Spiritual Experience: साक्षात चैतन्य हनुमान महामूर्ति गुरुवर की कृपा का रोमांचक अनुभव |

Spiritual Experience: साक्षात चैतन्य हनुमान महामूर्ति गुरुवर की कृपा का रोमांचक अनुभव

बीते दिनों परमहंस गुरुवर श्रीराम बाबाजी रायपुर स्थित निवास पर पधारे। चैतन्य हनुमान महामूर्ति मंगलवार के दिन घर पर विराजमान थे। इस अवधि में अनेक अनुभव हुए, जिनमें से एक मैं इस आलेख के माध्यम से आप सबके साथ साझा कर रहा हूं।

Edited By :   Modified Date:  November 29, 2022 / 11:26 AM IST, Published Date : November 16, 2022/4:28 pm IST

बरुण सखाजी

बीते दिनों परमहंस गुरुवर श्रीराम बाबाजी रायपुर स्थित निवास पर पधारे। चैतन्य हनुमान महामूर्ति मंगलवार के दिन घर पर विराजमान थे। इस अवधि में अनेक अनुभव हुए, जिनमें से एक मैं इस आलेख के माध्यम से आप सबके साथ साझा कर रहा हूं।

गुरुवर ने बुधवार को अनायास आदेश किया कि अब मंडला के पास देवनगर जाना है। यथानुरूप मैं तैयार होकर मैं साथ में वरिष्ठ पत्रकार व अंग्रेजी दैनिक के छत्तीसगढ़ संपादक अजयभान सिंह जी ने दोपहर बाद मंडला (देवनगर संगम) की ओर रवनागी डाली।

करीब 5 घंटे के सफर के लगभग प्रभु आदेश हुआ कि मंडला नहीं अब उदयुपरा तक छोड़ना होगा। परमतत्व की प्रेरणा से हम लोग 12 घंटे की यात्रा करके देर रात करीब साढ़े 12 बजे उदयपुरा पंचमुखी मंदिर पहुंचे। गुरुवर से आज्ञा लेकर मैं अपने गांव गया और लौटकर प्रभु से वापस रायपुर की आज्ञा लेने जब पहुंचे तो गुरुवर ने कहा, *वो रह ही गई… चलो दुआओ* मैं समझ गया। गुरुवर ने रायपुर में ही अपनी स्वेटर मुझे और मुझ से दूसरी स्वेटर के लिए आदेश दिया था, जिसे मैं उन्हीं की सेवा में संलग्नता के चलते नहीं कर पाया था। मैंने कहा, *जी भगवान…* इतना कहकर मैं मौन हो गया और मन में विचार आया अभी 3 बजकर 35 मिनट हो रहे हैं। उदयपुरा की आंतरिक सड़कें बहुत खराब, खुदी पड़ी हैं। ऐसे में अगर महाराजजी को लेकर अंदर बाजार में दुकान पर गया तो कम से कम एक घंटा और लग जाएगा। रायपुर के लिए उदयुपरा से 12 घंटे का वक्त लगता है। ऐसे में पहुंचते-पहुंचते सुबह के 5 बज जाएंगे।…बस यह मन में चल ही रहा था तभी उन्होंने आंखें बंद कर ली। मैं हाथ जोड़े खड़ा था। फिर आंखें खोली और एकदम किसी को डांटा। एक बार फिर दूसरी बार… जैसे हम पशु को किसी तरह से दुत्कारकर या थोड़ा तेज बोलकर डांटते हैं। यह डांट मुझे नहीं पड़ रही थी। वे आंख बंद करके किसी को कुछ करने के लिए रोक रहे हैं। किसी को कोई आदेश देकर डांट रहे हैं। ऐसा लगा जैसे वे किसी से कह रहे हैं *नहीं.. ऐसा मत करना…* और अंत में *हूं… हूं…* तेज बोले।

इस घटना को मैं उस वक्त नहीं समझा। वे आंखें खोलकर मुझ से बोले, *तो जाओ…* बाजू में खड़े बड़े भाई श्री मणिकांत जी की तरफ देखकर बोले, *गाड़ी है, तुमरे जोरे…* उन्होंने कहा नहीं, यही है, इसीसे चलते हैं, भाईसाब ने कहा या हम ला देते हैं स्वेटर। गुरुवर ने मान लिया। हम लोग आज्ञा लेकर निकल पड़े।

रास्ते में जैसे ही हाईवे पकड़ा तो मन में ख्याल आया कि देर-सवेर का ख्याल किए बिना चले जाना था गुरुवर के साथ। ऐसा सोचते हुए मैं गाड़ी चला रहा था। तभी बीच में भाईसाब का फोन आया कि उदयुपरा में वैसी स्वेटर या इनर नहीं मिल रहा जैसा आदेश हुआ है। मैंने कहा प्रयास करते रहें, गुरुवर की आज्ञा  ले लें। जैसा वे कहें वैसा कर लें। यूं मेरी गाड़ी जबलपुर हाईवे पर 100 से 120 की रफ्तार से दौड़ रही थी। यूं बात होती रही, भाईसाब प्रयास करते रहे। हम यहां गाड़ी में उनकी चर्चा करते रहे। उनकी विभिन्न बातों, वचनों, यात्राओं और स्मरणों, आदेशों पर अजयभान जी के साथ चर्चा जारी रही। इस बीच मैंने देखा कि मेरी गाड़ी पहली बार जबलपुर से पहले दुर्घटनाग्रस्त होते-होते बची। बिल्कुल ऐसे जैसे कि अब कोई नहीं बचा सकता। 100 की रफ्तार से मैं जा रहा हूं, सामने राइट लेन में एक पिकअप भी अच्छी रफ्तार से जा रही है। मैं साइड लेकर पार करता हूं और वह अचानक अपनी लेन बदलकर मेरी लेन में आ जाता है। मेरे मन में सिर्फ गुरुवर का स्मरण निकला और बड़ी आसानी से यह अलह टल गई। अबकी दूसरी अलह जबलपुर से मंडला के बीच इंतजार कर रही थी। सालीबाड़ा टोल के बाद एक छोटी कार अत्यंत तेज गति से सामने से आ रही थी। इतने करीब से ड्रायवर साइड से क्रॉस हुई कि लगा मेरी गाड़ी उससे टकरा गई। वह भी 100 से ऊपर स्पीड में रहा होगा, मैं भी। एक बार तो लगा जैसे मेरे ड्रायवर साइड लाइट से जा टकराई। फिर गुरुवर का स्मरण सहसा ही निकला और बाल बराबर दूरी से गाड़ी क्षणभर में निकल गई। अब तक मुझे सूचना मिली कि बड़े भाईसाब ने गुरुवर को वे स्वेटर या इनर लाकर दे दिए हैं। इनमें एक कत्थई और सफेद रंग का है। दुकानदान ने मिठाई का रंग डालकर इसे ऑरेंज करने का कहा है। इसके बाद दो घटनाएं  और हुईं। एक चिल्पी घाटी पर हुई, जहां एक ट्रक सामने से मोड़कर जैसे मेरी गाड़ी पर चढ़ ही जा रहा था, फिर गुरुवर का सुमिरन निकला और हम बच गए। अबकी बोड़ला के पास आकर हुई। यहां एक ट्रक से मैं पास ले रहा था, वह लंबा था। इतने में आगे से दूसरा भारी ट्रक आ रहा था। मेरी गाड़ी पास भी नहीं कर पा रही थी और पीछे भी नहीं जा सकती थी। ऐसे में सामने से आ रहा वाहन निश्चित ही गाड़ी पर चढ़ता। फिर गुरुवर का सहसा ही सुमिरन हुआ और लंबी गाड़ी अचानक से लगा कि छोटी हो गई और मैं अपनी लेन में जाने में कामयाब रहा। सामने से आ रहा ट्रक और मेरी गाड़ी का अपनी लेन में जाने के समय में कोई अंतराल नहीं था। ऐसा जैसे कोई जादू हुआ हो।

तब समझ आया कि प्रभु एक घंटे और क्यों रोक रहे थे? तब मतिमंद समझ पाई कि प्रभु किसे दुत्कार रहे थे? तब समझ आया गुरुवर ने कैसे मेरी रक्षा की? सच में यह अनुभव बहुत रोमांचक और आध्यात्मिक है। परमहंस गुरुवर चैतन्य हनुमान महामूर्ति श्रीराम बाबाजी ने जिस तरह से इस रास्ते में रक्षा की उसमें एक भी शब्द अतिरंजित नहीं है। समझ आया अलह बहुत बड़ी थी, जिसे भगवान ने पहले तो एक घंटे लेट करवाकर टालने की कोशिश की, लेकिन जब मेरे मन को पढ़ लिया तो फिर उन्होंने अलहकारी शक्तियों को डांटकर टाला।

यह अनुभव अनमोल है। चैतन्य हनुमानजी महामूर्ति परमहंस श्रीराम बाबाजी की बड़ी कृपा। ऐसे परम दयालु, चैतन्य हनुमानजी को हम अभागे न समझ पाएं तो जीवन पशुवत ही मानना चाहिए। ऐसे विराट संत उदयपुरा जैसी पावन भूमि में हैं यह परम सौभाग्य की बात है। हम अधम प्रकट हनुमानजी को न पा सकेंगे अगर यह अवसर गंवा देंगे। जय हो परमहंस गुरुवर आपकी प्रेरणा से ही यह और सब। जय गुरुवर चैतन्य हनुमानजी महामूर्ति परमहंस श्रीराम बाबाजी की।

 
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