छत्तीसगढ़ के सबले बड़का अउ पहली तिहार आय हरेली, इहां जानव अमावस्या के दिन काबर करे जाथे नांगर-बखर के पूजा

छत्तीसगढ़ के सबले बड़का अउ पहली तिहार आय हरेली : Hareli Tihar is celebrated in Chhattisgarh Because of this

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  • Publish Date - July 27, 2022 / 11:44 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 01:15 AM IST

Hareli Tihar छत्तीसगढ़ राज कला-परंपरा अउ तीज-तिहार मा बड़ धनवान हे। छत्तीसगढ़ में हर महीना कोनों न कोनों तिहार मनाय जाथे। सावन महीना मा घलव अब्बड़ अकन तीज-तिहार मनाय जाथे। तिहार मन के ये लरी मा हरेली तिहार बड़ प्रसिध्द हावय। सावन महिना मा धरती चारो डाहर हरियर – हरियर दिखे ल धर लेथे । रूख-राई, खेत-खार सब डाहर जेती देखबे तेती चारो मुड़ा हरियाली छाय रहिथे। नदिया, नरवा मन में पानी बोहात रथे अऊ मेचका मन टरर-टरर नरियात रहिथे। सब डाहर हरियर – हरियर देखके मन ह तक हरिया जाथे। इही सब ल देखके किसान मन ह सावन महिना के अंधियारी पाख के अमावस्या के दिन हरेली तिहार मनाथे ।

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Hareli Tihar किसानी ल समर्पित ए तिहार म किसानी के कारज म बउराय किसानी के अउजार नांगर-बख्खर, रापा-कुदारी, टँगीया-बसूला, हंसिया चतवार ल धो के तुलसी चौरा के तीर म उँकर मन बर मुरुम डालके ठउर बनाथे। जिहा उँकर पूजा पाठ होथे। पिसान के हाथा, बन्दन बेल के पान, दुबी, पान, फूल, सुपारी गुरहा चीला अउ नरियर चढ़ाथन। बरछा डोली के, बइला जोड़ी के घला पूजा करके चीला चढाय जाथे। मुन्दरहा ले उंकर जतन नहाई धोवइ करथे। बरसात म होवइया रोग राई के बचाये बर पहटिया मन पिसान के लोंदी म जरी बुटी मिलाके गरू गाय ल खवाथे। रोग राई ले दुरिहा रहेबर भाव ले गांव के बईगा ह देवी देवता के पूजा पाठ कर घर के मोहाटी म लीम के डारा खोंचथे। घरोघर उंकर बिदाई म दार चांउर देथय। छत्तीसगढ़ के गांव म किसान के जीवन म ये तिहार अपन संग साथ देवइया धरती के छोटे बड़े सबो के उपकार ल मानथय अउ ओकर आदर म मुड़ नवाथे।

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अध्यात्म संग हरेली तिहार के जुराव

छत्तीसगढ़ राज के जतका मूल परब-तिहार हे, सबके संबंध कोनो न कोनो रूप ले अध्यात्म संग जरूर हे। ए बात अलग आय के आज हम उंकर मूल कारण ल भूलागे हावन, तेकर सेती प्रकृति या खेती-किसानी संग जोड़ के वोला कृसि संस्कृति के रूप म बताए अउ जाने लगथन। इहां के संस्कृति म सावन महीना के पहला परब “हरेली” के संग घलो अइसनेच बात हे। ए दिन जम्मो किसान अपन नांगर- बक्खर संग आने जम्मो िकरसी यंत्र ल धो-मांज के पूजा करथें। एकरे सेती एकर चिन्हारी ल किरसी पर्व के रूप म बताए जाथे। फेर एकर आध्यात्मिक पक्छ के अनदेखा कर देथें। आप सबो झन जानथौ के इही दिन जम्मो गांव मन म गांव बनाए के परंपरा ल घलो पूरा करे जाथे। इहां के ग्रामीण संस्कृति म “बइगा” कहे जाने वाला “तांत्रिक” मन इही दिन अपन-अपन मंत्र के पुनर्पाठ करथें। माने साल भर म वोला फिर से जागृत करथें। कतकों झन मन इही दिन तांत्रिक गुरु अउ सिस्य घलो बनाथें। गुरु सिस्य के रूप म परब मनाथें।