(बिजय कुमार सिंह)
नयी दिल्ली, 10 जुलाई (भाषा) नीति आयोग के सदस्य अरविंद विरमानी ने राज्यों के समक्ष आ रही समस्याओं का ‘‘व्यावहारिक’’ समाधान ढूंढने की बुधवार को वकालत की।
उन्होंने कहा कि राजस्थान तथा ओडिशा जैसे राज्यों ने विशेष श्रेणी का दर्जा प्राप्त किए बिना भी अच्छा प्रदर्शन किया है।
विरमानी ने कहा कि लोकतंत्र में विशिष्ट समस्याओं को पहचानना और व्यावहारिक समाधान ढूंढने की जरूरत होती है।
वह बिहार और आंध्र प्रदेश को ‘विशेष श्रेणी का दर्जा’ (एससीएस) दिए जाने के मुद्दे पर पूछे गए सवाल का जवाब दे रहे थे।
विरमानी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘ ऐसी समितियां और आयोग हैं जिन्होंने (राज्यों के लिए) विशेष राज्य के दर्जे के लिए मानदंड निर्धारित करने का प्रयास किया है। यह एक जटिल मुद्दा भी है।’’
अर्थशास्त्री ने कहा कि पिछले 30-40 वर्षों में ‘‘ हमारे यहां ‘बीमारू’ राज्य हुआ करते थे।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ मिसाल के तौर पर ओडिशा ने बहुत विकास किया है, राजस्थान ने भी बहुत प्रगति की है और चीजें बदल गई हैं। जहां तक मुझे पता है, इनमें से किसी भी राज्य को विशेष श्रेणी का दर्जा नहीं मिला है। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि यह महत्वपूर्ण नहीं है।’’
आंध्र प्रदेश 2014 में अपने विभाजन के बाद से राजस्व हानि के आधार पर विशेष राज्य का दर्जा मांग रहा है, क्योंकि हैदराबाद तेलंगाना की राजधानी बन गया है।
बिहार भी 2005 से विशेष दर्जे की मांग कर रहा है। नीतीश कुमार ने 2005 में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। 2000 में खनिज समृद्ध झारखंड के अलग होने के बाद राज्य को राजस्व का भी नुकसान उठाना पड़ा।
विरमानी ने कहा, ‘‘ इसलिए लोकतंत्र में हमें चर्चा करनी होगी और व्यावहारिक समाधान ढूंढना होगा।’’
उन्होंने कहा कि बात रखने का हमेशा एक तरीका होता है, ‘‘ हम विशिष्ट समस्याओं को पहचानते हैं और उनसे निपटते हैं।’’
गौरतलब है कि 14वें वित्त आयोग ने केंद्र द्वारा एकत्रित करों में राज्यों का हिस्सा 32 प्रतिशत से बढ़ाकर 42 प्रतिशत कर दिया है, लेकिन विशेष श्रेणी वाले राज्यों को समाप्त कर दिया है।
‘विशेष दर्जा’ श्रेणी की शुरुआत 1969 में पांचवें वित्त आयोग की सिफारिश पर पहाड़ी इलाकों, रणनीतिक अंतरराष्ट्रीय सीमाओं और आर्थिक व बुनियादी ढांचे में पिछड़ेपन वाले कुछ पिछड़े राज्यों को लाभ पहुंचाने के लिए की गई थी।
भाषा निहारिका अजय
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