॉकडाउन में पिछले 40 दिनों से सोशल डिस्टेंसिंग की आड़ लगाकर दब्बू बने घरों में घुसे बैठे हैं, और अगर कोई अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा कर लाइन लगाए खड़ा है तो उसका मजाक उड़ा रहे हैं। कोई इनका राशन पानी बंद करने की सलाह दे रहा है तो कोई इन्हें सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाने के लिए कसूरवार ठहरा कर लानत भेज रहा है। हे वाइन वॉरियर्स! आप तो सारी आलोचना को धुएं में उड़ाकर निष्काम कर्मयोगी की तरह मोर्चे पर डटे रहना-
कौन कहता है इकोनामी में सुधार हो नहीं सकता
एक पैग तो तबीयत से लगाओ यारों…।

जाम में कितनी जान है, इसके रुझान मिलने शुरू हो भी गए हैं। कल पहले दिन ही अलग-अलग प्रदेशों से मिले शराब बिक्री के आंकड़ें बताते हैं कि सरकारी खाते में इतनी रकम आ गई है, जितनी कोरोना संकट के लिए बनाए गए मुख्यमंत्री सहायता कोष में अब तक जमा नहीं हो सकी है। बेवड़ों तुम्हारा योगदान, याद रखेगा हिंदोस्तान।

रुझान दूसरे रूप में भी सामने मिले हैं। कहीं वाइन वॉरियर्स आर्थिक व्यवस्था को मजबूत बनाने में अपना अधिकतम योगदान देने का यश अर्जित करने के चक्कर में आपस में ही भिड़ गए तो कहीं कुछ जोश में होश ही खो बैठे। कुछ सड़क किनारे गिरे मिले तो कुछ नाली में लोटते। दुष्यंत कुमार माफ करेंगे-
कल मैकदे में मिला वो लड़खड़ाते हुए
मैंने नाम पूछा तो बोला हिंदोस्तान है।

लेकिन चिंता मत करिए। लड़खड़ाते हिंदोस्तान को लड़खड़ाते लोग ही संभालेंगे। लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को संभालने का दारोमदार जब लड़खड़ाते लोगों पर ही आ गया है, तो सरकारों को लड़खड़ाहट से जुड़े राजस्व अर्जन के दूसरे आर्थिक विकल्पों पर भी जरूर विचार करना चाहिए। बेचारी ‘अंगूर की बेटी’ ही GDP का बोझ अकेले क्यों उठाए? सरकारी नशा बिरादरी से निष्कासित गांजा, चरस, स्मैक, अफीम, हेरोइन जैसे बंधु-भगिनियों को भी गिरती इकोनामी को संभालने का पुण्य कमाने का मौका मिले।

बहरहाल सरकारों की पहली प्राथमिकता गिरती अर्थव्यवस्था को संभालने की है। गिरते लोगों को संभालने के लिए मद्य निषेध विभाग और नशामुक्ति केंद्र तो हैं ही। सरकारों को तो खैर जितना गिरना था वो गिर ही चुकी हैं। प्राथमिकता जब रुपए कमाने की ही है, तो कैसी नैतिकता, कैसा आदर्श और कैसा लोक लिहाज।

 

सौरभ तिवारी

डिप्टी एडिटर, IBC24

 

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