सारंगढ़ विधानसभा सीट के विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड, देखिए
सारंगढ़ विधानसभा सीट के विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड, देखिए
सारंगढ़। विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड में आज हम बात करेंगे छत्त छत्तीसगढ़ की सारंगढ़ विधानसभा सीट की। इस सीट को लेकर एक कहावत है कि यहां के लोग विकास के मामले में राजनीति का शिकार होते आए हैं और उपेक्षा का दंश झेल रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि अविभाजित मध्यप्रदेश में बिलासपुर, भोपाल और सारंगढ को एक साथ नगर पालिका घोषित किया गया था। आज भोपाल मध्यप्रदेश की राजधानी तो बिलासपुर छ्त्तीसगढ़ की न्यायधानी है। लेकिन सारंगढ विकास के मामले में वहीं का वहीं अटका हुआ है। फिलहाल यहां बीजेपी का कब्जा है और केराबाई मनहर विधायक हैं। मुद्दों की बात की जाए तो सारंगढ़ के बाशिंदे सालों से इसे जिला बनाने की मांग करते आए हैं, जो अब तक पूरी नहीं हुई है। आने वाले चुनाव में भी जिले का मुद्दा जम कर गूंजने वाला है।
सारंगढ़ की जनता का ये दर्द और गुस्सा आगामी विधानसभा चुनाव में सियासतदानों के किस्मत का फैसला करेगा, ये तो तय है ।अलग जिले की मांग को लेकर लोगों का ये गुस्सा ऐसे ही नहीं है। दरअसल हर बार चुनाव से पहले ऐलान किया जाता है कि सारंगढ़ को अलग जिला बनाया जाएगा लेकिन धरातल में उस पर कोई पहल नजर नहीं आती। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर वो कौन है जो इसे जिला नहीं बनने देना चाहता।
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केवल जिला बनाने का मुद्दा ही नहीं बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे मुद्दों का भी आने वाले चुनाव में गूंजना तय है। दरअसल पिछले विकास यात्रा के दौरान सीएम रमन सिंह ने यहां 100 बिस्तरों वाले एक अस्पताल की घोषणा की थी, जो पांच साल बाद भी मूर्त रूप नहीं ले सकी। जबकि पीजी कॉलेज की मांग भी अब तक अधूरी है। वहीं बीजेपी विधायक केराबाई मनहर पर निष्क्रिय होने और अपनों को लाभ पहुंचाने का का आरोप भी लगता रहा है। हालांकि केराबाई का दावा है कि उन्होंने अपने कार्यकाल में काफी विकास कार्य कराए हैं।
विधायक केराबाई मनहर लाख दावे करें कि उनके क्षेत्र में विकास हुआ है लेकिन ग्रामीण इलाकों में उनके दावों की पोल खुल जाती है। सारंगढ ब्लाक का जशपुर गांव जहां की एक बस्ती है डूमरपाली। है तो ये बस्ती मुख्यालय से महज 15 किमी पर लेकिन यहां के लोगों को अपनी जरूरतों के लिए कैसे जद्दोजहद करना पड़ता है। कुल मिलाकर शहरवासियों के अलावा ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग भी क्षेत्र के विकास को लेकर संतुष्ट नजर नहीं आ रहे हैं। लोगों का तो यहां तक कहना है कि केंद्र और राज्य की योजनाओं के क्रियान्वयन को छोड़ दें तो स्थानीय विधायक की एक भी बड़ी उपलब्धि नहीं है जिसे वे गिना सकें।
सारंगढ विधानसभा के सियासी इतिहास की बात की जाए तो ये विधानसभा कभी भी किसी पार्टी विशेष के लिए सुरक्षित सीट नहीं रही है। कांग्रेस और बीजेपी के अलावा इस सीट पर बीएसपी भी दो बार जीत हासिल कर चुकी है। पिछले दस सालों में यहां का सियासी समीकरण जरुर बदला है और बीएसपी इस सीट से तीसरे पोजीशन पर आती रही है। लेकिन इस बार फिर इस सीट पर जनता कांग्रेस के आने के बाद तस्वीर बदल सकती है।
सारंगढ़ की सियासत इन दिनों काफी तेजी से धड़क रही है। सियासी गलियारों में ही नहीं आम सड़क और चौराहों पर भी आने वाले चुनाव की चर्चा होने लगी है। लोगों के पास शिकायतों की लंबी फेहरिस्त है और विधायक अपने सियासी दुश्मनों के साथ साथ मतदाताओं के भी निशाने पर हैं। 458 गांव, 218 ग्राम पंचायतों, 1 नगर पालिका और 1 नगर पंचायत वाली सारंगढ़ विधानसभा में 92 फीसदी वोटर्स ग्रामीण हैं, जिसमें भी सबसे अधिक एससी वर्ग के वोटर हैं, जो प्रत्याशियों की किस्मत तय करते हैं।
वैसे सारंगढ़ की सियासी इतिहास की बात की जाए तो कभी यहां की राजनीति गिरिविलास पैलेस से संचालित होती थी। लेकिन राज परिवार ने अब राजनीति से दूरी बना ली है और उनकी दखलअंदाजी नजर नहीं आती। सारंगढ़ को कभी कांग्रेस का गढ़ कहा जाता था लेकिन एक ऐसा दौर भी आया जब बीएसपी ने यहां मजबूत पकड़ बनाई। कामदा जोल्हे ने यहां 1998 और 2003 में बीएसपी को जीत दिलाई, जिसके बाद ये बीएसपी की सुरक्षित सीट मानी जाने लगी। लेकिन 2008 में कांग्रेस प्रत्याशी पद्मा मनहर ने सारंगढ़ में चुनाव जीतकर इस मिथक को तोड़ दिया। लेकिन 2013 में बीजेपी ने इस सीट को कांग्रेस से छिन लिया। इस चुनाव में बीजेपी को जहां 81971 वोट मिले। वहीं कांग्रेस महज 66127 वोट ले सकी। इस तरह जीत का अंतर 15844 वोटों का रहा।
सारंगढ़ में पार्टी के साथ विधायक प्रत्याशी की छवि हार-जीत की बडी वजह बनती है। लिहाजा इस सीट को किसी भी पार्टी का सुरक्षित गढ़ नहीं माना जा सकता। सियासी जानकारों का भी मानना है कि जनता बदलाव के मूड में है। बीजेपी को अगर जीत हासिल करनी है तो नए कैंडिडेट को चुनावी मैदान में उतारना होगा तो वहीं कांग्रेस अगर किसी दमदार और नए चेहरे पर अपना दांव लगाती है तो ये सीट कांग्रेस के कब्जे में आ सकती है। कुल मिलाकर सारंगढ़ की सियासत में वही बाजी मारेगा जो एससी वोटर्स का दिल जीतने में सफल होगा और इस वोट बैंक को रिझाने की कोशिश तीनों पार्टियों की तरफ से शुरू हो गई है।
सारंगढ विधानसभा क्षेत्र से 15 हजार से भी अधिक वोटों से जीत हासिल करने के बाद विधायक केराबाई मनहर जहां इस सीट से दूसरी पारी खेलने की तैयारी कर रही हैं तो वहीं इस सीट पर बीजेपी के साथ साथ कांग्रेस से भी दावेदारों की कमी नहीं है। कभी इस इलाके में गहरी पैठ रखने वाली बहुजन समाज पार्टी भी इस सीट से प्रत्याशी उतारने की तैयारी में है। लिहाजा इस सीट पर इस बार घमासान मचना तय है।
2013 के विधानसभा चुनाव में सारंगढ़ में बीजेपी की केराबाई और कांग्रेस की पद्मा मनहर के बीच सियासी घमासान हुआ था, जिसमें बाजी मारी थी केराबाई मनहर ने। जिन्होंने कांग्रेस की पद्मा मनहर को 15 हजार से अधिक वोटों से हराकर सीट पर कब्जा जमाया था। अब जब चुनाव में कुछ महीनों का समय बचा है तो दोनो नेत्रियों ने अपनी तैयारियां शुरू कर दी है। वैसे चुनाव नतीजे बताते हैं कि सारंगढ़ की जनता अपना जनप्रतिनिधि हार बार बदली है। ऐसे में कांग्रेस हो या बीजेपी सारे समीकरणों को ध्यान में रखकर टिकट का बंटवारा करेगी। जहां तक बीजेपी के टिकट दावेदारों की बात है तो मौजूदा विधायक केराबाई मनहर एक बार फिर ताल ठोकने के लिये तैयार है।
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हालांकि इस बार सांरगढ़ के सियासी गलियारों में चर्चा है कि बीजेपी इस बार सीट पर अपना प्रत्याशी बदल सकती है। ऐसे में कई नेता हैं जो टिकट के लिए अपनी दावेदारी कर रहे हैं। इस लिस्ट में संघ से ताल्लुक रखने वाले मनोज लहरे का नाम सबसे आगे है। वहीं जनपद सदस्य वीरेंद्र निराला की सक्रियता भी उनके टिकट के दावे को मजबूत करता है। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस हाईकमान के लिए भी टिकट का बंटवारा करना इतना आसान नहीं होगा। कांग्रेस के संभावित उम्मीदवारों की बात की जाए तो पूर्व विधायक पद्मा मनहर एक बार फिर अपनी दावेदारी पेश कर रही हैं। इसके अलावा पद्मा मनहर के पति घनश्याम मनहर भी टिकट की दौड़ में शामिल हैं।
अगर कांग्रेस नए चेहरे पर दांव लगाती है तो नंदराम लहरे का पलड़ा भारी हो सकता है। बीते चुनाव में बीजेपी से टिकट नहीं मिलने के कारण नंदराम कांग्रेस का दामन थाम लिया है। इसके साथ ही ये भी चर्चा है कि महिला प्रत्याशी होने की दशा में वे अपनी पत्नी बैजन्ती लहरे के लिए टिकट मांग सकते हैं। वहीं सहकारी समिति के अध्यक्ष रह चुके गणपत जांगड़े भी टिकट मांग रहे हैं। जांगड़े पिछले कुछ सालों से कांग्रेस के बेहद सक्रिय जनप्रतिनिधि के रुप में जाने जाते हैं। लिहाजा उनकी दावेदारी भी सशक्त है।
बीजेपी और कांग्रेस के अलावा इस सीट से बसपा भी काफी सक्रिय है। बसपा ने अभी अपना पत्ता नहीं खोला है लेकिन ये तय है कि बसपा भी इस सीट से अपना प्रत्याशी खड़ा करेगी। जनता कांग्रेस की निगाह भी इस सीट पर है। लिहाजा आने वाले समय में ये सीट काफी हाई प्रोफाइल तो होगी ही केंडिडेट्स को जीत हासिल करने खासी मशक्कत करनी पड सकती है।
वेब डेस्क, IBC24

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