किसान आंदोलन से कारोबार को 50,000 करोड़ रुपये का नुकसान, वार्ता में व्यापारियों को भी जगह मिले: कैट

किसान आंदोलन से कारोबार को 50,000 करोड़ रुपये का नुकसान, वार्ता में व्यापारियों को भी जगह मिले: कैट

किसान आंदोलन से कारोबार को 50,000 करोड़ रुपये का नुकसान, वार्ता में व्यापारियों को भी जगह मिले: कैट
Modified Date: November 29, 2022 / 08:25 pm IST
Published Date: January 21, 2021 3:02 pm IST

नयी दिल्ली 21 जनवरी (भाषा) खुदरा व्यापारियों के संगठन कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने बृहस्पतिवार को कहा दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र में किसानों के आंदोलन से व्यापारियों को लगभग 50 हजार करोड़ रुपये के काराबार का नुकसान हुआ है।

कैट ने कहा है कि प्रस्तावित संयुक्त समिति में व्यापारियों को भी रखा जाए, क्योंकि नए कृषि कानूनों से व्यापारियों के हित भी जुड़े हैं।

कृषि और मंडी व्यवस्था में सुधार के लिए लागू तीन नए कानूनों को खत्म करने की मांग को लेकर किसानों की विभिन्न यूनियनों ने करीब दो महीने से दिल्ली की सीमाओं पर कई महत्वपूर्ण राजमार्ग रोक रखे हैं।

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इन कानूनों के अनुपालन को डेढ साल तक टालने के सरकार के नए प्रस्ताव पर एक बयान में कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी सी भरतिया और राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीण खंडेलवाल ने कहा कि ‘सरकार का हालिया प्रस्ताव न्यायसंगत है और मुद्दे को हल करने के लिए सरकार की इच्छा को दर्शाता है। इसलिए अब किसानों को कृषि समुदाय के बड़े हित और कृषि व्यापार में लगे लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए इस प्रस्ताव को स्वीकार करना चाहिए और अपना आंदोलन वापिस ले लेना चाहिए।’

बयान में कहा गया कि यदि अब भी किसान सरकार के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करते हैं, तो यह माना जाएगा कि वे समाधान में रुचि नहीं रखते हैं और कुछ विभाजनकारी ताकतें समस्या बनाएं रखने के लिए किसानों का इस्तेमाल कर रही हैं।

खंडेलवाल ने यह भी कहा कि कृषि कानून सिर्फ किसानों से नहीं जुड़े हैं। देश भर में लगभग 1.25 करोड़ व्यापारी मंडियों में काम करते हैं। कैट ने सरकार से अपील की है कि व्यापारियों को भी प्रस्तावित संयुक्त समिति में प्रतिनिधित्व दिया जाए।

उन्होंने कहा कि कृषि कानूनों में आपूर्ति श्रृंखला के इस महत्वपूर्ण घटक को ही हटाने के बारे में साफ कहा गया है। ऐसे में इन लोगों की आजीविका का क्या होगा? क्या वे एक ही झटके में अपनी आजीविका से बाहर हो जाएंगे? इन लोगों के हितों को भी संरक्षित करने की आवश्यकता है, क्योंकि इतनी बड़ी संख्या को नजरअंदाज नही किया जा सकता।

भाषा मनोहर पाण्डेय

पाण्डेय


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