अमेरिकी शुल्क की चिंता न करें, नए बाजार तलाशेंगे: कृषि मंत्री चौहान

अमेरिकी शुल्क की चिंता न करें, नए बाजार तलाशेंगे: कृषि मंत्री चौहान

अमेरिकी शुल्क की चिंता न करें, नए बाजार तलाशेंगे: कृषि मंत्री चौहान
Modified Date: August 12, 2025 / 09:42 pm IST
Published Date: August 12, 2025 9:42 pm IST

नयी दिल्ली, 12 अगस्त (भाषा) कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंगलवार को किसानों से अमेरिकी शुल्क में बढ़ोतरी के कारण मौजूदा ‘कठिन समय’ को लेकर ‘चिंता न करने’ का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि विशाल भारतीय बाजार कृषि उपज के निर्यात के लिए नए जगहों की तलाश करेगा।

चौहान ने कहा कि भारत ने इस मामले में स्पष्ट रुख अपनाया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में जो कहा था – कि ‘‘वह देश के किसानों के हितों से समझौता नहीं करेंगे, चाहे इसके लिए उन्हें भारी कीमत क्यों न चुकानी पड़े’’ – वह ‘‘भारत और भारतीय किसानों की आवाज’’ है।

अमेरिका ने भारतीय वस्तुओं पर शुल्क बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया है, जबकि दोनों देश एक द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर चर्चा कर रहे हैं। भारत के कृषि और डेयरी बाजार तक अधिक पहुंच की अमेरिकी मांग के कारण यह व्यापार समझौता अटका हुआ है।

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उन्होंने यहां पूसा परिसर में किसान नेताओं के एक समूह को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘आप चिंता मत कीजिए। देखते हैं क्या होता है… हम नए बाज़ार तलाशेंगे। भारत इतना बड़ा बाजार है कि इसकी खपत यहीं होगी।’’

अमेरिका की आबादी सिर्फ 30 करोड़ है, जबकि यूरोप की 50 करोड़। उन्होंने कहा, ‘‘भारत की 140 करोड़ आबादी हमारी कमजोरी नहीं, बल्कि हमारी ताकत है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘यह हमारी परीक्षा की घड़ी है और हमें (अमेरिका के सामने) झुकने की जरूरत नहीं है।’’

मंत्री ने कहा कि अमेरिका को कृषि क्षेत्र को अलग रखना चाहिए क्योंकि भारत और अमेरिका के बीच कृषि कार्यों और कृषि जोत के पैमाने की कोई ‘उचित तुलना’ नहीं है।

भारत की तुलना में आनुवंशिक रूप से संवर्धित और अन्य तकनीकों के उपयोग के कारण अमेरिका में प्रति हेक्टेयर उत्पादन लागत भी कम है।

मंत्री ने कहा कि अमेरिकी किसानों के पास 10,000-15,000 हेक्टेयर कृषि जोत है, जबकि भारतीय किसानों के पास तीन एकड़ से भी कम है। अमेरिका अपने सोयाबीन, मक्का, गेहूं और अन्य उत्पादों को यहां भेजना चाहता है।

उन्होंने कहा, ‘‘अगर यह यहां आसानी से पहुंचता है, तो इससे स्थानीय कीमतों में और गिरावट आएगी। फिर हमारे किसान कहां जाएंगे? इसलिए, यह निर्णय लिया गया कि चाहे कुछ भी हो जाए, किसानों के हितों से किसी भी कीमत पर समझौता नहीं किया जाएगा।’’

भाषा राजेश राजेश रमण

रमण


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