वैश्विक-कार्यसूची को ढालने में समर्थ है भारत, कोविड-19 से निपटने में तेजी, मजबूती दिखायी : श्वाब

वैश्विक-कार्यसूची को ढालने में समर्थ है भारत, कोविड-19 से निपटने में तेजी, मजबूती दिखायी : श्वाब

  •  
  • Publish Date - October 25, 2020 / 09:03 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:56 PM IST

नयी दिल्ली, 25 अक्टूबर (भाषा) विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) के संस्थापक एवं चेयरमैन क्लॉस श्वाब ने कहा है कि भारत ने कोविड-19 महामारी से निपटने में तत्परता और अच्छी तरह से काम किया है। उनकी राय में भारत के अंदर इतनी संभावनाएं है कि वह दुनिया का एजेंडा तय कर सकता है।

उन्होंने कहा कि अब भारत के सामने अब अधिक डिजिटल और मजबूत अर्थव्यवस्था की ओर ‘छलांग’ लगाने का सबसे बड़ा अवसर है।

श्वाब ने जिनेवा से पीटीआई-भाषा से साक्षात्कार में कहा कि वह भारत को लेकर आशान्वित हैं। भारत अब अपने को और अधिक मजबूत तथा अधिक बराबरी के साथ खड़े होने वाले राष्ट्र के रूप में विकसित करने में लगा है। दुनिया भारत को एक प्रेरणा के रूप में देखेगी।

श्वाब ने कहा, ‘‘अपने जनांकिकी लाभ और गहन विविधता की वजह से भारत के पास वैश्विक एजेंडा को आकार देने और हमारे सामूहिक भविष्य को परिभाषित करने की ताकत है।’’ श्वाब ने करीब 50 साल पहले डब्ल्यूईएफ की स्थापना की थी।

उन्होंने कहा, ‘‘भारत ने कोविड-19 महामारी के प्रकोप से निपटने के लिए शुरुआत में काफी मजबूत प्रतिक्रिया दी। शुरू में ही लॉकडाउन लगाने के साथ लोगों को रोटी के संभावित संकट से बचाने के लिए 80 करोड़ लोगों को राशन दिया गया। छोटे कारोबार के लिए गारंटी मुक्त कर्ज की सुविधा उपलब्ध कराई गई।’’

लकिन श्वाब ने इसके साथ ही कहा, ‘‘भारत से जो नहीं हो सका वह यह है कि इस महामारी के कारण असंगठित क्षेत्र, निम्न आय वर्ग तथा दिहाड़ी मजदूरी करने वाले लाखों लोगों को अत्यंत असुरक्षित स्थिति में पहुंचने से वह नहीं रोक पाया। आज उनके जीवन और आजीविका की सुरक्षा सबसे बड़ी चिंता है क्यों कि इससे अधिक गहरा और मानवीय संकट पैदा हो सकता है।’’

उन्होंने कहा कि महामारी के बाद भारत अधिक बेहतर भविष्य के निर्माण पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। यह उसके लिए अधिक डिजिटल और सतत अर्थव्यवस्था की ओर ‘छलांग’ लगाने का अवसर है। श्वाब ने इसके साथ ही इस बात पर दुख जताया कि दुनिया के कई देशों में महामारी से निपटने की तैयारियों में कमी थी।

उन्होंने कहा, ‘‘इस धारणा कि महामारी सौ साल में एक बार होने वाली घटना है की वजह से कई देशों की सरकारों और उद्योग जगत के लोगों ने शुरुआत में इसे खतरे के रूप में नहीं लिया जिसकी कीमत हमें चुकानी पड़ी।’’

भाषा अजय अजय मनोहर

मनोहर