मांग कमजोर रहने से अधिकांश तेल-तिलहनों में गिरावट

मांग कमजोर रहने से अधिकांश तेल-तिलहनों में गिरावट

मांग कमजोर रहने से अधिकांश तेल-तिलहनों में गिरावट
Modified Date: July 5, 2024 / 09:19 pm IST
Published Date: July 5, 2024 9:19 pm IST

नयी दिल्ली, पांच जुलाई (भाषा) मलेशिया एक्सचेंज में कमजोर रुख के बीच घरेलू बाजारों में शुक्रवार को मांग कमजोर रहने से सरसों एवं सोयाबीन तेल-तिलहन, कच्चा पामतेल (सीपीओ) एवं पामोलीन तेल के भाव गिरावट के साथ बंद हुए। दूसरी ओर ऊंचे दाम पर कारोबार प्रभावित होने से मूंगफली तेल-तिलहन और बिनौला तेल के दाम पूर्वस्तर पर बंद हुए। बाजार सूत्रों ने यह जानकारी दी।

मलेशिया एक्सचेंज शाम साढ़े तीन बजे गिरावट के साथ बंद हुआ। जबकि शिकॉगो एक्सचेंज में सुबह का कारोबार बंद था और यहां शाम सात बजे बाजार खुला है।

बाजार सूत्रों ने कहा कि लिवाली कमजोर रहने से सरसों तेल तिलहन में गिरावट आई। सरसों के छोटे तेल पेराई मिलों के तेल के भाव बेपड़ता हो रहे हैं।

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उन्होंने कहा कि जब आयातित सूरजमुखी, सोयाबीन और पामोलीन तेल का थोक भाव 80-85-90 रुपये किलो के आसपास बिक रहे हों तो सरसों (थोक भव लगभग 125 रुपये किलो) और बाकी देशी खाद्यतेल (थोक भाव लगभग 150 रुपये किलो) कहां खपेंगे? हालत यह है कि छोटी पेराई मिलें, नुकसान होने की वजह से कारोबार छोड़ने की जुगत में हैं और सरकार को उनकी वास्तविक हालत की जानकारी देने में कुछ बड़े तेल संगठन नाकामयाब रहे हैं। उल्टे वह खाद्यतेलों की मंहगाई की बात करते पाये जाते हैं।

सूत्रों ने कहा कि वर्ष 2014 के बाद से अलग अलग किस्तों में सरकार ने खाद्यतेलों पर लगने वाले आयात शुल्क को पांच प्रतिशत से बढ़ाकर 38.5 प्रतिशत कर दिया। उस समय आयातित सोयाबीन, सूरजमुखी और पामोलीन तेल के दाम 70-80 रुपये किलो बैठते थे। लेकिन आज इन खाद्यतेलों के भाव 90-95 रुपये किलो बैठते हैं तो आयात शुल्क घटाकर 5.50 (साढ़े पांच) प्रतिशत) कर दिया गया है।

इससे स्थिति यह बन गई है कि देशी तेल मिलों का कामकाज लगभग ठप है और विदेशी तेल मिलें धड़ल्ले से चल रही हैं। भारत खाद्यतेलों का बड़ा आायतक देश है जो अपनी खाद्यतेल आवश्यकता के लगभग 55 प्रतिशत भाग का आयात करता है।

सूत्रों ने कहा कि यह गलतफहमी है कि खाद्यतेलों से महंगाई बढ़ती है क्योंकि इसकी महीने में प्रति व्यक्ति खपत काफी कम है। सरकार हर साल न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाती है और तेल के दाम लगभग पूर्व के दाम के आसपास हैं। सरकार तिलहन उत्पादन बढ़ाना चाहती है तो उसे देशी तेल तिलहनों का बाजार भी बनाने पर ध्यान देना होगा। मौजूदा स्थिति देशी तेल तिलहन उद्योग को भारी नुकसान पहुंचा रहा है और यह स्थिति तिलहन किसानों, तेल पेराई मिलों, तेल उद्योग, खाद्यतेल आयातकों के साथ साथ उपभोक्ताओं को भी कष्ट दे रहा है।

तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे:

सरसों तिलहन – 6,040-6,100 रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली – 6,250-6,525 रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) – 14,880 रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली रिफाइंड तेल 2,250-2,550 रुपये प्रति टिन।

सरसों तेल दादरी- 11,700 रुपये प्रति क्विंटल।

सरसों पक्की घानी- 1,905-2,005 रुपये प्रति टिन।

सरसों कच्ची घानी- 1,905-2,030 रुपये प्रति टिन।

तिल तेल मिल डिलिवरी – 18,900-21,000 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 10,400 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 10,200 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 8,800 रुपये प्रति क्विंटल।

सीपीओ एक्स-कांडला- 8,625 रुपये प्रति क्विंटल।

बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 10,450 रुपये प्रति क्विंटल।

पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 9,850 रुपये प्रति क्विंटल।

पामोलिन एक्स- कांडला- 8,900 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल।

सोयाबीन दाना – 4,570-4,590 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन लूज- 4,380-4,500 रुपये प्रति क्विंटल।

मक्का खल (सरिस्का)- 4,085 रुपये प्रति क्विंटल।

भाषा राजेश राजेश रमण

रमण


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