Sarus Crane couple In CG : संकट में सारस का आखिरी जोड़ा… छत्तीसगढ़ में पहली बार इस जगह दिखा हिमालय का शिकारी परिंदा, अठखेलियां करते हुए कैमरे में कैद
संकट में सारस का आखिरी जोड़ा... Sarus Crane couple In CG: The last pair of cranes in trouble... Himalayan bird of prey seen
- सारस का आखिरी जोड़ा भी संकट में,
- छत्तीसगढ़ में पहली बार दिखा हिमालय का शिकारी परिंदा,
- अठखेलियां करते हुई कैमरे में कैद,
डोंगरगढ़ : Sarus Crane couple In CG : छत्तीसगढ़ की सुरम्य वादियों और जैव विविधता से भरपूर क्षेत्रों में एक समय सारस क्रेन आमतौर पर दिखाई देते थे, लेकिन आज हालात बदल चुके हैं। अब राज्य में इस प्रजाति का केवल एक जोड़ा बचा है, जो सुरगुजा जिले के लखनपुर ब्लॉक में निवास करता है। यह स्थिति न केवल पर्यावरणीय असंतुलन की ओर संकेत करती है, बल्कि हमारे द्वारा प्रकृति की अनदेखी का भी परिणाम है।
सारस क्रेन का महत्व
Sarus Crane couple In CG : सारस क्रेन को आर्द्रभूमि (वेटलैंड) का सूचक माना जाता है। जिस क्षेत्र में ये पक्षी निवास करते हैं, वहां का पारिस्थितिकी तंत्र संतुलित माना जाता है। अगर इनकी संख्या घट रही है, तो यह एक चेतावनी है कि हमारे जलस्रोत और प्राकृतिक आवास खतरे में हैं। इतिहास और साहित्य में भी सारस क्रेन का विशेष महत्व रहा है। संस्कृत साहित्य का पहला श्लोक महर्षि वाल्मीकि ने तब लिखा था जब उन्होंने एक शिकारी द्वारा प्रेममग्न सारस जोड़े में से नर पक्षी को मारते देखा था। यह जोड़ा लखनपुर के जमगला और तराजू वॉटर टैंक के आसपास देखा जाता है। 2022 में इनके दो चूजे हुए थे, लेकिन दिसंबर 2023 में एक चूजे को जंगली जानवर ने मार दिया। शोध के मुताबिक, सारस आमतौर पर दो ही चूजे पैदा करते हैं, जिनमें से एक अक्सर वयस्क होने से पहले मर जाता है। दूसरा चूजा अब लापता है और संभवतः अपने जीवनसाथी की तलाश में कहीं चला गया है। तालाबों में बढ़ती मछली पकड़ने की गतिविधियां और जाल इनके घोंसलों को खतरे में डाल रहे हैं। खेतों में कीटनाशकों और जहरीले रसायनों का उपयोग इनके भोजन को विषाक्त बना सकता है।
छत्तीसगढ़ में दिखा हिमालय का शिकारी पक्षी
Sarus Crane couple In CG : सारस क्रेन के संकट के बीच एक उम्मीद की किरण बिलासपुर के सीपत डैम और सुरगुजा के तराजू गांव से आई है। यहां पहली बार पूर्वी मार्श हैरियर नामक शिकारी पक्षी देखा गया है। यह पक्षी एशिया के कुछ हिस्सों में पाया जाता है, लेकिन छत्तीसगढ़ में यह पहली बार दर्ज किया गया है। यह घटना दर्शाती है कि यदि हम अपने जलस्रोतों और प्राकृतिक आवासों की देखभाल करें, तो अन्य दुर्लभ प्रजातियां भी लौट सकती हैं।

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