देखिए धरसींवा के विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड, क्या कहता है जनता का मूड मीटर
देखिए धरसींवा के विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड, क्या कहता है जनता का मूड मीटर
रायपुर। विधायकजी के रिपोर्ट कार्ड में आज बारी है छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगे धरसींवा विधानसभा क्षेत्र की। यहां पिछले 15 सालों से बीजेपी के देवजी भाई पटेल विधायक हैं, जिन्हें विधानसभा में उत्कृष्ट विधायक का खिताब भी मिल चुका है। लेकिन उनके विधानसभा क्षेत्र की बात करें तो उनके 15 साल के कार्यकाल के बाद भी यहां सुविधाओं का अभाव नजर आता है। लोगों का कहना है कि विधानसभा में सदन के अंदर बड़े मुद्दे उठाकर सरकार और अपने मंत्रियों को घेरने वाले बीजेपी विधायक अपने क्षेत्र के लोगों की समस्याओं को लेकर गंभीर नहीं है। जनता की ये नाराजगी की देवजी भाई पटेल पर भारी न पड़ जाए।
शहरों की चमक-दमक है तो गांव की सादगी भी। संभावनाओं के उद्योग आकार ले रहे हैं तो खेत खलिहान भी कायम हैं और धरसींवा कहीं बीच में नजर आता है। आज इस विधासभा क्षेत्र का तकरीबन 50 फीसदी हिस्सा औद्योगिक हो गया है। जाहिर है इस बदलाव के साथ इस इलाके में लोगों की जिंदगी भी काफी बदली है और काफी बदलने वाली है और इन्हीं बदलावों ने इस इलाके में उन सियासी मुद्दों को भी जन्म दिया है, जो आने वाले विधानसभा चुनाव में जम कर गूंजने वाले हैं। बढ़ते उद्योगों के बीच यहां रोजगार सबसे अहम मुद्दा है। लोगों का आरोप है उद्योग बाहर के लोगों को रोजगार दे रहे हैं और स्थानीय लोगों की जम कर उपेक्षा हो रही है। रोजगार के साथ-साथ यहां प्रदूषण भी एक बड़ी समस्या है, जिसे खुद बीजेपी विधायक भी स्वीकारते हैं। हालांकि उनका कहना है कि उनके प्रयास से ही बहुत से उद्योगों में प्रदूषण नियंत्रण यंत्र भी लगा है, जिसकी वजह से पहले की तुलना में प्रदूषण कम हो रहा है। वहीं युवाओं को भी रोजगार के अवसर मिल रहे हैं।
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हालांकि धरसींवा की जनता विधायक के सारे दावे को सिरे खारिज करते हैं। उनके मुताबिक बीजेपी विधायक को किसानों की बजाए उद्योगपतियों का ज्यादा चिंता है। लोगों का ये भी आरोप है कि विकास की बात करने वाले बीजेपी विधायक और सरकार के हर काम में जमकर भ्रष्टाचार हो रहा है। कमीशन के चक्कर में स्कूल, कॉलेज, स्वास्थ्य केंद्र तो खुल गए लेकिन उसमें टीचर, प्रोफेसर और डॉक्टर नहीं है। चुनावी माहौल को देखते हुए विपक्ष भी अब विधानसभा में उत्कृष्ट विधायक का खिताब पाने वाले देवजी भाई पटेल को घेरने में जुट गई है। उनके मुताबिक बीजेपी विधायक अपने इलाके की समस्याओ को दूर करने में असफल रहे। जाहिर है दूसरे इलाकों के मुकाबले धरसींवा के मुद्दे बेहद पेचीदा हैं और ये भी तय है कि आने वाले चुनाव में उसी पार्टी की नैया पार लगेगी जो मुद्दों और मसलों की इस पेचीदगी को अपने पक्ष में सुलझा पाएगा। सियासी समीकरण की बात करें तो राजधानी रायपुर से लगा धरसींवा विधानसभा क्षेत्र कुर्मी और साहू बाहुल्य इलाका है। बावजूद यहां से लोगों ने ज्यादातर सामान्य वर्ग के प्रत्याशियों पर भरोसा जताया है। देवजी पटेल का लगातार 3 चुनाव जीतना इस बात को साबित भी करता है। यहां अब तक 16 चुनाव हुए हैं, इसमें से 8 बार कांग्रेस, 5 बार बीजेपी, दो बार निर्दलीय और एक बार जनता पार्टी के विधायक बने हैं।
राजधानी के पड़ोसी होने के अपने फायदे हैं तो कुछ नुकसान भी हैं। धरसींवा विधानसभा क्षेत्र के साथ भी कुछ यही कहानी है। राज्य के बाकी सीटों के मुकाबले यहां के मुद्दे ज्यादा पेचीदा हैं लेकिन मुद्दों और मसलों को समझने पहले धरसींवा के सियासी इतिहास और आने वाले विधानसभा को लेकर यहां बन रहे सियासी समीकरणों की बात कर लेते हैं। यहां पिछले तीन चुनाव से बीजेपी के देवजी भाई पटेल विधायक चुनते आ रहे हैं। अब कांग्रेस यहां उस फार्मूले को तलाश रही है जो यहां बीजेपी को चौका लगाने से रोक सके।
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छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के पहले धरसींवा सीट कांग्रेस का गढ़ था। लेकिन राज्य बनने के बाद यहां बीजेपी के देवजी भाई पटेल लगातार चुनाव जीत रहे हैं। रायपुर, बलौदाबाजार और भाटापारा के कुछ इलाकों को मिलाकर बने धरसींवा विधानसभा का गठन 1952 को हुआ और कांग्रेस के मूलचंद बघेल यहां से पहले विधायक चुने गए। इसके बाद 1990 तक यहां कांग्रेस का ही दबदबा रहा। लेकिन 1990 में श्यामसुंदर अग्रवाल ने कांग्रेस के मुन्नालाल शुक्ल को हराकर यहां बीजेपी का खाता खोला। 1993 में भी बीजेपी के बालाराम वर्मा ने कांग्रेस के विधान मिश्रा को 1800 वोटों से हराया। लेकिन 1998 में कांग्रेस के विधान मिश्रा ने बालाराम वर्मा को हराकर ये सीट वापस कांग्रेस की झोली में डाल दी। 2003 में कांग्रेस ने जोगी सरकार में मंत्री रहे विधान मिश्रा की जगह छाया वर्मा को चुनाव मैदान में उतारा, लेकिन वे बीजेपी के देवजी भाई पटेल से हार गईं।
2008 में परिसीमन के बाद कांग्रेस ने जातीय कार्ड खेलते हुए छत्रपाल सिरमौर को चुनाव मैदान में उतारा। लेकिन देवजी भाई पटेल के हाथों उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। 2013 में कांग्रेस ने झीरम नक्सली हमले में मारे गए योगेन्द्र शर्मा की पत्नी अनिता शर्मा पर दांव लगाया। सहानुभूति लहर के बावजूद देवजी भाई पटेल यहां 2390 वोटों के अंतर से चुनाव जीतने में सफल हुए। धरसींवा में जाति समीकरण की बात की जाए तो 2 लाख 5 हजार मतदाता में जिसमें से करीब 70 हजार कुर्मी मतदाता, 65 हजार के करीब साहू और लगभग 60 हजार सतनामी वोटर हैं। कांग्रेस ने हमेशा यहां जाति समीकरण को ध्यान में रखकर ही टिकट दिया। लेकिन चुनाव में उसे कुछ ज्यादा फायदा नहीं मिला।
घरसींवा विधानसभा क्षेत्र में दो नगर पंचाय़त खरोरा और कुरा जैसे बड़े क्षेत्र आते हैं, जहां कांग्रेस का कब्जा है। इसके अलावा धरसींवा ब्लॉक, तिल्दा ब्लॉक का आधा हिस्सा भी इस क्षेत्र में आता है। ऐसे में देखना होगा कि कांग्रेस इस बार अपने पुराने गढ़ को वापस हासिल करने के लिए एक बार फिर कास्ट फार्मूले पर दांव लगाती है या फिर कोई नया पत्ता खोलती है। हालांकि नतीजें बताते हैं कि यहां चुनाव में जाति समीकरण और बाहरी प्रत्याशी जैसे मुद्दे कभी हावी नहीं रहे। कुर्मी और साहू बाहुल्य इलाके धरसींवा में पिछले 15 सालों से बीजेपी के देवजी पटेल का लगातार जीतना इस बात को साबित करता है कि फिलहाल वो पार्टी की पहली पसंद है। इसके अलावा वे अपने इलाके में सक्रिय भी है। मिशन 2018 की बात की जाए तो बीजेपी की तरफ से यहां देवजी भाई पटेल यहां स्वाभाविक दावेदार हैं। लेकिन गुजरते वक्त के साथ धरसींवा में अब स्थानीय नेताओं में भी विधायक बनने की चाह जाग रही है। इस लिस्ट में रमेश बैस के खास गुलाब सिंह टिकहरिया का नाम सबसे ऊपर है। वहीं पूर्व मंडी अध्यक्ष डोगेंद्र नायक भी टिकट की प्रबल दावेदार हैं। पिछले दो बार से इनके मन में भी चुनाव लड़ने की इच्छा है ।
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दावेदारों की लंबी कतार के बावजूद बीजेपी के मौजूदा विधायक देवजी भाई पटेल अपनी दावेदारी को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हैं। उनका दावा है कि वो क्षेत्र में लगातार सक्रिय है और उनके विकास कार्यों की वजह से जनता उन्हें चौथी बार भी विधायक चुनेगी। वहीं दूसरी ओर बीते 15 साल में कांग्रेस का हर प्रयोग धरसींवा में असफल रहा है। हर बार पार्टी ने देवजी भाई पटेल के सामने बदल-बदल कर प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे, लेकिन वो बीजेपी विधायक को हराने में नाकाम रहे। अब जब चुनाव नजदीक है तो कांग्रेस में एक बार फिर दावेदारों की लंबी फौज नजर आ रही है। हर कोई यहां चुनाव लड़ने के लिए अपनी इच्छा जाहिर कर चुका है। कांग्रेस के संभावित उम्मीदवारों में 2013 में चुनाव लड़ने वाली अनिता शर्मा का नाम सबसे आगे है। अनिता शर्मा झीरम हमले में मारे गए कांग्रेस नेता योगेंद्र शर्मा की पत्नी हैं। इनके अलावा खरोरा नगर पंचायत के पूर्व अध्यक्ष अरविंद देवांगन भी टिकट के लिए जोर लगा रहे हैं। वहीं कुर्मी समाज के प्रतिनिधि के रूप में उधोराम वर्मा ने भी दावेदारी की है। इसके अलावा कांग्रेस किसान मोर्चा के चंद्रशेखर शुक्ला भी इसी इलाके में सक्रिय नजर आ रहे है।
धरसींवा में अब तक कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही सीधी भिड़ंत होती आई है। लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में इन्हें जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ से कड़ी टक्कर मिलेगी, जिसने यहां पूर्व विधायक विधान मिश्रा को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है। विधान मिश्रा का दावा है कि वे ही एक मात्र प्रत्याशी हैं जो देवजी पटेल को मात दे सकते हैं।
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जाहिर है राजधानी से लगे धरसीवां में सियासी सरगर्मी कुछ ज्यादा ही है। बीजेपी जहां यहां पर चौका लगाने की तैयारी में है तो कांग्रेस भी उस फार्मूले की तलाश में है जिसका इस्तेमाल कर वो यहां अपना परचम लहरा सके। वहीं जेसीसीजे भी यहां उलटफेर करने की कोशिश करेगी।
वेब डेस्क, IBC24

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