नयी दिल्ली, 30 दिसंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि विज्ञापनदाता को अपने उत्पाद के प्रचार के लिए अन्य संबंधित उत्पादों के साथ ‘सामान्य तुलना’ वाले विज्ञापन की स्वतंत्रता होनी चाहिए। अदालत ने यह भी कहा है कि केवल आरोप लगाना ही तिरस्कार का मामला बनाने के लिए पर्याप्त नहीं है।
अदालत ने ‘डाबर ग्लूकोप्लस-सी ऑरेंज’ के विज्ञापनों को लेकर डाबर इंडिया के खिलाफ जायडस वेलनेस प्रोडक्ट्स के एक मुकदमे पर यह टिप्पणी की। अदालत ने वादी के ‘ग्लूकॉन-डी टैंगी ऑरेंज’ के संबंध में कथित ‘अनुचित प्रतिस्पर्धा’ और निंदा रोकने के लिए एक अंतरिम आदेश पारित करने से इनकार कर दिया।
याचिकाकर्ता ने अपने उत्पाद की उपेक्षा का आरोप लगाया, जिसे ऑरेंज ग्लूकोज पाउडर ड्रिंक्स के बाजार का अगुवा बताया गया था। याचिकाकर्ता की दलील है कि विज्ञापनों से ऐसी धारणा बनती है कि सभी ऑरेंज ग्लूकोज पाउडर ड्रिंक्स ऊर्जा प्रदान करने में पूरी तरह से अक्षम हैं और केवल प्रतिवादी का उत्पाद ही ऐसा करने में सक्षम है।
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने हाल के एक आदेश में कहा, ‘‘विज्ञापनदाता को अपने उत्पाद के प्रचार के लिए अन्य संबंधित उत्पादों के साथ ‘सामान्य तुलना’ वाले विज्ञापन की स्वतंत्रता होनी चाहिए और यदि ऐसा बाजार की अग्रणी कंपनी से जुड़े किसी स्पष्ट संकेत के बिना किया जाता है, तो आपत्ति तब तक नहीं उठाई जा सकती, जब तक कि विज्ञापन बिल्कुल गलत या भ्रामक न हो।’’
आदेश में कहा गया है, ‘‘अपने उत्पादों को श्रेष्ठ बताकर विपणन और बिक्री करने वाली कंपनियों और विज्ञापनदाताओं के लिए यह सामान्य बात है कि वे अपने उत्पादों को श्रेष्ठ दिखाते हैं। इस प्रक्रिया में एक सामान्य तुलना की अनुमति दी जानी चाहिए और रचनात्मकता को दबाया नहीं जा सकता है।’’
भाषा सुरेश दिलीप
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