वैध प्रवर्तनीय कर्ज होने पर ही चेक बाउंस माना जाएगा अपराधः न्यायालय

वैध प्रवर्तनीय कर्ज होने पर ही चेक बाउंस माना जाएगा अपराधः न्यायालय

वैध प्रवर्तनीय कर्ज होने पर ही चेक बाउंस माना जाएगा अपराधः न्यायालय
Modified Date: November 29, 2022 / 08:12 pm IST
Published Date: October 11, 2022 8:18 pm IST

नयी दिल्ली, 11 अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि चेक बाउंस के मामले के एक आपराधिक कृत्य होने के लिए जरूरी है कि भुगतान के लिए बैंक में पेश किए जाते समय वह चेक कानूनी रूप से प्रवर्तनीय कर्ज का हिस्सा हो।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों का विस्तार से विश्लेषण करने के बाद कहा, ‘‘इसकी धारा 138 के तहत चेक बाउंस को आपराधिक कृत्य मानने के लिए यह जरूरी है कि बाउंस हुआ चेक पेश किए जाते समय एक वैध प्रवर्तनीय ऋण का प्रतिनिधित्व करे।’’

पीठ ने यह भी कहा कि अगर चेक जारी करने के बाद और उसे भुनाए जाने के पहले जारीकर्ता उस राशि के कुछ या पूरे हिस्से का भुगतान कर देता है तो फिर चेक परिपक्वता की तारीख पर वैध प्रवर्तनीय ऋण उस चेक पर अंकित राशि के बराबर नहीं होगा।

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न्यायालय ने यह निर्णय गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर दशरथभाई त्रिकमभाई पटेल की अपील पर सुनाया है। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले को सही ठहराते हुए कहा था कि दशरथभाई के रिश्तेदार हितेश महेंद्रभाई पटेल के खिलाफ चेक बाउंस का कोई वाद नहीं बनता है।

हितेश ने दशरथभाई से जनवरी, 2012 में 20 लाख रुपये उधार लिए थे और इसकी गारंटी के तौर पर उन्हें समान राशि का एक चेक दे दिया था। लेकिन बैंक में भुनाने के लिए दिए जाने पर वह चेक बाउंस हो गया था। हालांकि, चेक बैंक में पेश किए जाने के पहले ही हितेश ने उधार ली हुई रकम लौटा दी थी।

इसपर उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जब चेक पर अंकित राशि का आंशिक या समूचा हिस्सा जारीकर्ता ने चेक बैंक में पेश किए जाने के पहले ही चुका दिया है तो उस पर धारा 138 के तहत आपराधिक वाद नहीं बनता है।

चेक का बाउंस होना एक दंडनीय अपराध है और दोषी पाए गए व्यक्ति को अर्थदंड के साथ अधिकतम दो साल तक की सजा हो सकती है।

भाषा प्रेम

प्रेम अजय

अजय


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