त्रिपुरा के राहत शिविरों में रह रहे ब्रू लोगों ने स्थायी आवासीय और एसटी प्रमाण पत्रों की मांग की

त्रिपुरा के राहत शिविरों में रह रहे ब्रू लोगों ने स्थायी आवासीय और एसटी प्रमाण पत्रों की मांग की

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  • Publish Date - November 13, 2020 / 01:33 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:12 PM IST

अगरतला, 13 नवंबर (भाषा) उत्तर त्रिपुरा जिले के राहत शिविरों में 1997 से रह रहे ब्रू समुदाय ने त्रिपुरा में उनके पुनर्वास की प्रक्रिया के दौरान स्थायी आवासीय और अनुसूचित जनजाति के प्रमाण पत्रों की मांग की है।

एक अधिकारी ने बताया कि त्रिपुरा सरकार पड़ोसी मिजोरम से विस्थापित हुए 33,000 ब्रू लोगों की पुनर्वास की प्रक्रिया पहले ही शुरू कर चुकी है।

ब्रू समुदाय के हजारों लोग उत्तर त्रिपुरा जिले के दो उपमंडलों में स्थित राहत शिविरों में 1997 से रह रहे हैं। वे जातीय संघर्ष की वजह से मिजोरम से भागकर त्रिपुरा आ गए थे।

ब्रू समुदाय के प्रतिनिधियों, केंद्र सरकार, त्रिपुरा एवं मिजोरम सरकार के बीच इस साल 16 जनवरी को एक समझौता हुआ था। इसके तहत राहत शिविरों को खाली करने से इनकार करने वाले और मिजोरम वापस जाने से मना करने वाले ब्रू समुदाय के लोगों को करीब 23 साल राज्य में रहने के बाद त्रिपुरा में स्थायी रूप से बसने की इजाजत दे दी थी।

मिजोरम ब्रू विस्थापित लोग मंच (एमबीडीपीएफ) के महासचिव ब्रूनो मशा ने इस हफ्ते त्रिपुरा के मुख्य सचिव मनोज कुमार को लिखी चिट्ठी में ब्रू समुदाय के लोगों के लिए अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र और स्थायी आवासीय प्रमाण पत्र जारी करने की मांग की।

इस बीच, उत्तर त्रिपुरा जिले के कंचनपुर उपमंडल की ज्वाइंट मूवमेंट कमेटी (जीएमसी) ने उपमंडल में छह हजार ब्रू परिवारों को बसाने के सरकार के फैसले के खिलाफ बेमियादी प्रदर्शन करने का निर्णय किया है।

जेएमसी में नागरिक सुरक्षा मंच और उपमंडल की मिजो कन्वेंशन शामिल हैं। उसने सिलसिलेवार प्रदर्शन करके मांग की है कि ब्रू समुदाय को त्रिपुरा के सभी आठ जिलों में बसाया जाए।

समिति के प्रमुख डॉ जेड पचुउ ने पत्रकारों से कहा कि उनकी उत्तर त्रिपुरा के जिलाधिकारी से मुलाकात हुई थी और उन्हें आश्वस्त किया गया था कि अधिकतम 1500 परिवारों को ही यहां बसाया जाएगा, लेकिन वे अब 6000 परिवारों को बसाने की कोशिश कर रहे हैं।

उहोंने कहा कि अगर वे ऐसा करेंगे तो पूरे उपमंडल पर्यावरणीय, पारिस्थितिकी, सामाजिक और जनसांख्यिकी तौर पर प्रभावित होगा जो स्वीकार्य नहीं है।

भाषा

नोमान पवनेश

पवनेश