PV Narasimha Rao master of Politics of Survival

पॉलिटिक्स ऑफ Survival के सबसे बड़े मास्टर PV नरसिम्हा राव, 1991 में आज ही के दिन बने थे देश के प्रधानमंत्री

PV नरसिम्हा राव जो इंदिरा से लेकर राजीव और फिर सोनिया के दौर में भी प्रासंगिक था, जिसकी जिजीविषा ने उसकी राजनीति को कभी मरने नहीं दिया

Edited By :   Modified Date:  June 21, 2023 / 01:59 PM IST, Published Date : June 21, 2023/1:43 pm IST

1991 के आम चुनाव से पहले जिसे ये बोला जाता है कि आप बूढ़े हो चुके हैं अब आपको चुनाव नहीं लड़ना चाहिए, फिर वो नेता दिल्ली की कोठरी से अपना सामान बांधकर वापस अपने घर हैदराबाद को लौटने निकल पड़ता है, लेकिन वही शख्स 1991 के चुनाव के बाद देश का प्रधानमंत्री बन जाता है।

PV नरसिम्हा राव जो इंदिरा से लेकर राजीव और फिर सोनिया के दौर में भी प्रासंगिक थे, जिसकी जिजीविषा ने उसकी राजनीति को कभी मरने नहीं दिया, जिसे जब जब नकारा गया उसने तब तब और मजबूती से बाउंस बैक किया। जिसकी चुप्पी और राजनीतिक समझ ने उसे भारतीय राजीनीति के शीर्ष तक पहुंचाया।

 

नर और सिम्हा इन दो शब्दों से मिलकर बना है नरसिम्हा। जिसमें नर यानी मनुष्य सी चेतना है, भावनाएं हैं, इच्छाएं हैं, समझ है जो राजनीति में शुरुआत के लिए बेहद ज़रूरी हैं और दूसरा शब्द सिम्हा यानी शेर, जिसमें परिस्थितियों को अपने मुताबिक ढाल देने की क्षमता है। नरसिम्हा राव की पूरी ज़िंदगी कुछ ऐसी ही रही, वो हमेशा 2 तरह के किरदार जीते रहे।

राजनीति में रहकर कभी किसी गुट का नेता ना कहलवाना उनकी ताकत थी। इंदिरा से लेकर राजीव और फिर शुरुआती तौर पर सोनिया का भरोसा जीतकर उन्होंने साबित कर दिया था कि वो पॉलिटिक्स ऑफ Survival के मास्टर हैं तो दूसरी तरफ प्रधानमंत्री बनने के बाद सोनिया गांधी से लेकर शरद पवार और अर्जुन सिंह को शांत रखने का हुनर उनके सिम्हा वाले नाम को जस्टिफाई करता है।

1200 एकड़ जमीन का मालिक कैसे मुख्यमंत्री रहते आंधप्रदेश में भूमि सुधार को लेकर इतना जज़्बाती हो गया कि उसे सीएम की कुर्सी पर बैठाने वाले दिल्ली और आंध्र के आका तक उससे नाराज़ हो गए और आखिर उसे मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ गया और फिर वही शख्स कैसे इतना ताकतवर हो गया कि इंदिरा गांधी उसे 1982 में देश का राष्ट्रपति बनाने को तैयार हो गईं थी।

अपने ज्ञान, अपने शांत व्यवहार अपने कार्यकुशलता, अपने जिजीविषा से हर बार सबको चौंका देने वाले राव वाकई में ‘Half lion’ थे जिसके ज़िक्र मशहूर लेखक विनय सीतापति ने अपने किताब में किया है।

नरसिम्हा राव का जन्म 28 जून 1921 में अब के तेलगांना और तब के हैदराबाद के वांगारा गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। 10 साल तक स्कूल नहीं गए, 6 साल की उम्र में अपने माता पिता का घर छोड़ना पड़ा क्योंकि एक ज़मीदार ने गोद ले लिया था। उन्होंने हाई स्कूल में पूरे हैदराबाद में टॉप किया, वकालत की पढ़ाई की फिर 1952 में कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। 1957 में विधानसभा का चुनाव लड़ा और 1974 तक लगातार विधायक रहे। 1971 मेँ वो आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री बने फिर भूमि सुधार लागू करने लो लेकर हुए प्रदर्शन को घिर गए और उन्होंने 1973 में इस्तीफा दे दिया।

बाद में 1975 में पार्टी ने उन्हें राष्ट्रीय महासचिव बनाकर दिल्ली बुलाया और आपातकाल के बाद वो फिर से सांसद बनकर दिल्ली आए। इंडिया गांधी के कैबिनेट में उन्होंने विदेश और गृह मंत्रालय सम्भाला तो राजीव गांधी के सरकार में उन्होंने रक्षा और मानव संसाधन मंत्रालय।

राजीव गांधी के कहने पर राजीनीति से ले लिया था सन्यास

आम चुनाव 1991 के पहले राजीव ने राव को कमरे में बुलाकर ये कहा कि अब आप बूढ़े हो चुके हैं, मुझे लगता है कि अब आपको चुनाव नहीं लड़ना चाहिए। इसके बाद राव ने हामी भरी और दिल्ली की कोठरी से अपनी किताबें ट्रक से हैदराबाद भेज दी और पार्टी के प्रचार में जुट गए।

फिर 21 मई 1991 के दिन तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर में राजीव गांधी की हत्या हो जाती है और राव को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाता है और फिर 232 सीट लाकर कांग्रेस को बहुमत दिलाते हैं और आखिरकार प्रधानमंत्री भी बनते हैं।

नरसिम्हा राव को कई तरह से याद किया जा सकता है। देश में आर्थिक सुधार की नींव रखने वाला, नेता मनमोहन सिंह जैसे ब्यूरोक्रेट को राजनेता बनाने की शुरुआत करने वाला नेता इज़राइल से राजनायिक सम्बन्ध की शुरुआत करने वाला नेता, या फिर UP में कांग्रेस को कमज़ोर करने वाला नेता। बाबरी मस्जिद ढहने का आरोप सहने वाला नेता और फिर हर समय हर परिस्थितियों में फिट हो जाने वाला नेता। आप किसी भी श्रेणी में रॉव को रख सकते हैं लेकिन राव पॉलिटिक्स ऑफ Survival के मास्टर थे।

 

अविनाश कर की रिपोर्ट

 
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