सार्वजनिक बैंकों ने पिछले पांच साल में 5.82 लाख करोड़ रुपये से अधिक के ऋण बट्टे खाते में डाले
सार्वजनिक बैंकों ने पिछले पांच साल में 5.82 लाख करोड़ रुपये से अधिक के ऋण बट्टे खाते में डाले
नयी दिल्ली, 12 अगस्त (भाषा) सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) ने पिछले पांच वित्त वर्षों में लगभग 5.82 लाख करोड़ रुपये के फंसे हुए कर्ज को बट्टे खाते में डाला है। मंगलवार को संसद को यह जानकारी दी गई।
वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में कहा कि वर्ष 2024-25 के दौरान, पीएसबी का बट्टे खाते में डाला गया ऋण 91,260 करोड़ रुपये था, जबकि इससे पिछले वित्तवर्ष में यह राशि 1.15 लाख करोड़ रुपये थी।
वित्तवर्ष 2020-21 के दौरान बट्टे खाते में डाला गया ऋण सबसे अधिक 1.33 लाख करोड़ रुपये था, जो अगले वर्ष घटकर 1.16 लाख करोड़ रुपये और वित्तवर्ष 2022-23 में 1.27 लाख करोड़ रुपये रह गया।
मंत्री ने यह भी कहा कि पीएसबी ने बट्टे खाते में डाले गयी राशि में से पिछले पांच वर्षों में लगभग 1.65 लाख करोड़ रुपये की वसूली भी की है। यानी पिछले पांच वित्तवर्षों में कुल बट्टे खाते में डाली गई राशि का लगभग 28 प्रतिशत की वसूली की गई है।
चौधरी ने कहा कि बैंक भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के दिशानिर्देशों और बैंकों के निदेशक मंडल द्वारा अनुमोदित नीति के अनुसार, चार वर्ष पूरे होने पर पूर्ण प्रावधान किए गए एनपीए (गैर-निष्पादित परिसंपत्ति) को ही बट्टे खाते में डालते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘इस तरह की बट्टे खाते में डालने से उधारकर्ताओं की देनदारियों में छूट नहीं मिलती है और इसलिए, इससे उधारकर्ता को कोई लाभ नहीं होता है। उधारकर्ता पुनर्भुगतान के लिए उत्तरदायी बने रहते हैं और बैंक इन खातों में वसूली की कार्रवाई जारी रखते हैं।’’
मंत्री ने यह भी कहा कि बट्टे खाते में डाले गए ऋणों की वसूली एक सतत प्रक्रिया है और बैंक अपने पास उपलब्ध विभिन्न वसूली उपायों का उपयोग कर राशि वसूलने का प्रयास करते हैं। इन उपायों में दिवानी अदालतों या ऋण वसूली न्यायाधिकरणों में मुकदमा दायर करना, और दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता के तहत राष्ट्रीय कंपनी विध न्यायाधिकरण में मामले दायर करना आदि शामिल हैं।
एक अन्य प्रश्न के उत्तर में, चौधरी ने कहा कि पिछले पांच साल में देश भर में प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (पीएमएमवाई) के तहत 21.68 लाख करोड़ रुपये से अधिक का वितरण किया गया है।
भाषा राजेश राजेश रमण
रमण

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