हरेली पर्व 2023: प्रकृति पूजन के साथ आखिर क्यों होती हैं तंत्र-मंत्र और साधना? जानिए क्या हैं इसके पीछे की असल वजह..

हरेली पर्व 2023: प्रकृति पूजन के साथ आखिर क्यों होती हैं तंत्र-मंत्र और साधना? जानिए क्या हैं इसके पीछे की असल वजह..

CG Hareli Lok Parva 2023

Modified Date: July 16, 2023 / 10:51 pm IST
Published Date: July 16, 2023 10:08 pm IST

रायपुर: 17 जुलाई को इस साल का हरेली पर्व मनाया जाएगा। यह छत्तीसगढ़ प्रदेश का अति महत्वपूर्ण लोकपर्व में से एक हैं जिसका सीधा सम्बन्ध प्रकृति और कृषि से हैं। सावन महीने में अमावस्या पर छत्तीसगढ़ में लोक पर्व हरेली धूमधाम से मनाया जाता है। (CG Hareli Lok Parva 2023) हालांकि यह किसी एक पारम्परिक रीति से बंधा नहीं है यानि हरेली समूचे छत्तीसगढ़ में मनाया जाता हैं यद्यपि इसे मनाने के तरीको में भी अनेक तरह की भिन्नता हैं। बावजूद इसके हरेली पर्व हर किसी के लिए प्रकृति से जुड़ा पर्व हैं। वर्षाकाल के शुरुआत के साथ जब धरती ग्रीष्म की शुष्कता को पीछे छोड़कर हरियाली की तरफ अग्रसर होती हैं और धरती वर्षा के बूंदो के साथ आलिंगन करती हैं तब यह पर्व हरेली मनाया जाता हैं।

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हरेली पर्व पर किसान अपने कृषि यंत्रो की पुजा करते हैं। वे कई तरह के पारम्परिक खेल भी खेलते हैं। इनमे नारियल फेंकने और गेड़ी चढ़ने की परंपरा प्रमुख हैं। इस तरह इसका सीधा सम्बन्ध सीधे कृषि कार्य के शुभारम्भ से हैं। हरेली किसानो के लिए कृषि कार्य के प्रारम्भ का संकेत हैं। यह संकेत हैं की सूखी धरती अब वर्षा के जल से तर हो चुकी है और कृषक अपने खेतो में कृषि कार्य प्रारम्भ कर सकते हैं। चूंकि देश और प्रदेश का किसान अपने कृषि कार्य के लिए मानसून अथवा वर्षाजल पर निर्भर हैं अतः प्रदेश के किसानो को हरेली के दौरान अच्छी वर्षा की उम्मीद होती हैं। इन्ही उम्मीदों के साथ वे अपने इष्ट देवों की आराधना करते हैं।

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यद्यपि प्रदेश के कई गांवों में एक ऐसी अनोखी परंपरा देखने को मिलती है, जिसपर अंधविश्वास का साया भी नजर आता है। अधिकांश गांवों में अंधविश्वास का खेल खेला जाता है। दरअसल हरेली पर्व के दिन गांव बांधने या कहे नाकरात्मक शक्तियों के गांव में रोकथाम के लिए परंपरा निभाई जाती है। इमें सभी गांव वाले मिलकर तांत्रिक बुलाते हैं, जो गांवों की मेढबंदी करके सीमा को तंत्रमंत्र से घेरते हैं। (CG Hareli Lok Parva 2023) ये पूजा जिस दिन गांव में होती है, उस दिन गांव में मुनादी करा दी जाती है कि गांव के बाहर न तो कोई जायेगा और न ही बाहर का कोई गांव में प्रवेश करेगा। महिलाएं पानी भरने भी नहीं निकलेंगी।

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घंटो तक चलने वाले इस तंत्र-मंत्र की क्रिया में गांव के भगवान की पूजा अर्चना की जाती है। तांत्रिक निर्वस्त्र होकर लाश की तरह सफेद कपड़ा ओढ़कर लेट जाता है और मंत्र क्रिया करने लगता है, जिसके बाद फिर मवेशी की भेंट बलि दी जाती है। इसे लेकर कई बार सवाल खड़े होते रहते हैं। प्रादेशिक भाषा में इसे जादू-टोना भी कहा जाता हैं। बुजुर्ग बताते हैं कि इस तरह के कर्मकांडो के पीछे उद्देश्य गांव को बुरी बाधाओं और परछाइयों से बचाना होता है। महामारी बीमारी से ग्रामीणों और उनके मवेशियों की रक्षा के लिये ये कार्य किया जाता है। इसके अतिरिक्त ग्रामीण अच्छी फसल और खुशहाली की कामना के लिये इस तरह के तंत्र मंत्र और जादू टोने टोटके का सहारा लेते हैं। ऐसा कई बरसों से चला आ रहा है, जिसका सभी अनुसरण करते आ रहे है। किसानों के लिये सबसे महत्वपूर्ण होती है। फसल और गौधन जिसके रक्षा लिये वो तरह तरह के जतन करते हैं।

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