#NindakNiyre: अब छत्तीसगढ़ में क्या तस्वीर बन रही है कांग्रेस की?

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  • Publish Date - July 16, 2023 / 04:53 PM IST,
    Updated On - July 16, 2023 / 05:06 PM IST

बरुण सखाजी. राजनीतिक विश्लेषक

चुनावी साल में कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में कई बदलाव किए हैं। जनवरी-फरवरी तक चल रहे इकतरफावाद पर लगाम लगाते हुए प्रदेश प्रभारी बदले, अप्रासंगिक हो रहे कद्दावार मंत्री को डिप्टी बनाकर फिर प्रासंगिक बनाया, अब दो बड़े बदलाव प्रदेश अध्यक्ष और मंत्री के रूप में बैक टु बैक कर दिए गए। कांग्रेस जानती है सरकार भले ही आंखें दिखाकर चला ली लेकिन चुनाव चुनाव की तरह ही लड़ने होंगे। परसेप्शन और जमीन का जब तक संतुलन नहीं होगा तब तक चुनाव जीते नहीं जा सकते। चेहरों पर चुनाव होने का फॉर्मूला तभी चलता है जब मैदान में भी काम दिखे। सिर्फ जन संपर्क कंपनियों के गढ़े चेहरों से काम नहीं चल सकता। पुरानी सरकार में डॉ. रमन सिंह के रूप में भाजपा के पास एक आजमाया हुआ चेहरा था, लेकिन 2017 से ही ऐसा लग रहा था कि अबकी बार सारा माहौल सिर्फ जन संपर्क कंपनियों का बनाया हुआ है, मैदान में गिल्लियां उड़ रही हैं।

फिलवक्त बघेल सरकार के मामले में हालात भले उतने खराब नहीं, लेकिन बहुत अच्छे भी नहीं हैं। राजनीति में चुनाव ही आपकी दौड़ को नापने का जरिया हैं। ऐसे में 2023 में जिस तरह से भाजपा ने फोकस किया है उससे लगता है कांग्रेस को बेफिक्र नहीं होना चाहिए। हाल के बदलाव बताते हैं कांग्रेस बेफिक्र नहीं है। बस्तर में भाजपा ने समाज में घुले धर्मांतरण को जिस तरह से पकड़ा है वह उसे वहां बढ़त देता दिख रहा है। मैं यहां किन्हीं सर्वे एजेंसियों की फर्जी बातों पर विश्वास करने को नहीं कह रहा, लेकिन बहुत बारीकी से जन-मन को समझा जाए तो कांग्रेस इकतरफा जीत जैसी स्थिति में नहीं है।

बस्तर को संभालने के लिए कांग्रेस ने 2 मंत्री उतार दिए हैं। एक प्रदेश अध्यक्ष भी मैदान में बनाए रखा है। कयासों पर जरा भी विश्वास करें तो एक और मंत्री वहां से बनाया जा सकता है। यानि अरविंद नेताम के सर्व आदिवासी समाज वाले प्रयोग और भाजपा के धर्मांतरण वाले तड़के को नकारते हुए भी कमतर नहीं आंका जा रहा। यही असल में चतुर राजनीतिक दल की पहचान है।

सरगुजा में अधिकतम पर बैठी कांग्रेस मानती है अधिकतम को ही फिर से हासिल करना संभव नहीं है, लेकिन उपमुख्यमंत्री के रूपमें सिंहदेव की ताजपोशी सरगुजा में यहां के अधितकतम को बहुत कम नहीं होने देगी। सरगुजा से अब दो ही मंत्री हैं। इनमें एक उपमुख्यमंत्री हैं। कांग्रेस मानती है 14 सीटों में दो मंत्री पर्याप्त हैं। पुरानी सरकारों में भी ऐसा ही ट्रेंड रहा है।

छत्तीसगढ़ में 80 लाख आदिवासी आबादी में 54 लाख मतदाता हैं। इनमें से 2018 में कांग्रेस के खाते में 25 आदिवासी आरक्षित सीटें और लगभग 33 लाख वोट आए थे। भाजपा ने करीब 17 लाख आदिवासी वोट हासिल किए थे, जबकि जोगी की पार्टी ने भी लगभग 4 लाख वोट हासिल किए थे। कांग्रेस से सदन में 2018 में 27 आदिवासी विधायक थे, जो उपचुनाव के बाद बढ़कर 29 हो गए। भाजपा के घटकर 2 रह गए। इस लिहाज से देखें तो कांग्रेस आदिवासी वोटर्स को किसी हाल में खोना नहीं चाहती, क्योंकि 2019 में सारे लोग भाजपा में शिफ्ट हो गए थे, लेकिन आदिवासी वोटर्स में यह स्विच कम था। कांग्रेस ने इन्हीं वोटों के बूते पर दीपक बैज के रूप में एक सीट हासिल की है। हारती हुई कोरबा लोकसभा सीट को आदिवासी बाहुल्य पाली विधानसभा के इकतरफा टर्नआउट ने कांग्रेस की झोली में डाला है।

बिलासपुर, रायपुर, दुर्ग में छत्तीसगढ़ की 64 सीटें हैं। इन्हें लेकर भी कांग्रेस को रणनीति बनाना होगी। ओबीसी चेहरे के रूप में बघेल ताकतवर हैं। मंत्रियों में ताम्रध्वज, उमेश पटेल ओबीसी, रविंद्र चौबे, टीएस सिंहदेव, मो. अकबर सामान्य, शिव डहरिया, रुद्र गुरु एससी, कवासी लखमा, अनिला भेंडिया समेत 3 एसटी मंत्री हैं।

निष्कर्ष में देखें तो कांग्रेस सरगुजा, बस्तर के समीकरणों को साधते हुए दिख रही है। बिलासपुर में कमजोर है, रायपुर में फिफ्टी-फिफ्टी दिख रही है, दुर्ग थोड़ा फेवरेबल है। इस तरह से कांग्रेस को अभी और बदलाव की जरूरत है। इनमें समग्रता में चुनाव लड़ना सबसे बड़ी नीति सिद्ध हो सकती है।