रांची, 15 अप्रैल (भाषा) झारखंड के खूंटी जिले की मध्यम आयु वर्ग की महिला किसान बसंती देवी और सीता देवी चमकती आंखों और आकर्षक मुस्कान के साथ बताती हैं कि कैसे एक ‘मोबाइल कूलिंग’ पहल ने उनके जीवन को बेहतर बना दिया है।
ये महिला किसान अपने दिन घोर गरीबी में बिता रही थीं और मशरूम, तरबूज, फूलगोभी और पत्तागोभी की मौसमी खेती करते थीं। क्षेत्र में किसी भी शीत भंडारण (कोल्ड स्टोरेज) इकाई की अनुपस्थिति में उन्हें अपनी जल्दी खराब होने वाली उपज को सस्ते में बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता था।
हालांकि, कृषि प्रौद्योगिकी नवोन्मेषक बीएमएच ट्रांसमोशन के साथ साझेदारी में नेतरहाट ओल्ड बॉयज एसोसिएशन ग्लोबल सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (नोबा जीएसआर) की पहल ‘संवर्धन मोबाइल कूल स्टोरेज यूनिट’ के शुभारंभ के साथ, अब वे अपनी उपज को स्टोर करने में सक्षम हैं और बाद में उन्हें अच्छी कीमत मिलने पर बेच सकती हैं। 42 वर्षीय सीता देवी, जो अब कोल्ड स्टोरेज यूनिट से लाभान्वित हो रही हैं, ने कहा, ‘‘मशरूम नाजुक होते हैं और जल्दी खराब हो जाते हैं। हमारे पास समय नहीं होता।’’
बसंती देवी (39) ने कहा, ‘‘हमें ‘मंडी’ द्वारा तय की गई दरों को स्वीकार करना पड़ता था।’’
नोबा जीएसआर के बोर्ड सलाहकार ओम प्रकाश चौधरी, जो परियोजना के पीछे का दिमाग भी हैं, ने कहा कि मोबाइल कोल्ड स्टोरेज पहल विशेष रूप से फार्म-गेट वास्तविकताओं के लिए डिज़ाइन की गई है। यह किसानों को लचीलापन और नियंत्रण प्रदान करने के लिए अत्याधुनिक तकनीक के साथ परिवहन को जोड़ती है।
चौधरी ने पीटीआई-भाषा से बात करते हुए कहा, ‘‘मेरा सपना तब सच हुआ जब हमारे संवर्धन मोबाइल कूल स्टोरेज का उद्घाटन किया गया। हालांकि, मुझे असली खुशी तब होगी जब मैं आने वाले दिनों में महिला किसानों के सपनों को हकीकत बनते देखूंगा।’’
मोबाइल कोल्ड स्टोरेज इकाइयों में कृषि उपज के इष्टतम संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए सौर पैनल, एक गैस अवशोषक, वायु परिसंचरण और एथिलीन गैस प्रबंधन प्रणाली है।
हालांकि, यह पहल प्रायोगिक तौर पर लंबे समय से लागू है, लेकिन सोमवार को खूंटी में राज्य आदिवासी कल्याण आयुक्त अजय नाथ झा ने औपचारिक रूप से एक ऐसी मोबाइल कोल्ड स्टोरेज इकाई का शुभारंभ किया।
चौधरी ने कहा कि खूंटी में मिली सफलता को अन्य कृषि क्षेत्रों में भी दोहराया जाएगा।
नोबा जीएसआर का लक्ष्य कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व (सीएसआर) समर्थन, किसान उत्पादक संगठनों के साथ साझेदारी और सामुदायिक स्वामित्व के साथ पहल का विस्तार करना है ताकि छोटे और सीमांत किसानों के लिए एक स्थायी पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण किया जा सके।
एक अन्य मशरूम किसान, पचास वर्षीय रेखा देवी ने कहा कि उनके गांव की अन्य महिला किसान अच्छी कीमत मिले बिना उपज बेच रही हैं।
उन्होंने कहा कि हालांकि, तोरपा क्षेत्र की लगभग 2,500 महिला किसान अब मोबाइल कूलिंग पहल से जुड़ रही हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, ऐसी मोबाइल शीत भंडारण इकाइयां फसल के बाद होने वाले नुकसान को 40 प्रतिशत से घटाकर केवल तीन प्रतिशत करने में मदद करती हैं, जिससे उपज की ‘शेल्फ लाइफ’ बढ़ जाती है।
भाषा राजेश राजेश अजय
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