एफपीआई के सार्वजनिक खुलासे को अनिवार्य करने की याचिका पर न्यायालय ने मोइत्रा से सवाल किए
एफपीआई के सार्वजनिक खुलासे को अनिवार्य करने की याचिका पर न्यायालय ने मोइत्रा से सवाल किए
नयी दिल्ली, 14 अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की सांसद महुआ मोइत्रा से उनकी उस याचिका पर सवाल किए, जिसमें भारत में वैकल्पिक निवेश कोषों, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) और उनके मध्यस्थों के अंतिम लाभार्थियों तथा पोर्टफोलियो के सार्वजनिक खुलासे को अनिवार्य करने की मांग की गई है।
न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दायर करके संदेह के आधार पर जांच नहीं की जा सकती।
पीठ ने कहा, ‘‘आप सार्वजनिक खुलासे की मांग कर रही हैं। लेकिन उस प्रकटीकरण का उद्देश्य क्या है? आप प्रकटीकरण का क्या करेंगी? क्या यह याचिका सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत है? आप अनुच्छेद 32 के तहत ऐसी याचिका नहीं दायर कर सकते जो सूचना के अधिकार की प्रकृति की हो।’’
शीर्ष अदालत ने मोइत्रा की ओर से पेश हुए अधिवक्ता प्रशांत भूषण से याचिका में संशोधन करने और मामले में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के जवाब को चुनौती देने को कहा।
इससे पहले भूषण ने दलील दी कि वैकल्पिक निवेश कोष (एआईएफ) और एफपीआई के माध्यम से एक लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया गया है, लेकिन न तो जनता और न ही सेबी को इस बारे में पता है कि आखिरकार इन निवेशों को कौन नियंत्रित करता है।
उन्होंने आरोप लगाया कि कई फर्जी कंपनियों का इस्तेमाल स्वामित्व को छिपाने के लिए किया जाता है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता सिर्फ इसलिए जानकारी चाहते हैं, ताकि कुछ पता लगाया जा सके और एक याचिका दायर की जा सके।
भाषा पाण्डेय अजय
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