Unique story of blind Dhanesh Vishwakarma of Dhamtari

CG News: नेत्रहीन होने के बावजूद युवक करता है ऐसे अनोखे काम, देखकर आप भी दबा लेंगे दांतों तले उंगलियां

Unique story of blind Dhanesh Vishwakarma of Dhamtari नेत्रहीन होने के बावजूद युवक करता है ऐसे अनोखे काम, देखकर आप भी दबा लेंगे दांतों तले उंगलियां

Edited By :   Modified Date:  June 11, 2023 / 04:06 PM IST, Published Date : June 11, 2023/4:06 pm IST

धमतरी। अगर कुछ कर गुजरने का हौसला और जज्बा हो तो दुनिया में इंसान के लिए कोई काम असम्भव नहीं है, जिसे वह कर नहीं सकता। ऐसा ही कारनामा नेत्रहीन धनेश विश्वकर्मा ने कर दिखाया, जिसने दोनों आंखें नहीं होने के बाद भी जिंदगी से हार नहीं मानी। दिव्यांग धनेश बडे कुशलता के साथ टीवी, पंखा, कूलर सहित इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को सुधार लेते हैं, जिसे देख हर कोई दांतों तले उंगली दबा लेता है। इस काम के सहारे जिंदगी में फैली घोर अंधकार को दूर कर अविवाहित धनेश अकेलेपन की जिंदगी में रोशनी को तलाश कर रहे हैं।

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13 साल की उम्र में सिर से छिना माता-पिता का साया

दरअसल, हम बात कर रहे है धमतरी जिले के कुरूद विकासखंड के ग्राम जोरातराई में रहने वाले 45 वर्षीय धनेश विश्वकर्मा की, जो दोनों आंखों से दृष्टिबाधित होने के बावजूद भी विद्युत उपकरणों को फटाफट सुधार लेते हैं। दोनो आंख नहीं होने के बाद भी उनके चेहरे पर जरा सा भी निराशा नहीं है। धनेश विश्वकर्मा ने बताया कि उसके दुनिया में आते ही जिंदगी में अंधेरा छा गया, जिसमें रोशनी आज तक नहीं मिली है। धनेस के माता-पिता ने काफी इलाज भी कराया, लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ बल्कि अभावों और गरीबी के चलते साढ़े तीन एकड़ खेत भी बिक गई। 13-14 साल की उम्र में उसके सिर से माता पिता का साया भी छिन गया। भाई बहन जैसे तैसे कर गुजर बसर कर रहे थे, वहीं शादी योग्य होने पर गांव और समाज के लोगों की मदद से बहन उसकी की शादी की गई।

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विद्युत उपकरण सुधाकर गुजारा कर रहे धनेश

धनेश ने बताया कि महज 15 साल की उम्र में अपने हाथों में पाना पेंचीस थाम लिया, जिसने पहले विद्युत उपकरण, बोर्ड में बटन होल्डर, वायरिंग करने का प्रयास किया और धीरे-धीरे अनुभव के साथ हौसला भी बढ़ता गया, जिसके लिए लोग उन्हे अपने घरों के बिगड़े बिजली उपकरण को सुधरवाने बुलाने लगे। गौरतलब है कि दृष्टिबाधित धनेश के हौसले को दाद देनी होगी कि वे टीवी, पंखा और कूलर भी बना लेता है, जिसे सुधारते वक्त उन्हें डर बिल्कुल नहीं लगता।

अपने सारे काम खुद करता है धनेश

आज के इस वर्तमान दौर में अच्छे खासे लोग अपनी जिम्मेदारियों से पीछे भागते है और छोटे-छोटे काम से बचने के लिए बहाना बनाने से नही चूकते, वहीं दोनों आंखे नहीं होने के बाद भी धनेश अपना पूरा काम बडी की सफाई से लेकर सबकुछ खुद कर लेता है। ग्रामीणो ने बताया कि धनेश चूल्हा जलाकर खुद खाना बनाता है। चावल, दाल, सब्जी को अंदाजा लगाकर पकाता हैं। साथ ही नल जाकर खुद पानी लाता है। यहां तक कि उसे 15-20 लोगों का मोबाइल नंबर भी जुबानी याद है। खुद मोबाइल का बटन दबाकर दोस्तों और रिश्तेदारों के पास फोन लगा लेता है।

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विकलांगता पेंशन के तहत मिलते हैं 500 रुपये

गांव के सरपंच ने बताया कि धनेश पीएम आवास के तहत बने तीन कमरे वाले मकान में में रहते है और उसे विकलांगता पेंशन योजना के तहत 500 रूपये मिलता है, जिससे वे गुजारा करते है और राशन दुकान से उसे हर माह 10 किलो चावल मिलता है। इस तरह से दोनों आंखों से नेत्रहीन धनेश विश्वकर्मा अपने हौसले और जज्बा लिए जिंदगी का सफर तय कर रहा है। खुद अंधियारे में रहकर दूसरे के घरों में रोशनी लाने अपने हाथ में पाना पेंचीस थाम लिया, जिसके सहारे खुद रोशनी को तलाश कर रहे हैं। जो किसी भी तरह की विकलांगता को अभिशाप मानकर जिंदगी से निराश हो जाते हैं, उनके लिए धनेश किसी मिसाल से कम नहीं। IBC24 से देवेंद्र कुमार मिश्रा की रिपोर्ट

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