रायपुर: छत्तीसगढ़ देश के उन चुनिंदा राज्यों में शामिल है, जिसे कुदरत ने बेशुमार खनिज संसाधनों से नवाजा है। खास तौर पर कोल और आयरन जैसे प्रमुख खनिज संसाधन है। जिसे बेचकर सरकारें अपना जेब भरती है, लेकिन प्रदेश में जब से कांग्रेस की सरकार सत्ता में आई है। खदानों और माइनिंग को लेकर केन्द्र और राज्य सरकार के बीच कई बार टकराव के हालात बने। एक बार फिर राज्य सरकार ने केन्द्र पर कोल और आयरन ब्लॉक की नीलामी के लिए दबाव डालने का आरोप लगा रही है। हालांकि बीजेपी इसे सिरे से खारिज कर रही है।
पिछले कुछ समय में केंद्र की मोदी सरकार ने खनिज संसाधनों के आवंटन, नीलामी सहित कई दूसरी प्रक्रियाओं में बदलाव किए, जिसका विरोध गैर बीजेपी शासित राज्यों में देखने को मिला। इनमें छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार भी शामिल है, जो पिछली रमन सरकार और मौजूदा केंद्र सरकार की अपनाई नीतियों पर सवाल उठा रही है। जैसे दंतेवाड़ा के बैलाडीला के 13 नंबर ब्लॉक को लेकर विवाद खत्म भी नहीं था कि छत्तीसगढ़ के कोल ब्लॉक में राज्य की हिस्सेदारी नहीं होने से संबंधित नियमों से भी राज्य सरकार खफा है। वहीं NMDC द्वारा एमडीओ किसी दूसरे को बनाए जाने पर कांग्रेस सवाल खड़ा कर रही है।
कैबिनेट मंत्री रविन्द्र चौबे ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ में कोल ब्लॉक की नीलामी के लिए केन्द्र पत्र लिखकर लगातार दबाव डाल रहा है। हालांकि राज्य सरकार सोच समझकर ही निर्णय लेगी। कांग्रेस के आरोपों पर नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने जवाब देते हुए कहा कि केन्द्र सरकार राज्य पर कोई दवाब नहीं बना रही है। कांग्रेस सरकार बेमुद्दा केन्द्र सरकार पर दोष मढ़ रही है।
वैसे ये पहली बार नहीं है जब छत्तीसगढ़ में माइनिंग के मुद्दे पर केंद्र और राज्य सरकार आमने-सामने हों। इससे पहले वन मंत्री मोहम्मद अकबर ने भी केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर को पत्र लिखकर हसदेव अरण्य और मांड नदी के जल ग्रहण क्षेत्र और प्रस्तावित हाथी रिजर्व की सीमा में आने वाले क्षेत्रों में स्थित कोल ब्लॉकों को नीलाम नहीं करने की मांग कर चुके हैं। अब सवाल ये है कि खदानों पर नई तकरार का अंत कैसे होगा, क्योंकि केंद्र और राज्य दोनों का इसे लेकर अपनी ही दलीले हैं।