वो योद्धा जिससे जीत ना सके अंग्रेज, छत्तीसगढ़ के प्रथम शहीद वीर नारायण सिंह की वीर गाथा
पहाड़ी में आज भी शहीद वीर नारायण सिंह की वो तलवार और कटार सुरक्षित रखी है। जिसके एक वार से अंग्रेजों की गर्दन उड़ा देते थे।
रायपुर। भारत अपनी आजादी के 73 साल पूरे कर चुका है। आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों को नाको चने चबाने पर मजबूर करने वालों में छत्तीसगढ़ के शहीद वीर नारायण सिंह का नाम बेहद गर्व के साथ लिया जाता है। शहीद वीरनारायण सिंह को छत्तीसगढ़ का प्रथम शहीद कहा जाता है। छत्तीसगढ़ के लोग वीरनारायण सिंह की वीर गाथा से भलि भांति परिचित हैं। जहां वीरता की ये इबारत लिखी इस पहाड़ी पर आजादी के इस दीवाने की निशानियां आज भी मौजूद है।
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छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 140 किमी दूर और बलौदाबाजार जिला मुख्यालय से करीब 70 किलोमीटर दूर बीहड़ घने जंगलो के बीच बसा एक छोटा सा गांव है सोनाखान। कहते हैं कि सोनाखान में वीरनारायण सिंह के पूर्वजों की 300 गांवों की जमीदारी थी। शहीद वीरनारायण सिंह अपने लोगों से अटूट लगाव रखते थे। 1856 के भीषण अकाल में जब यहां की जनता दाने-दाने के लिए मोहताज हो गयी तो वीरनारायण से लोगों को भूखे मरते नहीं देखा गया। उन्होंने कसडोल के साहूकारों का अनाज गोदाम लूटकर जनता में बंटवा दिया। इससे नाराज साहूकारों ने अंग्रेजों से शिकायत कर दी।
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जमीदारों के शिकायत के बाद अंग्रेज शहीद वीरनारायण सिंह को पकड़ने आए। पहले सोनाखान में चढ़ाई किया। लेकिन वीरनारायण सिंह ने कुरुपाठ की दुर्गम पहाड़ी में अपना ठिकाना बना लिया। वहीं अपनी कुलदेवी मां दंतेश्वरी की पूजा करते और गुफा में रहकर ही अंग्रेजों से लड़ने की रणनीति बनाते। पहाड़ी में आज भी शहीद वीर नारायण सिंह की वो तलवार और कटार सुरक्षित रखी है। जिसके एक वार से अंग्रेजों की गर्दन उड़ा देते थे।
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अंग्रेज वीरनारायण सिंह को खोजने कई बार सोनाखान आए। जब वीरनारायण सिंह के पहाड़ी में रहने का पता चला तो कुरुपाठ पहाड़ी पर भी धावा बोला। अंग्रेजों और वीरनारायण सिंह के बीच भीषण युद्ध हुआ। लेकिन मां दंतेश्वरी के इस भक्त ने पहाड़ में अंग्रेजी सैनिकों को ऐसे घेरे की कुछ मारे गए और बाकी जो बचे वो भाग खड़े हुए। इसके बाद अंग्रेजों ने उस गुफा को ही माइंस लगाकर उड़ा दिया। वहां बम के निशान आज भी चट्टानों में मौजूद हैं। आखिर में बौखलाए अंग्रेजों ने सोनाखान के बस्तियों में आग लगानी शुरू की। ग्रामीणों पर अत्याचार देखकर वीरनारायण सिंह की पत्नी ने उनसे अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण करने का आग्रह किया।
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अपने लोगों को बचाने के लिए उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया। राजधानी रायपुर के जयस्तंभ चौक पर अंग्रेजों ने वीर नारायण सिंह को 10 दिसंबर 1857 को फांसी दे दी..वीर नारायण सिंह की शहादत छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि देश के सभी देशभक्तों के लिए एक प्रेरणा बनी। आज भी सोनाखान की जनता शहीद वीरनारायण को देवता की तरह पूजती है। देश पर मर मिटने वालों में शहीद वीर नारायण सिंह का नाम स्वर्ण अक्षरों से अंकित है।

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