नयी दिल्ली, 24 दिसंबर (भाषा) केंद्रीय बजट 2026-27 में प्रत्यक्ष कर आधार को व्यापक बनाने, निजी क्षेत्र के निवेश को प्रोत्साहित करने तथा वृद्धि को और तेज करने एवं रोजगार के अवसर सृजित करने के लिए उच्च प्रत्यक्ष कर दरों को स्थिर रखने पर ध्यान देने की जरूरत है। एक रिपोर्ट में यह बात कही गई।
‘भारत की नयी कराधान विचारधारा का स्वरूप: सरलीकरण, संतुलन एवं वृद्धि’ शीर्षक वाली रिपोर्ट में कहा गया कि माल एवं सेवा कर (जीएसटी) 2.0 के तहत हाल के सुधारों से यह स्पष्ट हुआ है कि मजबूत राजस्व वृद्धि के साथ-साथ कर व्यवस्था का सरलीकरण एवं कर दरों में संतुलन संभव है। इससे लंबे समय से जारी इस धारणा को चुनौती मिली है कि कर संग्रह बढ़ाने के लिए कर की ऊंची दरें जरूरी होती हैं।
शोध संस्थान ‘थिंक चेंज फोरम’ (टीसीएफ) द्वारा बुधवार को जारी रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘ भारत जल्द केंद्रीय बजट पेश करने वाला है और इसमें लिए जाने वाले फैसले यह तय करेंगे कि कराधान दीर्घकालिक आर्थिक विस्तार के लिए उत्प्रेरक बनता है या फिर महत्वाकांक्षाओं पर अंकुश लगाने वाला कारक।’’
रिपोर्ट में नीति-निर्माताओं के लिए छह सूत्रीय सलाह प्रस्तुत की गई है जिसमें उनसे प्रत्यक्ष करों, प्रवर्तन एवं निवेश नीति तक जीएसटी सुधारों के सिद्धांतों का विस्तार करने का आग्रह किया गया है।
इन सुझावों में मुख्य तौर पर नीतिगत स्थिरता एवं अनुपालन-आधारित वृद्धि को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया है। इसमें उच्च कर दरों को स्थिर रखने, दरें बढ़ाने के बजाय प्रौद्योगिकी के माध्यम से प्रत्यक्ष कर आधार का विस्तार करने, मुआवजा उपकर समाप्त होने के बाद ‘एमआरपी’ (अधिकतम खुदरा मूल्य) आधारित कराधान से बचने, जीएसटी इनपुट कर ऋण श्रृंखला को पूरा करने, मुनाफे के उत्पादक पुनर्निवेश को प्रोत्साहित करने तथा तस्करी एवं अवैध कारोबार सहित समानांतर अर्थव्यवस्था के खिलाफ कार्रवाई तेज करने की सिफारिश की गई है।
केंद्रीय बजट में दीर्घकालिक नीतिगत स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए अर्थशास्त्र के संतुलन सिद्धांत के अनुरूप उच्च प्रत्यक्ष कर दरों को स्थिर रखने की प्रतिबद्धता जतानी चाहिए और राजस्व जुटाने का जोर दरें बढ़ाने के बजाय कर आधार के विस्तार पर होना चाहिए।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कर-जीडीपी अनुपात में सुधार के लिए प्रत्यक्ष कर आधार का विस्तार करना अत्यंत आवश्यक है। 140 करोड़ की आबादी में केवल 2.5 से तीन करोड़ प्रभावी करदाता हैं, ऐसे में बजट को दरें बढ़ाने के बजाय माल एवं सेवा कर, आयकर तथा उच्च मूल्य उपभोग से जुड़े आंकड़ों को एकीकृत कर प्रौद्योगिकी आधारित कर आधार विस्तार को प्राथमिकता देनी चाहिए।
कर-जीडीपी अनुपात, यह मापने का पैमाना है कि किसी देश के कुल राजस्व (जीडीपी) का कितना हिस्सा सरकार कर के रूप में इकट्ठा करती है।
रिपोर्ट में भारतीय अर्थव्यवस्था में बढ़ते निवेश विरोधाभास को भी रेखांकित किया गया है।
इसमें कहा गया कि पिछले एक दशक में कंपनियों की लाभप्रदता में सुधार हुआ है लेकिन निवेश-से-जीडीपी अनुपात 2011 से पहले के उच्च स्तर से काफी नीचे बना हुआ है जिससे संकेत मिलता है कि मुनाफा उत्पादक क्षमता के बजाय वित्तीय परिसंपत्तियों में लगाया जा रहा है।
निवेश-से-जीडीपी अनुपात, यह मापता है कि किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का कितना प्रतिशत नए निवेश (जैसे मशीनरी, भवन, बुनियादी ढांचा) में लगाया जा रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार, बढ़ते मुनाफे के बावजूद निवेश में ठहराव को देखते हुए बजट में लक्षित कर प्रोत्साहनों के जरिये कॉरपोरेट आय को वित्तीय निवेशों के बजाय विनिर्माण, अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) और रोजगार सृजन करने वाली परिसंपत्तियों की ओर प्रवाहित किया जाना चाहिए।
बजट में पेट्रोलियम, बिजली एवं अन्य गैर-प्रतिबंधित वस्तुओं को जीएसटी के दायरे में लाने के लिए चरणबद्ध खाके की रूपरेखा भी तैयार की जानी चाहिए ताकि कर तटस्थता बहाल हो सके एवं उद्योग पर पड़ने वाले अतिरिक्त बोझ को कम किया जा सके।
इसमें कहा गया कि आगामी बजट में तस्करी, अवैध व्यापार और कर चोरी के खिलाफ प्रवर्तन को मजबूत किया जाना चाहिए ताकि अनुपालन न करने पर अनुपालन से अधिक लागत आए और ईमानदार करदाताओं को दंडित न किया जाए।
रिपोर्ट में एक विशिष्ट भारतीय कराधान विचारधारा की आवश्यकता पर जोर दिया गया है, जो पारंपरिक भारतीय ज्ञान को आधुनिक आर्थिक सोच के साथ जोड़ते हुए अल्पकालिक राजस्व वसूली के बजाय संतुलन, निष्पक्षता, अनुपालन एवं वृद्धि को प्राथमिकता दे।
भाषा निहारिका मनीषा
मनीषा