पंजाब, हरियाणा में पराली जलाने के मामलों में 50 प्रतिशत की कमी
पंजाब, हरियाणा में पराली जलाने के मामलों में 50 प्रतिशत की कमी
(नेहा मिश्रा)
नयी दिल्ली, आठ दिसंबर (भाषा) पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने के मामलों में 50 प्रतिशत से अधिक की कमी आई है और एक वर्ष के भीतर प्राथमिकियों की संख्या 6,469 से घटकर 2,193 रह गई है।
वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) से प्राप्त आरटीआई आंकड़ों से यह जानकारी प्राप्त हुई है।
सीएक्यूएम से सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार, पूरे क्षेत्र में खेतों में आग लगने की घटनाओं की कुल संख्या 2024 में 12,750 से घटकर 2025 में 6,080 रह गई।
पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएं सीधे तौर पर दिल्ली की वायु गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं, जो हर सर्दियों में गंभीर वायु प्रदूषण का सामना करती है।
हालांकि, हाल के कई शोध अध्ययनों से पता चलता है कि दिल्ली में प्रदूषण बढ़ने के पीछे पराली जलाना अब मुख्य कारण नहीं रह गया है, क्योंकि पराली जलाने की घटनाओं में तेजी से कमी आई है।
आरटीआई के जवाब के अनुसार, 2024 में पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने के आरोप में किसानों के खिलाफ 6,469 प्राथमिकी दर्ज की गईं और 2025 में यह संख्या तेजी से घटकर 2,193 रह गई।
आंकड़ों के अनुसार पिछले वर्ष पंजाब में पराली जलाने के 5,802 मामले और हरियाणा में 667 मामले दर्ज किए गए, जबकि इस वर्ष यह संख्या घटकर पंजाब में 1,963 और हरियाणा में 230 रह गई।
पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान और उत्तर प्रदेश (एनसीआर) में 2024 में 12,750 पराली जलाने की घटनाएं दर्ज की गईं, जबकि 2025 में यह संख्या घटकर 6,080 रह गई, जो 53 प्रतिशत से अधिक की गिरावट है।
किसानों पर लगाए गए आर्थिक जुर्माने भी प्रवर्तन अभियान को दर्शाते हैं। वर्ष 2024 में, पराली जलाने के लिए पंजाब में 21.80 करोड़ रुपये और हरियाणा में 21.87 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया।
वर्ष 2025 में, उल्लंघनों की संख्या में कमी के अनुरूप, पंजाब में जुर्माना राशि घटकर 12.58 करोड़ रुपये और हरियाणा में 12.65 करोड़ रुपये रह गई।
पिछले दो वर्षों में दोनों राज्यों में लगभग 68 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया है।
पंजाब में 2025 में पराली जलाने के 5,114 मामले सामने आए, जबकि 2024 में 10,909, 2023 में 36,663, 2022 में 49,922, 2021 में 71,304 और 2020 में 83,002 मामले सामने आए।
इसी प्रकार, हरियाणा में 2025 में मामलों की संख्या 662, 2024 में 1,406, 2023 में 2,303, 2022 में 3,661, 2021 में 6,987 और 2020 में 4,202 रही।
उत्तर प्रदेश में 2025 में पराली जलाने के सबसे अधिक 7,290 मामले दर्ज किए गए, जबकि 2024 में 6,142, 2023 में 3,996, 2022 में 3,017, 2021 में 4,242 और 2020 में 4,631 मामले दर्ज किए गए थे।
नोएडा के पर्यावरणविद् अमित गुप्ता ने कहा, ‘‘पराली जलाने में 50 प्रतिशत की कमी के बावजूद, नवंबर 2025 पिछले पांच वर्षों में दूसरे सबसे प्रदूषित महीनों में से एक रहा। अब यह स्पष्ट है कि दिल्ली-एनसीआर में गंभीर वायु प्रदूषण के पीछे मुख्य कारण पराली जलाना नहीं है।’’
पड़ोसी राज्यों में प्रवर्तन उपायों का उल्लेख करते हुए गुप्ता ने कहा कि 8,600 से अधिक प्राथमिकी दर्ज की गईं और पंजाब और हरियाणा के किसानों पर 68 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया, लेकिन उन्होंने दिल्ली-एनसीआर में स्थानीय प्रदूषकों के खिलाफ की गई कार्रवाई पर सवाल उठाया।
उन्होंने पूछा, ‘‘यहां बार-बार उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कितनी प्राथमिकी दर्ज की गई हैं और कितना जुर्माना वसूला गया है?’’
हाल के शोध और विश्लेषण से यह भी पता चला है कि इस वर्ष दिल्ली में दैनिक प्रदूषण वृद्धि का मुख्य कारण पराली जलाना नहीं था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पंजाब और हरियाणा में खेतों में आग लगने की घटनाएं काफी कम हुईं, क्योंकि बाढ़ के कारण फसल चक्र बाधित हो गया।
राष्ट्रीय राजधानी में सोमवार सुबह वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 318 दर्ज किया गया जो ‘बहुत खराब’ श्रेणी में आता है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के ‘समीर’ ऐप के अनुसार, दिल्ली के 27 केंद्रों में एक्यूआई ‘बहुत खराब’ श्रेणी में दर्ज किया गया जबकि 11 केंद्रों में एक्यूआई ‘खराब’ श्रेणी में था।
सीपीसीबी के मानकों के अनुसार, शून्य से 50 के बीच एक्यूआई ‘अच्छा’, 51 से 100 ‘संतोषजनक’, 101 से 200 ‘मध्यम’, 201 से 300 ‘खराब’, 301 से 400 ‘बहुत खराब’ और 401 से 500 के बीच एक्यूआई ‘गंभीर’ माना जाता है।
भाषा
देवेंद्र नरेश
नरेश

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