नयी दिल्ली, 28 सितंबर (भाषा) राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) अपनी पांच सदस्यीय पीठ के फैसले पर पुनर्विचार कर सका है। यह मामला दिवाला प्रक्रिया शुरू करने की समयसीमा पर निर्णय करने के लिए कंपनी के बही खाते में शामिल ऋण की प्रविष्टियों की स्वीकार्यता से संबंधित है।
मुद्दा यह है कि क्या बही खाते में डाली गई प्रविष्टियों को तीन साल की सीमा की गणना के लिए ऋण की स्वीकृति के रूप में लिया जा सकता है। क्या यह लिमिटेशन कानून, 1963 की धारा 18 के तहत मान्य है।
लिमिटेशन कानून दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) की प्रक्रियाओं में भी मान्य है।
एनसीएलएटी की तीन सदस्यीय पीठ ने पिछले सप्ताह एक विरला उदाहरण पेश करते हुए कहा था कि उसकी पांच सदस्यीय पीठ द्वारा पिछले साल मार्च में जारी आदेश निश्चित कानून से उलट है।
तीन सदस्यीय पीठ ने निष्कर्ष दिया कि वी पद्मकुमार के मामले में फैसले पर पुनर्विचार किए जाने की जरूरत है। उच्चतम न्यायालय और इलाहाबाद, कलकता, दिल्ली, कर्नाटक, केरल और तेलंगाना के उच्च न्यायालयों का विचार है कि लिमिटेशन कानून की धारा 18 के लिए कंपनी के बही खाते में दर्ज प्रविष्टियां को ऋण की स्वीकार्यता के रूप में लिया जाना चाहिए।
भाषा अजय अजय मनोहर
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