एएमयू: न्यायालय ने कहा-अल्पसंख्यक संस्थान के राष्ट्रीय महत्व का संस्थान होने में कुछ भी असंगत नहीं
एएमयू: न्यायालय ने कहा-अल्पसंख्यक संस्थान के राष्ट्रीय महत्व का संस्थान होने में कुछ भी असंगत नहीं
नयी दिल्ली, 31 जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) को अल्पसंख्यक दर्जा देने के जटिल मुद्दे पर दलीलें सुनते हुए कहा कि किसी अल्पसंख्यक संस्थान के राष्ट्रीय महत्व का संस्थान होने में कुछ भी ‘‘मौलिक रूप से असंगत’’ नहीं है।
शीर्ष अदालत की टिप्पणी महत्वपूर्ण है क्योंकि केंद्र ने शीर्ष अदालत में दाखिल अपनी लिखित दलील में कहा है कि स्थापना के समय एएमयू ‘‘राष्ट्रीय स्वरूप’’ का संस्थान है और इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता है। केंद्र ने कहा कि यह प्रश्न मायने नहीं रखता कि एएमयू की शुरुआत के समय इसका संचालन अल्पसंख्यकों द्वारा किया गया था या नहीं।
संविधान का अनुच्छेद 30 शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने के अल्पसंख्यकों के अधिकार से संबंधित है।
मामले की सुनवाई कर रही सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ का नेतृत्व कर रहे प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘अल्पसंख्यक संस्थान के राष्ट्रीय महत्व के संस्थान होने में मौलिक रूप से कुछ भी असंगत नहीं है। यह भी हमें समझना होगा।’’
पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा भी शामिल हैं। पीठ ने 1981 के एएमयू (संशोधन) अधिनियम सहित कई पहलुओं पर दलीलें सुनीं।
वर्ष 1967 में एस अजीज बाशा बनाम भारत संघ मामले में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा था कि चूंकि एएमयू एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है, इसलिए इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता है।
हालांकि, जब संसद ने 1981 में एएमयू (संशोधन) अधिनियम पारित किया तो इसे अपना अल्पसंख्यक दर्जा वापस मिल गया। बाद में, जनवरी 2006 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एएमयू (संशोधन) अधिनियम, 1981 के उस प्रावधान को रद्द कर दिया जिसके द्वारा विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक दर्जा दिया गया था।
बुधवार को सुनवाई के सातवें दिन, वरिष्ठ वकील एन के कौल ने एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा देने का विरोध करने वाले एक पक्ष की ओर से बहस करते हुए पीठ को बताया कि 1981 का संशोधन बाशा फैसले के आधार को नहीं हटाता है।
उन्होंने दलील दी, ‘‘‘स्थापना’ शब्द को हटाकर और विश्वविद्यालय की परिभाषा में संशोधन करके, आप बाशा के आधार को नहीं हटा सकते जो ऐतिहासिक तथ्य को मान्यता देता है।’’
कौल ने कहा कि विधायी इतिहास में उस तरह से बदलाव संभव नहीं है जैसा कि 1981 का अधिनियम करना चाहता था। उन्होंने कहा कि किसी ऐतिहासिक तथ्य को कानूनी कल्पना या संसदीय आदेश द्वारा संशोधित या बदला नहीं जा सकता है।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मिस्टर कौल आप भी सरकार का पक्ष रख रहे हैं। 1981 के संशोधन को रद्द करने की व्यग्रता में, हम ऐसा कुछ न करें जो संसद की शक्तियों को काफी हद तक कमजोर कर दे। हमें इस तरह की व्याख्या करने से बचना चाहिए।’’
उन्होंने कहा कि अदालत को बहुत सावधान रहना होगा क्योंकि वह जो तय करेगी वह भविष्य के लिए कानून होगा।
न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि यह सर्वविदित है कि विधायिका पूर्वव्यापी प्रभाव से कानून बना सकती है। कौल ने कहा कि संसद की भी कुछ कार्रवाइयां थीं जिन्हें रद्द कर दिया गया और अधिकार क्षेत्र से बाहर माना गया।
जब कौल ने कहा कि 1981 का संशोधन बाशा के आधार को नहीं हटाता है, तो न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘इस पहलू का विश्लेषण करते समय, हम चाहेंगे कि आप बाशा के स्थापना पहलू और बाशा के प्रशासन पहलू पर अलग से विचार करें।’’
सुनवाई के दौरान पीठ ने कौल, वरिष्ठ अधिवक्ता एस गुरु कृष्ण कुमार, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी और अन्य वकीलों की दलीलें सुनीं। पीठ ने एएमयू की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन की दलीलें भी सुनीं।
मंगलवार को बहस के दौरान, केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि राष्ट्रीय महत्व के संस्थान को ‘‘राष्ट्रीय संरचना’’ को प्रतिबिंबित करना चाहिए। मामले में दलीलें बृहस्पतिवार को भी जारी रहेंगी।
शीर्ष अदालत ने 12 फरवरी, 2019 को विवादास्पद मुद्दे को निर्णय के लिए सात न्यायाधीशों की पीठ के पास भेज दिया था। इसी तरह का एक संदर्भ पहले भी दिया गया था।
केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार ने 2006 के उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील दायर की। विश्वविद्यालय ने भी इसके खिलाफ अलग से याचिका दायर की।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार ने 2016 में शीर्ष अदालत को बताया कि वह पूर्ववर्ती संप्रग सरकार द्वारा दायर अपील वापस ले लेगी।
भाषा आशीष पवनेश
पवनेश

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