असलियत से ज्यादा पर्यावरण-अनुकूल दिखाने से घट जाता है ब्रांड का मूल्यः आईआईएम अध्ययन

असलियत से ज्यादा पर्यावरण-अनुकूल दिखाने से घट जाता है ब्रांड का मूल्यः आईआईएम अध्ययन

असलियत से ज्यादा पर्यावरण-अनुकूल दिखाने से घट जाता है ब्रांड का मूल्यः आईआईएम अध्ययन
Modified Date: May 27, 2025 / 07:44 pm IST
Published Date: May 27, 2025 7:44 pm IST

नयी दिल्ली, 27 मई (भाषा) भारतीय प्रबंध संस्थान (आईआईएम) लखनऊ के एक अध्ययन में पाया गया है कि पर्यावरण-अनुकूल गतिविधियों से संबंधित प्रमाणन का बढ़ा-चढ़ाकर या गलत दावा करने से ब्रांड का मूल्य घट सकता है क्योंकि इससे उपभोक्ताओं का भरोसा कम होता है और टिकाऊ खरीदारी भी हतोत्साहित होती है।

इस अध्ययन में यह पता लगाने की कोशिश की गई कि खुद को असलियत से ज्यादा पर्यावरण-अनुकूल दिखाने की भ्रामक रणनीति यानी ‘ग्रीनवॉशिंग’ उपभोक्ताओं के विश्वास, ब्रांड की धारणा और खरीद व्यवहार पर किस तरह नकारात्मक प्रभाव डालती है।

यह शोध सऊदी अरब के हेल विश्वविद्यालय, इटली के ट्यूरिन विश्वविद्यालय, सऊदी अरब के प्रिंसेस नूराह बिंट अब्दुलरहमान विश्वविद्यालय और गाजियाबाद स्थित इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज के शोधकर्ताओं के सहयोग से किया गया है। इस रिपोर्ट को प्रतिष्ठित पत्रिका ‘बिजनेस स्ट्रैटेजी एंड द एनवायरनमेंट’ में प्रकाशित किया गया है।

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अधिकारियों के मुताबिक, उपभोक्ताओं को आकर्षित करने, सकारात्मक धारणा बनाने और खरीद व्यवहार में हेराफेरी करने के लिए ब्रांड के बीच ग्रीनवाशिंग एक आम चलन बन गया है।

आईआईएम लखनऊ में सहायक प्रोफेसर (विपणन प्रबंधन) सुशांत कुमार ने कहा, ‘‘अध्ययन में पाया गया कि ग्रीनवॉशिंग न केवल लोगों को मूर्ख बनाती है बल्कि यह ब्रांड के प्रति विश्वास को भी नुकसान पहुंचाती है और टिकाऊ खरीदारी को हतोत्साहित करती है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ग्रीनवॉशिंग का चलन कंपनियों के लिए खतरनाक है लेकिन उपभोक्ता हरित दावों की सराहना करते हैं। किसी व्यवसाय के हरित दावों को ऐसे साक्ष्यों द्वारा प्रमाणित किया जाना चाहिए, जिन्हें उपभोक्ता सत्यापित कर सकें।’’

कुमार ने कहा, ‘‘पर्यावरण के बारे में अधिक जानकारी रखने वाले लोग ब्रांड द्वारा किए गए पर्यावरण-दावों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करने और अधिक दृढ़ता से प्रतिक्रिया करने की अधिक संभावना रखते हैं।’’

भाषा प्रेम प्रेम अजय

अजय


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