#LaghuttamVyangya: मीटिंग हॉल में छींककांड

#LaghuttamVyangya: मीटिंग हॉल में छींककांड

Barun Sakhajee

Modified Date: February 2, 2023 / 01:51 pm IST
Published Date: February 1, 2023 7:05 pm IST

बरुण सखाजी

मीटिंग के दौरान ही साहब को छींक आ गई। दूसरे ही पल मीटिंग हॉल छींकों से गूंज उठा। साहब समझ तो गए लेकिन उन्होंने न समझने का अभिनय किया। नजरें सामने रखे मीटिंग एजेंडे से उठाकर एसी की ओर की तो सारे पार्टिसिपेंट्स की नजरें एसी की ओर चली गईं। कुछ देर में बिना किसी संवाद के यह तय हो गया कि छींक का सारा ठीकरा एसी पर फोड़ा जाना है। भला इतनी बर्फ भरी ठंडक भी किसी एसी को फेंकना चाहिए। मैं तो कहता हूं बिल्कुल नहीं। एसी को साहब का ख्याल रखना चाहिए। और हर हाल में रखना चाहिए। अगर वह ख्याल नहीं रख सकता तो एसी किस काम का। खैर अच्छी बात तो ये है कि साहब का ख्याल रखने के लिए पार्टिसिपेंट्स हैं। लगभग सभी ने अपनी त्योरियां तानते हुए एसी पर बर्फ भरी ठंडक का ठीकरा फोड़ा। ठीकरा फूटते ही साहब अपनी नई लीला की ओर बढ़ गए, लेकिन पार्टिसिपेंट्स अभी तक छींकों से मीटिंग हॉल को भरपूर छींकिया हवाओं से भर रहे थे।

साहब ने इतनी लंबी यात्रा की और भारत के मुकुट तक पहुंचे। समापन का अवसर है तो स्वभाविक है, आनंद के पल होंगे ही। थे भी। इन्हें खूब आनंदमय बनाया भी गया। साहब की छींक है और साहब ने इतना लंबा सफर किया है तो कोई दूसरा क्यों पीछे रहे। काम-धाम तो होते रहेंगे। भारत के मुकुट की ठंडी सफेदी के गोले जो एक दूसरे पर फेंके गए उन्हें कुछ यूं समझा जाना चाहिए ज्यों ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैजनियां। भई बाजत पैजनियां तो बाजत पैजनियां। भक्ति है कवि की। भक्ति में वह राष्ट्रराजा की हर वैयक्तिक गतिविधि को उसी प्रेमानंद से देख रहा है जिससे वह स्वयं आत्मानंदित हो सके। बर्फ के गोले एक दूसरे पर फेंके गए। खेल था। खेला गया। इसमें आपको क्यों दर्द होना चाहिए। लेकिन समस्या ये है कि साहब ने अगर ऐसा खेल खेला है और पार्टिसिपेंट्स ने नहीं तो यह जरूर घनघोर अपराध है। खेल भले न खेलेंगे, लेकिन वहां जाकर कुछ ऐसी मुद्राएं तो सोशल मीडिया पर देनी होंगी जिससे पता चले कि हमें यह खेल सबसे ज्यादा पसंद है। क्रिकेट से भी ज्यादा रोमांचकारी खेल। बताइए भला इस खेल को देखकर भी पार्टिसिपेंट्स को आनंद न हो तो कैसे कोई पार्टिसिपेंट्स बनने के योग्य हुए। नहीं हो सकते। न हुए। न हो पाएंगे।

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मीटिंग हॉल में छींक की गूंज की अधिकता देखकर साहब को असहज होना चाहिए था, लेकिन क्यों होना चाहिए था। जिसे ऐसा लग रहा हो कि साहब को असहज होना चाहिए था, वह जाकर उन लोगों के हाथों बिका हुआ है जो इस महान खेल को देखकर मन ही मन आनंदित नहीं हो रहा हो। यानि विरोधियों की तरफ। वैसे तो विषय इतना बड़ा और आनंद का है कि मन ही मन आनंदित न होने का कोई कारण नहीं। मैं तो कहता हूं मन ही मन नहीं होना चाहिए। बाहर से भी होना चाहिए। इतना होना चाहिए कि पेट पकड़कर हंसते रहें, लोट-पोट हो जाएं तब भी कम है।

साहब का छींक कांड पूर्ण हुआ तो उम्मीद ये थी कि अब शायद मीटिंग के एजेंडे पर बात हो, लेकिन साहब तो अपनी छींक और इस छींक को मिले ट्रेमंडस रिस्पॉन्स को पाकर ही इतने भाव-विभोर हो गए कि एजेंडों का क्या महत्व? एक तो भारत के मुकुट तक जाना और वह भी इतने समय में जाना और हर जगह लोगों का इतना हुजूम। सबका इतना सहयोग कि साहब आनंद को कुछ दिन दिल में रखकर अगर खुली आंखों से सपने न देखें तो क्या मतलब। कुछ ही देर में छींक महात्तम समाप्त हुआ होगा, लेकिन अभी सफेद पहाड़ियों से सोशल मीडिया का सफर जारी है।


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Associate Executive Editor, IBC24 Digital