#NindakNiyre: अब वक्त है मसखरे नेताओं को जनता न सुने ....

#NindakNiyre: अब वक्त है मसखरे नेताओं को जनता न सुने

हम एक लोकतांत्रिक प्रणाली में हैं, जहां हर मतदाता एक समान मत देकर अपने लिए हुक्मरान चुनता है। वह अपेक्षा करता है कि जनप्रतिनिधि गंभीरता से अपने काम को करें।

Edited By :   Modified Date:  February 6, 2023 / 05:22 PM IST, Published Date : February 6, 2023/5:19 pm IST

बरुण सखाजी. सह-कार्यकारी संपादक, आईबीसी24

राज्य की भूपेश सरकार में अहम ओहदेदार मंत्री कवासी लखमा के वक्तव्य समय-समय पर चर्चा का विषय बने रहते हैं। बेधड़क मंत्री। बेबाक नेता। लोकचर्चा के सदा केंद्र में रहने वाली शख्सियत। सोशल मीडिया पर उनका कहा, सुना, बताया खूब वायरल होता है। इसे छा गए भी कहा जाता है। लेकिन एक मंत्री का यूं कहना, सुनना सिस्टम की गंभीरता को प्रश्नचिन्हित करता है। हम एक लोकतांत्रिक प्रणाली में हैं, जहां हर मतदाता एक समान मत देकर अपने लिए हुक्मरान चुनता है। वह अपेक्षा करता है कि जनप्रतिनिधि गंभीरता से अपने काम को करें।

जैसे भारत की सियासत में लालूप्रसाद यादव का दौर रहा है। हर बात को मसखरी, हास्य में उड़ाकर अपनी शैली को चर्चा में ले आना। ठीक है, आप चुनाव जीतते रहे, जीत जाते होंगे, लेकिन लोगों ने आपको किसी को हंसाने के लिए नहीं चुना। ऐसा करने से किसी का कल्याण नहीं है। लालू संसद में किसी का भी मजाक उड़ा देते थे। लोग ठहाका लगाते थे। उनकी शैली फिल्मों नेताओं को अगंभीरता के पर्याय के रूप में दिखाई गई। अनेक डब फिल्मों में नेता को लालू की तरह ही भोजपुरी बोलते हुए बताया गया। अर्थात लालूप्रसाद यादव ने अपनी इस फैम को खूब एंजॉय किया, किंतु इससे देश को क्या मिला। क्या छवि बनी देश में नेता की। नेता मतलब करप्ट, घूसखोर, निर्दयी, सफेदपोश अपराधी, असंवेदनशील, ओवर पावरफुल आदि। एक दिन जब सुषमा स्वराज ने इस बात पर गंभीर चोट की तो माहौल बदला। स्वराज ने कहा था ये मसखरापन किसी के लिए हास्य का विषय हो सकता है, लेकिन लालू जी आप जिस ओहदे पर बैठे हैं वह ऐसी मसखरी नहीं चाहता। उसके बाद से लालू यादव का लोगों ने एक नेता, चुने हुए प्रतिनिधि के रूप में रिव्यू करना शुरू किया। अंत सबके सामने है। वह कैसा जननेता कहाया जो अपने ही जन की संपत्ति, संपदा लुटाकर अंतिम वक्त जेल में गुजार रहा है। ऐसी मसखरी को लेकर जनता को भी गंभीर होना होगा। वे इसे हतोत्साहित करें। यूं मसखरेपन को वायरल न करें।

लखमा को अपने सेंस ऑफ ह्युमर को बनाए रखते हुए अपने मंत्रालय के काम-काज को भी दिखाना चाहिए। कभी याद नहीं आता लखमा अपने मंत्रालय की उपलब्धियों, कार्यविधियों को लेकर किसी मीडिया, पत्रकार से रूबरू होते हों। लखमा बस्तर जैसे दूरस्थ अंचल से आते हैं। अनुसूचित जनजाति वर्ग के चेहरे के रूप में जाने जाते हैं, लेकिन उनका यह मसखरापन न तो जातिए अस्मिता को सम्मान दे सकता है न ही मिली जिम्मेदारी को पूरा कर सकता है। अब समय है कि आप इस अगंभीर हास्य-विनोद से बाहर आकर उपेक्षित, वंचित जनजातिय समाज के वास्तविक चेहरा बनिए। मंत्रित्व पदों का निर्वहन करते हुए राज्य को नए शिखर की ओर ले चलिए। यूं आपका जन-जुड़ाव अच्छा तो है ही। बस इतना से और अपने व्यक्तित्व में डाल लीजिए।

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