नयी दिल्ली, 18 दिसंबर (भाषा) भारत के 6.4 करोड़ सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों (एमएसएमई) में केवल कृत्रिम मेधा (एआई) को अपनाने से ही 500 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक का आर्थिक मूल्य सृजित हो सकता है। हालांकि, इस क्षमता को साकार करने के लिए देश को ‘‘पहले अपनाओ’’ की मानसिकता से हटकर ‘‘पहले आविष्कार करो’’ की सोच अपनानी होगी। एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है।
‘इंडिया ट्रिपल एआई इम्पेरेटिव: सक्सीडिंग विद एआई इन इंडिया’ शीर्षक वाली यह रिपोर्ट बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (बीसीजीएक्स) और फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) द्वारा जारी की गई।
रिपोर्ट में कहा गया कि भले ही भारत दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते एआई बाजारों में से एक है लेकिन गहन नवाचार एवं वास्तविक मूल्य प्राप्ति के मामले में अब भी बड़ी खामियां मौजूद हैं।
बीसीजीएक्स, बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (बीसीजी) की प्रौद्योगिकी निर्माण, डिजाइन एवं नवाचार इकाई है।
रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘ भारत के 6.4 करोड़ एमएसएमई में कई अप्रयुक्त अवसर मौजूद हैं। इस क्षेत्र में एआई अपनाने से उत्पादकता में वृद्धि, लागत में कमी और ऋण तक बेहतर पहुंच के माध्यम से 500 अरब डॉलर से अधिक का आर्थिक मूल्य सृजित हो सकता है।’’
रिपोर्ट में हालांकि यह भी सामने आया कि डिजिटल अवसंरचना की कमी, जागरूकता का अभाव और कुशल प्रतिभाओं तक सीमित पहुंच जैसी बाधाएं इस क्षेत्र में अब भी बनी हुई हैं।
इसमें कहा गया कि एआई के लिए तैयारियों के मामले में भारत वैश्विक स्तर पर शीर्ष चार में आता है, लेकिन वैश्विक एआई पेटेंट में उसका योगदान फिलहाल एक प्रतिशत से भी कम है।
अध्ययन में केवल छोटी-छोटी समस्याओं के समाधान के लिए प्रौद्योगिकी को लागू करने के बजाय ‘‘एआई-प्रथम’’ व्यवसायों के निर्माण की दिशा में बदलाव का आग्रह किया गया है।
फिक्की की महानिदेशक ज्योति विज ने कहा, ‘‘ भारत के लिए एआई में अवसर केवल बड़े पैमाने में नहीं बल्कि समावेश में निहित है। एमएसएमई, स्टार्टअप और क्षेत्रीय परिवेश में एआई अपनाने को समर्थन देकर देश उत्पादकता बढ़ा सकता है, गुणवत्तापूर्ण रोजगार सृजित कर सकता है और दीर्घकालिक सामाजिक-आर्थिक मजबूती को बढ़ावा दे सकता है।’’
रिपोर्ट में रुचि और निवेश के बीच अंतर का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि करीब 44 प्रतिशत अधिकारी अब भी अपने प्रौद्योगिकी बजट का 10 प्रतिशत से कम एआई में निवेश करते हैं।
इसमें कहा गया कि कंपनियों की ओर से एक आम गलती यह है कि वे एआई को केवल सूक्ष्म समस्याओं के समाधान तक सीमित रखते हैं, बजाय इसके कि वे कार्यात्मक रूपांतरण की ओर बढ़ें। फिलहाल केवल 25 प्रतिशत अधिकारी ही एआई से ‘‘वास्तविक मूल्य’’ प्राप्त कर पा रहे हैं।
बीसीजी के प्रबंध निदेशक एवं वरिष्ठ भागीदार निपुण कालरा ने कहा, ‘‘ वास्तविक मूल्य एआई-प्रथम व्यवसायों के निर्माण, गहन नवाचार को बढ़ावा देने और समावेशी पहुंच सुनिश्चित करने से ही आएगा।’’
रिपोर्ट में 2026 तक परिचालन मॉडल में बड़े बदलाव का अनुमान लगाया गया है, जहां कुछ कार्यों को करने का पहला अधिकार एआई को मिलेगा। इसके अनुसार, निकट भविष्य में 70–80 प्रतिशत नियमित कार्य और 30–50 प्रतिशत तर्क-आधारित कार्य एआई द्वारा किए जा सकेंगे।
भाषा निहारिका नरेश
नरेश