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मोदी की इन बातों में छिपा है कल क्या होने वाला है…

Joint Conference of Chief Ministers and Chief Justice : प्रधानमंत्री जिस डिटिलाइजेशन की बात कर रहे हैं। वो डिजिटलाइजेशन पर बल दे रहे हैं।

Edited By :   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:02 PM IST, Published Date : April 30, 2022/7:26 pm IST

बरुण सखाजी.

मोदी के भाषण की 5 प्रमुख बातें

  1. न्यापालिका डिजिटलाइज हो

  2. न्यापालिका में स्थानीय बोलियों में फैसले दिए जाएं

  3. राज्य गैरजरूरी कानूनों को खत्म करें

  4. मुख्यमंत्री और हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बैठकर 47 का विजन बनाएं

  5. विधिक जागरूकता

Joint Conference of Chief Ministers and Chief Justice : प्रधानमंत्री की स्पीच में भविष्य में सरकार की रणनीति के बीज छिपे होते हैं। वे जब मुख्यमंत्रियों और हाईकोर्ट्स के मुख्य न्यायाधीशों के सम्मेलन में बोले तो यहां भी कुछ बातें आने वाले कल की घटनाओं का जिक्र कर रही हैं। प्रधानमंत्री जिस डिटिलाइजेशन की बात कर रहे हैं, दरअसल वे न्यायपालिकाओं के ढर्रे को एड्रेस करना चाहते हैं। अदालतों में गवाह, बयान, कथन, प्रतिपरिक्षण जैसी मूलभूत चीजों में भी हमारी न्याय व्यवस्था आधुनिक तकनीकी को नहीं अपना पा रही। डिजिटलाइजेश बहुत बड़ा और सकारात्मक शब्द है इस बात को कहने के लिए। प्रधानमंत्री ने इसी तारतम्य में यह भी संदेश दिया कि हम इस दिशा में संसद स्तर पर जिन कानूनों संशोधनों अथवा नए कानून की आवश्यकता होगी काम करेंगे। जिन तरीकों से डिजीटल साक्ष्यों, डिजीटलाइजेशन के लिए रास्ता बनाया जा सकता है वह सरकार आने वाले दिनों में बनाएगी।

प्राइम मिनिस्टर की दूसरी बात न्यायपालिकाओं के मातृभाषायीकरण की है। वास्तव में भारत में लगभग 90 करोड़ लोग हिंदी समझते हैं, जबकि बोलने, लिखने और पढ़ने वालों की संख्या भी अनुमानति 70 करोड़ तक है। इसका साफ मायना यह है कि हिंदी को किसी भारतीय भाषा के साथ टकराव पैदा करके नहीं आगे बढ़ाना। इसे अंग्रेजी के एक अच्छे रिप्लेसमेंट के रूप में आगे खींचना है। इस संबंध में बीते दिनों सरकार खुलेआम कह भी चुकी है। प्रधानमंत्री की सरकारी मशीनरी के साथ ही किसी भी वैचारिक पृष्ठ को पुष्ट करने के लिए एक अघोषित सह-मशीनरी भी सक्रिय होती है। हाल का फिल्म सितारा किच्चा वर्सस देवगन भी इसी कड़ी का हिस्सा था। सरकार हिंदी को लेकर काम करना चाहती है, लेकिन उसका मन भारत की किसी भाषा से टकराव का बिल्कुल भी नहीं है। अभी तक का भाजपाई हिंदीप्रेम स्वतः ही तमिल, बंगाली, मराठी, कन्नड़ आदि का विरोधी नजर आया है। अंग्रेजी से किसी को प्रेम नहीं होना चाहिए। दो ही भाषाएं साफतौर पर चलन में ठीक होंगी। इसका प्रतिलक्षण नई शिक्षानीति में भी नजर आए थे।

मोदी ने जिक्र किया कि उन्होंने साल 2015 में 1800 ऐसे कानूनों की पहचान की थी, जिन्हें बदलने की या रद्द करने की आवश्यकता है। इनमें से 1450 केंद्र स्तर पर रद्द कर दिए गए हैं। लेकिन राज्यों ने सिर्फ 75 ही खत्म किए हैं। शेष बचे 275 पर काम नहीं किया जा सका। यह ऐसा संदेश है जो भाजपा शासित प्रदेशों को भी एड्रेस करता है। इन पहचान किए गए कानूनों में एक कानून सीबीआई या किसी केंद्रीय एजेंसी को राज्य में घुसने और कार्रवाई के लिए स्थानीय पुलिस को संदेश देने वाला भी शामिल है।

Joint Conference of Chief Ministers and Chief Justice : प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्रियों और हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों के साथ समन्वय और एकरूप राज्य का प्रारूप बनाने की ओर भी इशारा किया है। अभी बहुत सारे औद्योगिक पचड़े हाईकोर्टों में लंबित मामलों और एक्टिविस्टों की जिदों के कारण देरी में चले जाते हैं। ऐसे में गतिमान सोच में व्यवधान आता है। राज्य की सरकारें कोर्ट के साथ समन्वय बनाकर चलें तो इन्हें अधिक मौके नहीं मिल पाएंगे। आजादी के 100 वर्षों को केंद्र में रखकर अगर कोई  बात कही जा रही है तो साफ है कि केंद्र की ओर से ऐसी अधोसंरचना जरूर बनाकर दी जाने वाली है जिससे कार्यपालिका और न्यायपालिकाओं के एक दूसरे के विपरीत पहिये बनाने की बजाए एक दूसरे का अनुपूरक बनाया जा सके।

विधिक जागरूकता को लेकर प्रधानमंत्री ने एक वाक्य में जरूर कहा, लेकिन यह महत्वपूर्ण है। इस पर उन्होंने औपचारिक शिक्षा में इसे समाहित करने का इशारा भी किया है।

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