भारत-न्यूज़ीलैंड एफटीए के तहत किसानों के हितों की रक्षा के लिए सेब पर सभी रक्षोपाय लागू

भारत-न्यूज़ीलैंड एफटीए के तहत किसानों के हितों की रक्षा के लिए सेब पर सभी रक्षोपाय लागू

भारत-न्यूज़ीलैंड एफटीए के तहत किसानों के हितों की रक्षा के लिए सेब पर सभी रक्षोपाय लागू
Modified Date: December 24, 2025 / 09:23 pm IST
Published Date: December 24, 2025 9:23 pm IST

नयी दिल्ली, 24 दिसंबर (भाषा) भारत ने मुक्त व्यापार समझौते के तहत न्यूजीलैंड को सेब के आयात के संदर्भ में एक संतुलित और निर्धारित रूप से बाजार पहुंच प्रदान की गई है। साथ ही घरेलू किसानों के हितों की रक्षा के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपाय भी किए हैं। बुधवार को एक सरकारी बयान में यह जानकारी दी गई।

समझौते के तहत न्यूजीलैंड से सेब आयात के लिए तय किये गये कोटे के अंदर ही 25 प्रतिशत की रियायती सीमाशुल्क सुविधा उपलब्ध है, जिसके लिए सोमवार को बातचीत पूरी हुई।

भारत और न्यूजीलैंड दोनों ने मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को अंतिम रूप दिया है, और इसके सात-आठ महीनों में लागू होने की उम्मीद है।

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वाणिज्य मंत्रालय ने कहा, ‘‘तय कोटा से ज्यादा किसी भी आयात पर बिना किसी रियायत के 50 प्रतिशत का पूरी मौजूदा सीमाशुल्क लगेगा।’’

उसने कहा, एफटीए में, न्यूजीलैंड से सेब के आयात के लिए एक संतुलित और सुनिर्दिष्ट बाजार पहुंच प्रदान की गई है ताकि यह पक्का किया जा सके कि घरेलू किसानों के हितों की पूरी तरह से रक्षा हो।

यह कोटा वर्ष 2024-25 में न्यूज़ीलैंड से भारत के मौजूदा आयात स्तर (भारतीय आयात का 7.3 प्रतिशत) के हिसाब से भी है, और इसे छह साल में धीरे-धीरे बढ़ाया जाएगा।

कोटा धीरे-धीरे बढ़ाकर पहले साल 32,500 टन, दूसरे साल 35,000 टन, तीसरे साल 37,500 टन, चौथे साल 40,000 टन, पांचवें साल 42,500 टन और छठे साल 45,000 टन किया जाएगा।

इसके अलावा, न्यूनतम आयात मूल्य (एमआईपी) का भी प्रावधान है।

अभी दूसरे देशों से आयात होने वाले सेबों के लिए, एमआईपी 50 रुपये प्रति किग्रा है, और शुल्क के बाद कीमतें लगभग 75 रुपये प्रति किग्रा हैं। इसके उलट, एफटीए के तहत न्यूज़ीलैंड से आयात 1.25 डॉलर प्रति किग्रा (लगभग 112 रुपये प्रति किग्रा) के ज़्यादा एमआईपी के तहत आता है, जिससे रियायती शुल्क के बाद कम से कम 140 रुपये प्रति किग्रा की शुल्क उपरांत कीमत हो जाती है।

मंत्रालय ने कहा, ‘‘इससे यह पक्का होता है कि सिर्फ़ प्रीमियम कीमत वाले सेब ही भारतीय बाज़ार में आएं, जिससे घरेलू कीमतों को पूरी तरह से बचाया जा सके, जबकि आयात अलग-अलग तरह के हों।’’

खबरों के मुताबिक, कुछ सेब किसान संघों ने व्यापार समझौते के तहत शुल्क में छूट को लेकर चिंता जताई है।

भाषा राजेश राजेश अजय

अजय


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