Nindak Niyre: यह खड़गे से ज्यादा सोनिया गांधी की जीत है, 3 सालों में इन 4 सियासी तरकीबों से विरोधियों को भरपूर छकाया भी और थकाया भी
Mallikarjun Kharge appointed as Congress President

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Barun Sakhajee,
Asso. Executive Editor
बरुण सखाजी. सह-कार्यकारी संपादक
खड़गे का चयन बताता है, देश ने भले ही गांधी परिवार को खारिज किया हो लेकिन पार्टी ने नहीं किया है। खड़गे के पीछे जिस तरह से सोनिया गांधी अप्रत्य़क्ष रूप से थी, इससे स्पष्ट था कि वे जीतेंगे। चुनाव पार्टी के भीतर के थे, तो इनकी पारदर्शिता, निष्पक्षता विश्वास करना या सवाल उठाना दोनों ही अनावश्यक है। फिलहाल खड़गे की जीत के कई मायने और असर हैं। साथ ही थरूर की हार भी कुछ कह रही है।
खड़गे की नहीं यह सोनिया की जीत
कांग्रेस के आंतरिक चुनाव में यह खड़गे की नहीं बल्कि सोनिया गांधी की जीत है। जिस तरह से शुरुआत से ही गांधी परिवार का अलाइनमेंट खड़गे के साथ नजर आ रहा था, उस हिसाब से इस जीत को खड़गे से ज्यादा सोनिया की जीत मानना चाहिए।
बिन परिवार, नहीं उद्धार
कांग्रेस पार्टी में जी-23 के जरिए या अन्य अवसरों पर यह बात आम हो चली थी कि कांग्रेस को अब गांधी परिवार से मुक्त हो जाना चाहिए। केंद्रीय कार्यसमिति की बैठक से लेकर निर्वाचन तक की प्रक्रिया के जरिए सोनिया गांधी ने अपने तमाम उन लोगों को राजनीतिक रूप से ठिकाने लगा दिया जो यह नरैशन बुलंद कर रहे थे। इसके लिए सोनिया गांधी ने 4 राजनीतिक तरकीबें की।
पहली तरकीब, राहुल गांधी का इस्तीफा हुआ। पीछे से बहुत सारे इस्तीफे होने थे, नहीं हुए। सोनिया गांधी शांत रहीं। विरोधियों को थकाती रही। वे किसी को रोक नहीं रही थी, लेकिन आगे आते हुए को हतोत्साहित करने का उनका चातुर्य स्पष्ट था। इससे संदेश गया कि पार्टी में गांधी परिवार के बिना कुछ हो नहीं सकता।
दूसरी तरकीब, हतोत्साहित होकर भी कुछ विरोधी औपचारिक रूप से आगे आए और जी-23 कहलाने लगे। पार्टी ने केंद्रीय कार्यसमिति की बैठक ही नहीं बुलाई। यह बैठक तब तक नहीं बुलाई गई जब तक कि यह मुद्दा न बन गई। जी-23 कोई भी राय देता तो आखिर देता कहां? मीडिया में बोले तो संदेश गया ये लोग पार्टी के हितैषी तो नहीं हैं। मतलब उन्हें एक्सपोज किया गया। अंत में जब यह मुद्दा बना तो सीड्ब्ल्यूसी बुलाई गई। चर्चा कुछ और होना थी हुई आगामी अध्यक्ष पर। जिस पर जी-23 चर्चा चाहता था उस पर हुई ही नहीं।
तीसरी तरकीब, इस्तीफे के बाद 3 साल कोई चुनाव नहीं करवाए गए। विरोधियों को खुला छोड़ा। ऐसा संदेश दिया कि जो भी विरोधी हैं वे पार्टी का अध्यक्ष बन जाएं। परिवार को कोई ऐतराज नहीं। कोई नहीं बन पाया। न बनाया गया। फिर उदयपुर नवसंकल्प शिविर में तय किए गए कुछ फॉर्मूले। इसमें भी अध्यक्ष पर फैसला नहीं हुआ। बातें तमाम मुद्दों पर चलती रहीं। जी-23 के नेता जब तक टूट नहीं गए, छूट नहीं गए तब तक सोनिया उन्हें थकाती और छकाती रही। अंततः चुनावों का ऐलान हुआ और इसमें खड़गे को अचानक से दिग्विजय सिंह की जगह पर आगे बढ़ाया गया। थरूर ने लड़ाई लड़ी, लेकिन नतीजे जानते हुए।
चौथी तरकीब, चुना गया अध्यक्ष 9385 कुल मतों में से 7897 मत लेकर जीता है। जबकि विरोधी को सिर्फ 1072 वोट मिले हैं, बाकी खारिज हो गए। यह तरकीब है जो यह सिद्ध करती है कि कांग्रेस गांधी परिवार के बिना नहीं आगे बढ़ सकती। यह जीत खड़गे से ज्यादा गांधी परिवार की है। इससे सोनिया गांधी ही नहीं बल्कि राहुल की स्वीकार्यता बढ़ेगी, क्योंकि उन्होंने तो अध्यक्ष पद का त्याग किया हुआ है।
राहुल गांधी होंगे और मजबूत
इस निर्वाचन से राहुल गांधी और मजबूत होंगे। अब वे हार-जीत के दबाव से पूरी तरह से मुक्त रहेंगे। वे अपनी प्रतिभा और छवि को बतौर पीएम फेस निखार सकेंगे। उन्हें रचनात्मक करने का मौका अधिक रहेगा। बिखरे संगठन को एक करने में बेवजह खप रही ऊर्जा बचा पाएंगे।
निष्कर्ष, यह है कि अब जो इक्का-दुक्का आवाजें उठेंगी भी तो उन्हें यह जीत याद रखना होगी। वे अब परिवारवाद का आरोप नहीं लगा पाएंगी। वे अब राहुल गांधी का रिव्यू नहीं कर पाएंगी। राहुल गांधी मजबूत होंगे। कांग्रेस पर उनकी पकड़ और बेहतर हो पाएगी। जी-23 को समझ आए या न आए, लेकिन नतीजे देखकर कोई दूसरा खेमा खड़ा नहीं हो पाएगा।