सरकारी कर्मचारी के वेतनमान में कटौती व वसूली संबंधी किसी भी कदम के गंभीर परिणाम होंगे: न्यायालय
सरकारी कर्मचारी के वेतनमान में कटौती व वसूली संबंधी किसी भी कदम के गंभीर परिणाम होंगे: न्यायालय
नयी दिल्ली, आठ अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि किसी सरकारी कर्मचारी के वेतनमान में कटौती और उससे वसूली का कोई भी कदम दंडात्मक कार्रवाई के समान होगा, क्योंकि इसके ‘‘गंभीर परिणाम’’ होंगे।
न्यायालय ने कहा कि किसी कर्मचारी के वेतनमान को कम करने तथा अतिरिक्त राशि वसूलने के लिए राज्य सरकार द्वारा लिया गया निर्णय पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू नहीं किया जा सकता और वह भी लंबे समय के अंतराल के बाद।
न्यायमूर्ति संदीप मेहता और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने एक सेवानिवृत्त कर्मचारी के वेतनमान में कटौती संबंधी बिहार सरकार के अक्टूबर 2009 के आदेश को रद्द कर दिया। राज्य सरकार ने उनसे अतिरिक्त राशि वसूलने का भी निर्देश दिया था।
पीठ ने अपने फैसले में कहा, ‘‘इसके अतिरिक्त, हमारा यह भी मानना है कि किसी सरकारी कर्मचारी के वेतनमान में कटौती और उससे वसूली का कोई भी कदम दंडात्मक कार्रवाई के समान होगा, क्योंकि इसके गंभीर परिणाम भी हो सकते हैं।’’
उच्चतम न्यायालय ने सेवानिवृत्त कर्मचारी द्वारा दायर उस अपील पर अपना फैसला सुनाया, जिसमें पटना उच्च न्यायालय के अगस्त, 2012 के आदेश को चुनौती दी गई थी।
उच्च न्यायालय ने माना था कि वेतन निर्धारण में संशोधन और उसके परिणामस्वरूप कटौती फरवरी 1999 के सरकारी प्रस्ताव के अनुसार की गई थी, जिसके अनुसार वह उच्च वेतनमान के हकदार नहीं थे, जो उन्हें गलत तरीके से प्रदान किया गया था।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि व्यक्ति को 1966 में बिहार सरकार में आपूर्ति निरीक्षक के पद पर नियुक्त किया गया था और 15 वर्ष तक सेवा देने के बाद उन्हें विपणन अधिकारी के रूप में पहली समयबद्ध पदोन्नति मिली और अप्रैल 1981 से उन्हें जूनियर चयन ग्रेड में रखा गया।
इसने कहा कि 25 वर्ष की सेवा पूरी करने पर उन्हें 10 मार्च, 1991 से वरिष्ठ चयन ग्रेड, विपणन अधिकारी-सह-सहायक जिला आपूर्ति अधिकारी (एडीएसओ) के पद पर पदोन्नत किया गया।
पीठ ने कहा कि राज्य सरकार ने फरवरी 1999 में एक प्रस्ताव जारी कर विपणन अधिकारी और एडीएसओ के वेतनमान को जनवरी 1996 से संशोधित किया था।
न्यायालय ने कहा कि वह व्यक्ति 31 जनवरी, 2001 को एडीएसओ के पद से सेवानिवृत्त हुआ था और उन्हें अप्रैल 2009 में राज्य सरकार से एक पत्र मिला था जिसमें कहा गया था कि उनके वेतन निर्धारण में त्रुटि हुई है और इसलिए उनसे 63,765 रुपये वसूले जाने चाहिए क्योंकि यह भुगतान उनकी पात्रता से अधिक था।
पीठ ने कहा कि उन्होंने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, जिसने राज्य को उनके अभ्यावेदन पर विचार करने का निर्देश दिया था, लेकिन बाद में प्राधिकरण ने इसे खारिज कर दिया था।
इसने कहा कि उन्होंने फिर से उच्च न्यायालय का रुख किया, जिसने उनकी याचिका खारिज कर दी।
उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कहा, ‘‘राज्य सरकार द्वारा 8 अक्टूबर, 2009 को पारित आदेश जिसमें अपीलकर्ता के वेतनमान में कटौती करने और उससे अतिरिक्त राशि वसूलने का निर्देश दिया गया था, पूरी तरह से अवैध तथा मनमाना है और इसे रद्द किया जाता है।’’
पीठ ने उच्च न्यायालय की खंडपीठ द्वारा पारित आदेश को भी रद्द कर दिया।
भाषा
देवेंद्र प्रशांत
प्रशांत

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