इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने धर्मांतरण के आरोपी की जमानत याचिका खारिज की

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने धर्मांतरण के आरोपी की जमानत याचिका खारिज की

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने धर्मांतरण के आरोपी की जमानत याचिका खारिज की
Modified Date: August 13, 2024 / 09:45 pm IST
Published Date: August 13, 2024 9:45 pm IST

प्रयागराज, 13 अगस्त (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने धर्मांतरण के आरोपी की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा है कि उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम 2021 का उद्देश्य सभी व्यक्तियों को धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देना और भारत में धर्मनिरपेक्षता की भावना को बनाए रखना है।

पिछले शुक्रवार को पारित अपने आदेश में अज़ीम नाम के एक व्यक्ति की जमानत याचिका खारिज करते हुए न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने कहा कि यद्यपि संविधान प्रत्येक व्यक्ति को अपना धर्म मानने और उसका प्रचार करने का अधिकार देता है, लेकिन यह धर्म परिवर्तन कराने के सामूहिक अधिकार में तब्दील नहीं होता।

अदालत ने कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता, धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्ति और धर्मांतरित होने वाले व्यक्ति, दोनों को समान रूप से प्राप्त होती है।

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मामले के तथ्यों के मुताबिक, अजीम के खिलाफ बदायूं जिले के कोतवाली पुलिस थाने में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 323/504/506 और उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम 2021 की धारा 3/5(1) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था। आरोप है कि उसने एक लड़की को इस्लाम कबूल करने के लिए विवश किया और उसका यौन शोषण किया।

याचिकाकर्ता ने दलील दी कि उसे इस मामले में फंसाया गया है और उसके साथ संबंध में रही लड़की ने अपनी इच्छा से घर छोड़ा और पूर्व में सीआरपीसी की धारा 161 और 164 के तहत दर्ज बयान में अपनी शादी की पुष्टि की है।

दूसरी ओर, राज्य सरकार के वकील ने इस आधार पर जमानत याचिका का विरोध किया कि लड़की ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दिए बयान में जबरन इस्लाम धर्म कबूल कराए जाने का आरोप लगाया है और बिना धर्म परिवर्तन के शादी होने की बात स्वीकारी है।

दोनों पक्षों को सुनने के बाद, अदालत ने पाया कि लड़की ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज बयान में साफ तौर पर कहा है कि याचिकाकर्ता और उसके परिजन उस पर इस्लाम स्वीकार करने का दबाव बना रहे थे और उसे बकरीद के दिन पशु की कुर्बानी देखने के लिए बाध्य किया गया और साथ ही उसे मांसाहारी भोजन पकाने के लिए भी बाध्य किया गया।

अदालत ने यह भी पाया कि लड़की को याचिकाकर्ता द्वारा घर में कैद करके रखा गया और साथ ही उसे इस्लामी रिवाज अपनाने के लिए भी बाध्य किया गया जो उसे स्वीकार्य नहीं था।

भाषा राजेंद्र नोमान

नोमान


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