bjp chhattisgarh om mathur 3 statments
बरुण सखाजी, राजनीतिक विश्लेषक
छत्तीसगढ़ भाजपा प्रभारी ओम माथुर ने अपने तीन दिन के दौरे में तीन प्रमुख बयान दिए। पहले उन्होंने कहा, छत्तीसगढ़ी के चुनाव कोई चुनौति नहीं। दूसरे दिन वे बोले आगामी चुनाव भाजपा युद्ध की तरह लड़ेगी। फिर तीसरे दिन तीसरा बयान आया, जिसमें कहा विधायकों को हराने का संकल्प लें कार्यकर्ता। ओम माथुर बड़े कद के नेता हैं। इसलिए उनकी कही बात यूं ही नहीं हैं। इनके गहरे और दूरगामी मायने हैं। आज का विश्लेषण इन्हीं तीन बयानों पर। इन्हीं में छिपा है ओम माथुर के दौरे से निकला सार। छत्तीसगढ़ भाजपा में 3 बड़ी चुनौतियां हैं। पार्टी पहले इनसे निपटना चाहती है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए ही ओम माथुर ने तीन दिन में तीन महत्वपूर्ण बयान दिए। आज का विश्लेषण इसी पर।
चुनौति नंबर-1 और बयान नंबर-1: बुरी हार से टूटे वर्कर्स को उठाना।
पार्टी 2018 में जिस तरह से हारी थी, उससे एक छोटे से छोटे कार्यकर्ता का विश्वास डिग गया। चुनौति है भाजपा आत्मबल खो चुकी। ऐसे में अरुण साव, अजय जामवाल, नितिन नबीन से लेकर शिवप्रकाश और खुद ओम माथुर तक एड़ी-चोटी की ताकत लगा रहे हैं। इस चुनौति से निपटने के लिए ही ओम माथुर ने कहा वे छत्तीसगढ़ कोई चुनौति नहीं। यानि कार्यकर्ता यह न सोचें कि 2018 में इतनी बुरी तरह से हारे हैं तो अब जीतना कठिन हो गया।
चुनौति नंबर-2 और बयान नंबर-2: कांग्रेस की सक्रियता को कमतर करना।
सरकार बनने से लेकर अब तक भूपेश बघेल जहां अतिसक्रिय मुख्यमंत्री हैं, वहीं उनका पर्सनल ग्राफ घट नहीं रहा। ऐसे में भाजपा नेताओं का आत्मबल जवाब दे रहा है। ओम माथुर ने इसीलिए अगला बयान युद्ध की तरह लड़ने का दिया है। इससे पार्टी कार्यकर्ताओं में संदेश साफ होगा कि लड़ाई इतनी कठिन नहीं जिसे जीता न जा सके।
चुनौति नंबर-3 और बयान नंबर-3: सीएम मजबूत है, विधायक नहीं।
भाजपा 4 साल से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की लोकप्रियता और लोक जुड़ाव का काट खोज रही है। इस खोजबीन में आम वर्कर्स के मन में संदेश गहरे बैठ गया कि भूपेश को हराना कठिन है। इसीलिए भाजपा के राजनीतिक सुजान ओम माथुर ने तीसरा बयान हर विधायक को हराने का दिया। यानि संदेश साफ, भूपेश की छवि का तिलिस्म है। नहीं तोड़ पाएंगे तो न सही, लेकिन उनकी सेना को हरा सकते हैं। इसीलिए ओम माथुर ने कहा, संकल्प लो हर विधायक को हराओगे। स्वाभाविक है यह लक्ष्य निचले स्तर के कार्यकर्ताओं और मध्य स्तर के पदाधिकारियों को आसान लगेगा और वे गांव-गांव में बघेल की मजबूत छवि के हिप्नोटिज्म से भी उबर पाएंगे।
ओम माथुर प्रभारी के रूप में पहली बार छत्तीसगढ़ आए थे। अजय जामवाल, नितिन नबीन, अरुण साव, शिवप्रकाश, पवन साय की फैसलों की सीमा है, लेकिन माथुर को फैसले लेने से पहले अमित शाह-मोदी से पूछना नहीं पड़ता। इसलिए माथुर यहां जो कहेंगे या करेंगे वह नीचे से ऊपर तक की सहमति का प्रतीक होगा।
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