NindakNiyre: समरस छत्तीसगढ़ को कौन लगा रहा है नजर, सिंधी-मारवाड़ी के नाम पर बांट-काट खतरनाक कोशिश, फिरकी में मत फंसिये मंतव्य समझिए

Raipur Chhattisgarh Mahtari Statue || Image- IBC24 News File

बरुण सखाजी श्रीवास्तव, सह-कार्यकारी संपादक, IBC24

 

वंचित शोषित की काढ़ी गई थ्री-डी इमेज के पैरोकार बस्तर से उखड़ रहे हैं, लेकिन अर्बन छत्तीसगढ़ में बढ़ रहे हैं। मैं थ्री-डी इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि यह लगती असल है, लेकिन होती नहीं। कई बार थ्री-डी अलग-अलग नजरियों से देखकर हर किसी को अपनी भी लगती है। इन थ्री-डी तस्वीरों के बूते कई सियासी दल ताज पाते रहे हैं और पाएंगे। यह तस्वीर इतनी कमसिन है जो हमारे विवेक को नष्ट कर देती है।

 

छत्तीसगढ़ समग्रता का प्रदेश है। यहां हर जाति, वर्ग के लोग छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया के गौरवभाव से रहते आए हैं। परंतु निरंतर इसे नए-नए रंग देकर बिगाड़ने की कोशिश की जा रही है। कई बार अच्छे खासे बौद्धिक लोग भी इस फिरकी में आकर एक्स्ट्रीमिस्ट हो जाते हैं। किसी सांस्कृतिक प्रदेश की जन-चेतना प्रशासनिक प्रदेश से अधिक होती है। ऐसे में सांस्कृतिक चेतना राजनीतिक स्वार्थ की शिकार भी आसानी से हो जाती है। जैसे कि दिल्ली एक प्रशासनिक प्रदेश है जबकि महाराष्ट्र सांस्कृतिक प्रदेश। दिल्ली में कोई ठाकरेवाद नहीं चल सकता, लेकिन महाराष्ट्र में चलता है। रही कसर मीडिया कर डालता है।

 

ये सच है कि किसी भी प्रांत, प्रदेश में सबसे पहला हक वहां सदियों से रह रहे लोगों का होता है। होना ही चाहिए, यहीं से आत्मनिर्भरता का आगाज होता है। किंतु इसके लिए आरक्षण की वैसाखी की जरूरत नहीं पड़ना चाहिए। छत्तीसगढ़ का समाज आत्मनिर्भर, आत्मसंतोषी और स्वयं पर विश्वासी समाज है। छत्तीसगढ़ अपने अधिकारों को लेकर उतना ही सजग है जितना कर्तव्यों को लेकर। ऐसे में यह बहुत साफ है कि छत्तीसगढ़ की समरस फिजा में कोई तो है जो जहर घोल रहा है। इस काम को एक कालखंड में तो प्रशासनिक, राजनीतिक प्रश्रय भी मिला। इसी प्रश्रय से जन्मे नासूर अब परेशानी का कारण बन रहे हैं।

 

सिंधी समाज दुनिया की ऐसी जातियों में शामिल है जिसे सालों-सालों पीड़ा मिली है। उसने समझा है विस्थापन का दर्द। उसने झेला है खुली आंखों के सामने लुटता परिवार, कटते परिजनों का दंश। भारत-पाकिस्तान विभाजन के सबसे बड़े पीड़ितों में दो ही जातियां हैं, एक पंजाबी, दूसरी सिंधी। पंजाबियों के प्रति समग्र भारत सदा कृतज्ञ रहा है। सिंधियों के प्रति भी भारत यानी हिंदुओं ने सदा ही कृतज्ञता जताई है। सिंधियों का अर्थव्यवस्था, सांस्कृतिक चेतना, शहर-प्रदेश की समृद्धि में किसी किसान से कम योगदान नहीं होता। सिंधियों में अपने कर्मयुद्ध से प्राप्त लक्ष्मी-विजय अगर पाई जाती है तो यह किसी के अवसर छीनकर नहीं, बल्कि अवसर पैदा करके हासिल होती है।

 

सिंधियों को लेकर की जा रही बयानबाजी आज अगर किसी गैर सिंधी व्यवसायी को लुभा रही होगी तो कल वे भी तैयार रहें। मारवाड़ से आए व्यपारियों के प्रति की जाने वाली टिप्पणियां अगर शेष हिंदू को अच्छी लग रही होंगी तो वे भी कल एक-एक जाति के रूप में खत्म होने के लिए तैयार रहें। सिंधियों के पास विकल्प था मुसलमान हो जाने का, लेकिन वे आए आपके-हमारे भरोसे पर। उनके पूर्वजों के इस फैसले पर नई पीढ़ियां शर्मिंदा न हों, यह हमारी जिम्मेदारी है। वरना तो फिर कई पाकिस्तान बनना तय है। आज जिन थ्री-डी इमेज को देखकर अपीड़ित जातियां आनंद महसूस कर रही हैं, वे चंद वर्षों में ही कटने, बंटने के लिए तैयार रहें।

समरसता ही समावेषी भारत है। समरसता है समग्र भारत है। समरसता ही समूचा भारत है। समरसता ही समानता है। समरसता ही शक्ति है। समरसता ही प्रांतीय गौरव है। समरसता ही सांस्कृतिक राष्ट्रवाद है। समरसता ही संस्कृति है। समरसता ही संप्रभु भाव है। समरसता ही संविधान है। समरसता ही सबका स्वभाव है। समरसता ही प्रकृति है। समरसता ही संवाद है। समरसता ही सच में सबले बढ़िया छत्तीसगढ़िया है।

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