अरावली: पर्यावरणविदों ने न्यायालय के स्थगन आदेश का स्वागत किया, विशेषज्ञ नियुक्त करने की मांग की

अरावली: पर्यावरणविदों ने न्यायालय के स्थगन आदेश का स्वागत किया, विशेषज्ञ नियुक्त करने की मांग की

अरावली: पर्यावरणविदों ने न्यायालय के स्थगन आदेश का स्वागत किया, विशेषज्ञ नियुक्त करने की मांग की
Modified Date: December 29, 2025 / 06:10 pm IST
Published Date: December 29, 2025 6:10 pm IST

नयी दिल्ली/जयपुर, 29 दिसंबर (भाषा) अरावली की नयी परिभाषा का विरोध कर रहे पर्यावरणविदों ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय द्वारा पर्वतमाला की पुनर्परिभाषा के अपने आदेश पर रोक लगाए जाने के कदम का स्वागत किया और मांग की कि इस मुद्दे का अध्ययन करने वाली नयी समिति में केवल नौकरशाहों के बजाय पर्यावरण विशेषज्ञ भी शामिल होने चाहिए।

शीर्ष अदालत ने 20 नवंबर के अपने फैसले में दिए गए निर्देशों को स्थगित कर दिया, जिसमें पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की एक समिति द्वारा अनुशंसित अरावली पहाड़ियों और पर्वत श्रृंखलाओं की एक समान परिभाषा को स्वीकार किया गया था।

इसने मुद्दे की व्यापक और समग्र पड़ताल करने के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञों से युक्त एक उच्चस्तरीय समिति गठित करने का भी प्रस्ताव रखा।

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पर्यावरणविद् भावरीन कंधारी ने कहा कि अरावली में जिस तरह से खनन हो रहा है, वह प्रशासनिक और शासन की विफलता है।

उन्होंने कहा, ‘‘यह न्यायिक हस्तक्षेप बेहद जरूरी था। उच्चतम न्यायालय का निर्देश पर रोक लगाना एक स्वागतयोग्य कदम है, लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि गठित होने वाली समिति में पारिस्थितिकीविदों और पर्यावरणविदों को शामिल किया जाए, न कि केवल नौकरशाहों को।’’

‘पीपुल्स फॉर अरावली’ समूह की संस्थापक सदस्य नीलम अहलूवालिया ने न्यायालय के निर्देश को ‘‘अस्थायी जीत’’ करार दिया।

उन्होंने कहा, ‘‘हमारी असल मांग यह है कि सरकार अरावली पर्वतमाला में सभी खनन गतिविधियों को रोक दे। हमें लोगों के स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ने वाले प्रभावों का संपूर्ण, विस्तृत और स्वतंत्र पर्यावरण एवं सामाजिक प्रभाव आकलन चाहिए, ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि अरावली पर्वतमाला का कितना हिस्सा पहले ही नष्ट हो चुका है।’’

अहलूवालिया ने कहा, ‘‘जब तक हमारी सभी मांगें पूरी नहीं हो जातीं और अरावली पर्वतमाला की जमीनी स्तर पर रक्षा नहीं हो जाती, तब तक हम पीछे नहीं हटेंगे।’’

पर्यावरणविद विमलेंदु झा ने उच्चतम न्यायालय के आदेश को ‘‘अभूतपूर्व निर्णय’’ करार दिया।

उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘शीर्ष अदालत द्वारा स्वतः संज्ञान लिया जाना और मामले की गुण-दोष के आधार पर सुनवाई करना… अपने ही आदेश को स्थगित करना, सरकार को इस मुद्दे पर पुनर्विचार करने और एक नयी समिति गठित करने का आदेश देना… यह एक अभूतपूर्व कदम है।’’

पारिस्थितिकी विशेषज्ञ विजय धस्माना ने कहा, ‘‘अरावली की नयी परिभाषा पर बहस में रियल एस्टेट और खनन लॉबी सहित दो गुट हावी हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि अरावली की किसी भी भूवैज्ञानिक विशेषता को अभी तक परिभाषित नहीं किया गया है।’’

उच्चतम न्यायालय ने अरावली पहाड़ियों और पर्वतमालाओं की एक समान परिभाषा को 20 नवंबर को स्वीकार कर लिया था तथा विशेषज्ञों की रिपोर्ट आने तक दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान एवं गुजरात में फैले इसके क्षेत्रों में नए खनन पट्टे देने पर रोक लगा दी थी।

न्यायालय ने अरावली पहाड़ियों और पर्वतमालाओं की सुरक्षा के लिए अरावली पहाड़ियों और पर्वतमालाओं की परिभाषा पर पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की एक समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया था।

समिति ने अनुशंसा की थी कि ‘‘अरावली पहाड़ी’’ की परिभाषा अरावली जिलों में स्थित ऐसी किसी भी भू-आकृति के रूप में की जाए, जिसकी ऊंचाई स्थानीय भू-स्तर से 100 मीटर या उससे अधिक हो; और और ‘‘अरावली पर्वतमाला’’ एक-दूसरे से 500 मीटर के भीतर दो या अधिक ऐसी पहाड़ियों का संग्रह होगा।

राजस्थान में अरावली पर्वतमाला के संरक्षण के लिए काम कर रहे अग्रणी कार्यकर्ताओं के समूह ‘अरावली विरासत जन अभियान’ ने भी उच्चतम न्यायालय के फैसले पर संतोष व्यक्त किया।

समूह ने एक बयान में कहा, ‘‘यह आदेश अरावली पर्वतमाला के संरक्षण के लिए हमारे निरंतर अभियान में एक महत्वपूर्ण कदम है। हम इस प्राकृतिक धरोहर के संरक्षण के लिए अपना संघर्ष जारी रखेंगे।’’

केंद्र की नयी परिभाषा का विरोध करने वालों का कहना है कि यह पर्याप्त वैज्ञानिक मूल्यांकन या सार्वजनिक परामर्श के बिना दी गई है, जिससे हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में फैली अरावली पर्वतमाला के बड़े हिस्से में खनन का खतरा बढ़ सकता है।

भाषा नेत्रपाल माधव

माधव


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