दोस्ती वहाँ खत्म होती है जहाँ स्वार्थ शुरू होता है और भारत–रूस की दोस्ती वहाँ से शुरू होती है जहाँ दिल बोलता है यानि तुम खुश तो मैं खुश
Vladimir Putin India Visit / Image Source: IBC24
हमारे यहां पर एक कहावत है जोड़ी ऊपर वाला बनाता है वैसे ही भारत और रूस की जोड़ी बनाई गई है, जो अटूट भी है और प्रेम ऐसा मानो की हर कोई यही चाहता है ऐसी जोड़ी हमारे साथ भी हो।
जहाँ हथियार, व्यापार, तेल, सौदे सिर्फ पन्ने है, पर पूरा ग्रंथ दिल और भरोसे से लिखा है। आज की दुनिया में दोस्ती शब्द हल्का हो गया है। पर अगर दोस्ती को समझना हो तो भारत और रूस के रिश्ते को देख कर समझा जा सकता है। जहाँ डर नहीं, लोभ नहीं, शर्त नहीं अगर सबकुछ है तो वो सिर्फ और सिर्फ निस्वार्थ साथ है।
दोस्ती क्या है?
“संकट में साथ, समृद्धि में सम्मान, और मन से मन का निस्वार्थ रिश्ता ही दोस्ती कहलाता है।”
या फिर यूँ कहें —
“जब दुनिया खिलाफ हो, हालात बुरे हों, और फिर भी जो कंधे पर हाथ रखकर बोले – डर मत, मैं हूँ न…
वही सच्चा दोस्त होता है।”
और यही रिश्ता है भारत और रूस का।
यह सिर्फ सैन्य, परमाणु या हथियारों की दोस्ती नहीं है…
यह दो सभ्यताओं का आपस में भाई बनना है। दुनिया हमें हमेशा MIG, S-400, ब्रह्मोस की दोस्ती दिखाती रही। पर वो नहीं दिखाती कि दिल कहाँ मिले थे, भरोसा कहाँ खड़ा हुआ था, और कब-कब ऐसा हुआ जब बाकी दुनिया दूर खड़ी थी पर भारत और रूस एक-दूसरे के लिए ढाल बनकर खड़े थे।
जब दुनिया ने भारत का साथ नहीं दिया — पर रूस चट्टान बनकर खड़ा रहा
1. 1971 का युद्ध — जब पूरी दुनिया पाकिस्तान के साथ थी
अमेरिका, ब्रिटेन, चीन तीनों पाकिस्तान के पक्ष में खड़े थे।अमेरिका ने तो न्यूक्लियर एयरक्राफ्ट कैरियर भेज दिया भारत को डराने के लिए। ब्रिटेन,चीन भी भारत के खिलाफ खड़े हो गए थे तब रूस ही अपना मित्र था जिसने-
✔ परमाणु पनडुब्बियाँ भारतीय नौसेना के समर्थन में भेज दीं
✔ UN में 3 बार भारत के लिए वीटो लगाया
✔ अमेरिका–ब्रिटेन को साफ चेतावनी दी
“भारत के खिलाफ एक भी कदम = रूस का प्रत्यक्ष हस्तक्षेप होगा।”
2. कश्मीर मुद्दे पर दुनिया भारत के खिलाफ थी — रूस दीवार बन गया
सालों तक अमेरिका–ब्रिटेन–पाकिस्तान UN में भारत के खिलाफ प्रस्ताव लाते रहे। लेकिन हर बार रूस ने कहा:
“कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है। यह सिर्फ “समर्थन” नहीं था यह भारत की सार्वभौमिकता की रक्षा थी।
3. 1998 परमाणु परीक्षण — सबने पाबंदी लगाई, रूस ने नहीं
अमेरिका, यूरोप, जापान सबने प्रतिबंध लगाए। पर रूस ने भारत पर एक भी प्रतिबंध नहीं लगाया अपितु उल्टा परमाणु तकनीक और सहयोग बढ़ाया। यह दोस्ती नहीं यू कहे बड़े भाई का भरोसा था।
4. S-400 का मामला — जब अमेरिका डराने लगा
NATO ने साफ कहा — “इसे किसी को नहीं देंगे ऐसी टेक्नोलॉजी।” लेकिन रूस ने भारत को दुनिया का सबसे श्रेष्ठ एयर-डिफेंस सिस्टम दिया। ब्रह्मोस टेक्नोलॉजी शेयर की जो अमेरिका भी इस तरह की टेक्नोलॉजी किसी को नहीं देता।
5. रूस–यूक्रेन युद्ध — दुनिया रूस छोड़ गई, भारत नहीं
रूस ने ऐसे मुश्किल घड़ी में भी भारत को आर्थिक प्रतिबंध होने के बाद भी मार्केट से सबसे सस्ता तेल,सबसे सस्ते उर्वरक, और ढेर सारी भारत के आवश्यक वस्तुएं बिना रुकावट और शर्त के भारत को पहुंचाया या यूं कहे कि प्रदान किया। इसलिए तो कहा जाता है मित्रता का नाप संकट में निभाए रिश्तों से पता चलता है।
जब रूस अकेला था — भारत उसके साथ दीवार बनकर खड़ा रहा
1. 1956 — Suez Crisis / Hungary Crisis
पूरी पश्चिमी दुनिया रूस के खिलाफ थी पर भारत ने रूस को “अकेला आक्रांता” कहने से इनकार किया। रूस के सुरक्षा हितों को समझा। यह भारत का नैतिक साहस था।
2. 1979 — अफ़ग़ान युद्ध में दुनिया रूस के खिलाफ
अमेरिका, यूरोप, चीन सब रूस को दोषी कह रहे थे,पर भारत ने रिश्ते नहीं तोड़े, रूस की निंदा नहीं की और यहां तक कि रूस को अंतरराष्ट्रीय मंच पर अकेला नहीं छोड़ा।
रूस भी ये जानता है “अगर कोई दुनिया के बीच उसके लिए खड़ा हो सकता है तो वो भारत ही है।”
3. 2014 — Crimea Crisis
पूरी दुनिया रूस के खिलाफ पाबंदियाँ लगा रही थी।
पर भारत ने रूस के खिलाफ वोट नहीं दिया और रूस की सुरक्षा चिंताओं को वैध भी बताया।
4. 2022–2025 — रूस पर वैश्विक प्रतिबंध, पर भारत ने साथ नहीं छोड़ा
ये आधुनिक इतिहास का सबसे बड़ा उदाहरण है। जब दुनिया रूस से दूरी बना रही थी तब भारत रूस के साथ खड़ा रहा और रूस कहता रहा: “भारत हमारा पुराना दोस्त नहीं हमारा भाई है।”
युवा पीढ़ी के लिए संदेश
रिश्ते सौदों से नहीं बनते, बल्कि त्याग, भरोसे और साथ से बनते हैं। भारत–रूस की कहानी यही है। दोनों देश संस्कृतियों में दूर हैं, भाषाओं में अलग हैं, पर दिल और आत्मा में बिल्कुल समान हैं। दोनों देश कभी किसी से डरकर दोस्ती नहीं करते और कभी किसी दबाव में दोस्ती नहीं छोड़ते। आज के युवाओं को समझना चाहिए —
जब बाकी दुनिया ने हमें परखा, दबाव बनाया, रोका तब रूस ने साथ दिया। और जब रूस अकेला हुआ तो भारत उसके साथ खड़ा रहा।
यह रिश्ता अख़बारों का नहीं, यह दिलों का रिश्ता है
अंत में एक वह भाव जो हर भारत–रूस युवक के दिल में बसना चाहिए “दोस्ती वहाँ खत्म होती है जहाँ स्वार्थ शुरू होता है और भारत–रूस की दोस्ती वहाँ से शुरू होती है जहाँ दिल बोलता है —तुम खुश तो मैं खुश।” हम दोनों देश आज विकास कर रहे हैं, आगे बढ़ रहे हैं पर दिशा एक ही है। जिसमें भरोसा, सम्मान और भाईचारा है। यह सिर्फ दोस्ती नही यह एक ऐसा रिश्ता है जिस पर समय भी गर्व करता है।
इनपुटः अभिनव राय
(आलेख में उल्लेखित विचारों से संबंधित किसी भी विधिक-अविधिक विवाद-संवाद के लिए इनपुट प्रोवाइडर व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार हैं)

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